लाख बहाने पास हमारे
सच भूल, झूठ का फैला हर तरफ़ रोग,
जितने रंग न बदलता गिरगिट
उतने रंग बदलते लोग।
नहीं पता कब किसको
किसके आगे रोना-झुकना है,
इस रंग बदलती दुनिया में
कब कितना जीना-मरना है।
नहीं अगर कुछ पास तुम्हारे, तो देखो!
कोई कितना अपना-अपना रह पाता है,
अपनों की भीड़ में तन्हा आदमी
न रो पाता न हँस पाता है।
फेहरिस्त लम्बी है अपनों की
हैं इसका सबको बहुत खूब पता,
पर जब ढूँढ़ो वक्त पर इनको
तो होगा न कहीं अता-पता
होगा न कहीं अता-पता
Copyright@Kavita Rawat, Bhopal
सच भूल, झूठ का फैला हर तरफ़ रोग,
जितने रंग न बदलता गिरगिट
उतने रंग बदलते लोग।
नहीं पता कब किसको
किसके आगे रोना-झुकना है,
इस रंग बदलती दुनिया में
कब कितना जीना-मरना है।
नहीं अगर कुछ पास तुम्हारे, तो देखो!
कोई कितना अपना-अपना रह पाता है,
अपनों की भीड़ में तन्हा आदमी
न रो पाता न हँस पाता है।
फेहरिस्त लम्बी है अपनों की
हैं इसका सबको बहुत खूब पता,
पर जब ढूँढ़ो वक्त पर इनको
तो होगा न कहीं अता-पता
होगा न कहीं अता-पता
Copyright@Kavita Rawat, Bhopal
नहीं पता कब किसको
जवाब देंहटाएंकिसके आगे रोना-झुकना है,
इस रंग बदलती दुनिया में
कब कितना जीना-मरना है।
waah.....sahi saar likha hai
bahut he sunder rachana .
जवाब देंहटाएंजितने रंग ना बदलता गिरगिट ,उतने रंग बदलते लोग "
जवाब देंहटाएंबहुत सही तुलना |सुन्दर पोस्ट के लिए बधाई
आशा
सच्चाई को कहती अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंजितने रंग न बदलता गिरगिट
जवाब देंहटाएंउतने रंग बदलते लोग।
एकदम सच....
बहुत सुन्दर पोस्ट ......बधाई
जवाब देंहटाएंमुझे आप को सुचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि
जवाब देंहटाएंआप की ये रचना 21-06-2013 यानी आने वाले शुकरवार की नई पुरानी हलचल
पर लिंक की जा रही है। सूचनार्थ।
आप भी इस हलचल में शामिल होकर इस की शोभा बढ़ाना।
मिलते हैं फिर शुकरवार को आप की इस रचना के साथ।
जय हिंद जय भारत...
कुलदीप ठाकुर...
अपनों की भीड़ में तन्हा आदमी
जवाब देंहटाएंन रो पाता न हँस पाता है। katu satya ....
बहुत गहन और सुन्दर रचना.बहुत बहुत बधाई...
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