लाख बहाने - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
ब्लॉग के माध्यम से मेरा प्रयास है कि मैं अपनी कविता, कहानी, गीत, गजल, लेख, यात्रा संस्मरण और संस्मरण द्वारा अपने विचारों व भावनाओं को अपने पारिवारिक और सामाजिक दायित्व निर्वहन के साथ-साथ सरलतम अभिव्यक्ति के माध्यम से लिपिबद्ध करते हुए अधिकाधिक जनमानस के निकट पहुँच सकूँ। इसके लिए आपके सुझाव, आलोचना, समालोचना आदि का हार्दिक स्वागत है।

शनिवार, 19 सितंबर 2009

लाख बहाने

लाख बहाने पास हमारे
सच भूल, झूठ का फैला हर तरफ़ रोग,
जितने रंग न बदलता गिरगिट
उतने रंग बदलते लोग।

नहीं पता कब किसको
किसके आगे रोना-झुकना है,
इस रंग बदलती दुनिया में
कब कितना जीना-मरना है।

नहीं अगर कुछ पास तुम्हारे, तो देखो!
कोई कितना अपना-अपना रह पाता है,
अपनों की भीड़ में तन्हा आदमी
न रो पाता न हँस पाता है।

फेहरिस्त लम्बी है अपनों की
हैं इसका सबको बहुत खूब पता,
पर जब ढूँढ़ो वक्त पर इनको
तो होगा न कहीं अता-पता
होगा न कहीं अता-पता

Copyright@Kavita Rawat, Bhopal

8 टिप्‍पणियां:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

नहीं पता कब किसको
किसके आगे रोना-झुकना है,
इस रंग बदलती दुनिया में
कब कितना जीना-मरना है।

waah.....sahi saar likha hai

Apanatva ने कहा…

bahut he sunder rachana .

Asha Lata Saxena ने कहा…

जितने रंग ना बदलता गिरगिट ,उतने रंग बदलते लोग "
बहुत सही तुलना |सुन्दर पोस्ट के लिए बधाई
आशा

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सच्चाई को कहती अच्छी प्रस्तुति

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

जितने रंग न बदलता गिरगिट
उतने रंग बदलते लोग।

एकदम सच....

Anamikaghatak ने कहा…

बहुत सुन्दर पोस्ट ......बधाई

Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

अपनों की भीड़ में तन्हा आदमी
न रो पाता न हँस पाता है। katu satya ....

Madan Mohan Saxena ने कहा…

बहुत गहन और सुन्दर रचना.बहुत बहुत बधाई...