इससे पहले कि - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
ब्लॉग के माध्यम से मेरा प्रयास है कि मैं अपनी कविता, कहानी, गीत, गजल, लेख, यात्रा संस्मरण और संस्मरण द्वारा अपने विचारों व भावनाओं को अपने पारिवारिक और सामाजिक दायित्व निर्वहन के साथ-साथ सरलतम अभिव्यक्ति के माध्यम से लिपिबद्ध करते हुए अधिकाधिक जनमानस के निकट पहुँच सकूँ। इसके लिए आपके सुझाव, आलोचना, समालोचना आदि का हार्दिक स्वागत है।

मंगलवार, 15 सितंबर 2009

इससे पहले कि

इससे पहले कि कोई आप से तुम और तुम से तू पर आकर
अपनी कोई दिल बहलाने की चीज़ समझ बैठे
संभल जाना
इससे पहले कि कोई अपनी मीठी बातों में उलझा कर
गलत राह पर चलने को मजबूर करने लगे
नीयत समझ लेना
इससे पहले कि कोई घर में गलत इरादों से घुसकर
आपस में फूट डालने की बातें करने लगे
परख कर देखना
इससे पहले कि घर में कोई भेदिया बनकर घुस जाय
सूझ-बूझ से काम लेना
इससे पहले कि किसी की कोई बात बुरी लगने लगे
बातों पर अपनी ध्यान देना
इससे पहले कि कोई अपमान करने पर तुल जाय
सबका मान रखना
इससे पहले कि कोई टाइम पास पीस समझ बैठे
समय देख चलना
इससे पहले कि कोई परिवार से अलग करने कि सोचे
परिवार पर ध्यान देना
इससे पहले कि हर कोई कतरा के चलने लगे
अभिमान न करना
इससे पहले कि भीड़ का हिस्सा मात्र बन बैठे
अलग पहचान रखना
इससे पहले कि जिंदगी उलझनों से घिर जाय
जिंदगी आसान रखना
इससे पहले कि कोई नफरत भरी निगाहों से देखें
संभल कर चलना
इससे पहले कि कोई मंजिल की राह से भटका दे
आंखे खुली रखना
इससे पहले कि दुनिया में कहीं बदनाम न हो जायं
हरतरफ नज़र रखना
इससे पहले कि कभी अपनी ही नज़रों में गिर जायं
फ़ूक-फूक कर कदम रखना

         आज जहाँ लोग कहते हैं की समय नहीं मिल पाता है वहीँ यह भी देखा जाता है कि लोग किस तरह से अपना टाइम पास करते रहते हैं। अपने परिवार वालों के लिए भले ही समय न हो लेकिन बाहर घंटों मोबाइल या फ़ोन पर बतियाते फिरते है, इतना कि आस पास कि सुध भी नहीं रहती है. इन्टरनेट को ही ले लीजिये इसमें इतनी अच्छी जानकारी होने के बाद भी आज की युवा पीढ़ी जिस तरह से अपना समय आपस में बर्बाद करते दिखते हैं, उससे उनकी सोच कुंद होती दिखाई देती है. जिस तरह से इन्टरनेट का दुरपयोग हो रहा है, यह देखकर दुःख होता है कि क्यूँ कोई अपना कीमती समय फालतू कामों या बातों में लगाकर कहता है कि समय नहीं मिलता, जबकि सत्य तो यही है कि ऐसे लोगों के पास वास्तव में अच्छे कामों के लिए समय कि कमी है. जरा अगर अपने घर परिवार, अपने बारे मैं कभी गौर से देखें तो उन्हें पीछे पछताने कि जरुरत नहीं होगी, बस इससे पहले उन्हें अपना मूल्यांकन खुद करना होगा कि उन्हें क्या करना चाहिए और वे क्या कर रहे हैं. इसी सन्दर्भ में कविता प्रस्तुत हैं.

Copyright @Kavita Rawat, Bhopal, 25 Aug, 2009

10 टिप्‍पणियां:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

bahut hi utkrisht rachna,,,,,,

Apanatva ने कहा…

kash ! aisaa sab kar pate jandagee savar jaatee sabakee .prarthana hai log blog par aae kuch to grahan kare .

vidya ने कहा…

हलचल पर आपकी रचना देखी ...बहुत सुन्दर
हर चेतावनी सटीक...
इससे पहले कि किसी की कोई बात बुरी लगने लगे
बातों पर अपनी ध्यान देना
इससे पहले कि कोई अपमान करने पर तुल जाय
सबका मान रखना...

Jay dev ने कहा…

जीवन का साद सदउपयोग करे व्यर्थ की चिन्ताओ से दूर रहे |

Unknown ने कहा…

१५ सितम्बर २००९ को ६ जनवरी २०१२ को पढ़ कर लगा वाकई आपने कालजयी रचना लिख डाली है हमारे देश में यह नसीहत २०५२ में भी कोई लिख पढ़ रहा होगा . आप भोपाल से हैं . यह और सुखद अनुभूति है . भोपाल विश्वविद्यालय जब वह बरकतउल्ला नहीं हुआ था हमारा भी शिक्षा स्थल था

Prakash Jain ने कहा…

bahut sundar aur satik....

Monika Jain ने कहा…

sarthak rachna...sundar sandesh :)
- मिश्री की डली ज़िंदगी हो चली

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

बहुत ही सच्ची और अच्छी बातो से सचेत किया है आपने...
हर पंक्ति एक अच्छा सन्देश दे रही है...
बहुत ही अच्छी और ज्ञानवर्धक रचना है....

विभूति" ने कहा…

sacchi baat kahi aapne.....

सागर ने कहा…

bhaut hi sahi kaha aapne........