हर तरफ शोर आई बसंत बहार - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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मंगलवार, 8 फ़रवरी 2011

हर तरफ शोर आई बसंत बहार

दर्द कितना छुपा हर जिगर में
बताती हैं किसी की खामोशियाँ
हर तरफ शोर आई बसंत बहा
चलो छोडो जिंदगी की तन्हाईयाँ!

यूँ तो जुगुनुओं सी चमक वाले
हर दिन दिखते नज़ारे जहाँ कहीं
पर चांद सी हँसती खिलखिलाती
हरतरफ नजर आती सिर्फ तुम्हीं!

तुम्‍हारा यूँ दबे पाँव न होता आना
तो कहाँ संभव था तुमसे मिल पाना
हम कहाँ कोई ताना बाना बुन पाते
अपनी ही उलझनों में सिर खपाते!

मुझे बता बासंती खुशरंग बयार तू
भला क्यों रहती है कटी-कटी सी
गाँव तो ठीक, शहर की बगिया में
क्यों मुझे दिखती है ठिठकी सी
          
     ....कविता रावत

61 टिप्‍पणियां:

संजय भास्‍कर ने कहा…

आदरणीय कविता रावत जी
नमस्कार !
बसंत के आगमन पर लिखी आपकी यह कविता बहुत अच्छी लगी ...आपका आभार

संजय भास्‍कर ने कहा…

मुझे बता बासंती खुशरंग बयार तू
भला क्यों रहती है कटी-कटी सी
गाँव तो ठीक, शहर की बगिया में
क्यों मुझे दिखती है ठिटकी सी

रुत परिवर्तन पर आधारित इस सुमधुर रचना के साथ ही वसंत आगमन पर आपको शुभकामनाएं...

सोमेश सक्सेना ने कहा…

बढ़िया, बसंत पंचमी की शुभकामनाएँ...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

शहरों में प्रकृति के उत्साह को भी नज़र लग जाती है आधुनिकता की।

Taarkeshwar Giri ने कहा…

Basant ka uttasav aap ko mubarak ho

पी.एस .भाकुनी ने कहा…

......मुझे बता बासंती खुशरंग बयार तू
भला क्यों रहती है कटी-कटी सी......
बसंत पंचमी की शुभकामनाएँ...आभार.........

रश्मि प्रभा... ने कहा…

तुम्‍हारा यूँ दबे पाँव न होता आना
तो कहाँ संभव था तुमसे मिल पाना
हम कहाँ कोई ताना बाना बुन पाते
अपनी ही उलझनों में सिर खपाते!
yun to tu khilkhilati hui aati hai
per pradushan ke shor me....
per haule se tu chhu leti hai
aur wah waqt basanti ho jata hai

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

बहुत सुंदर ...जीवंत मनोभावों का चित्रण .......... स्वागत बसंत

केवल राम ने कहा…

तुम्‍हारा यूँ दबे पाँव न होता आना
तो कहाँ संभव था तुमसे मिल पाना
हम कहाँ कोई ताना बाना बुन पाते
अपनी ही उलझनों में सिर खपाते!
आपने बहुत कुशलता से बसंत आगमन का चित्रण किया है ...शुक्रिया

बेनामी ने कहा…

मुझे बता बासंती खुशरंग बयार तू
भला क्यों रहती है कटी-कटी सी
गाँव तो ठीक, शहर की बगिया में
क्यों मुझे दिखती है ठिटकी सी
..प्रकृति का यह अद्वितीय मानवीकरण बहुत ही प्रभावशाली लगा .... मन को छू गयी आपकी यह रचना ..आपको बसंत की बहुत शुभकामना

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

pyari si rachna...:)
बसंत पंचमी के अवसर में मेरी शुभकामना है की आपकी कलम में माँ शारदे ऐसे ही ताकत दे...:)

Dolly ने कहा…

तुम्‍हारा यूँ दबे पाँव न होता आना
तो कहाँ संभव था तुमसे मिल पाना
हम कहाँ कोई ताना बाना बुन पाते
अपनी ही उलझनों में सिर खपाते!

.. हमको तो प्यार का इज़हार सी करती प्रेमिका का यह बासंती रंग भा गया ....बसंत की इस शुभबेला की आपको बधाई

Surya ने कहा…

यूँ तो जुगुनुओं सी चमक वाले
हर दिन दिखते नज़ारे जहाँ कहीं
पर चांद सी हँसती खिलखिलाती
हरतरफ नजर आती सिर्फ तुम्हीं!

प्यार का बसंती रंग जब सर चढ़कर बोलता है तो सब जगह अपना ही प्रेम नज़र आता है| वाह कितनी खूबसूरती से आपने एक साथ फिजा में बसंती रंग घोल दिया है...तस्वीर का आकर्षण भी लाजवाब है| बहुत बधाई आपको बसंत पंचमी की|

Sushil Bakliwal ने कहा…

उलझनें अपनी जगह हैं, आगतें अपनी जगह.
बसंत आगमन पर हार्दिक शुभकामनाओं सहित...

निर्मला कपिला ने कहा…

हर तरफ शोर आई बसंत बहार
चलो छोडो जिंदगी की तन्हाईयाँ!
बहुत सुन्दर । बसंत के आगम पर बधाई । सुशील जी का शेर पसंद आया

सदा ने कहा…

तुम्‍हारा यूँ दबे पाँव न होता आना
तो कहाँ संभव था तुमसे मिल पाना

बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों का संगम है इस रचना में ।

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

कित्ती सुन्दर रचना ....वसंत पंचमी तो बहुत प्यारा त्यौहार है..इसके साथ मौसम भी कित्ता सुहाना हो जाता है. वसंत पंचमी पर ढेर सारी बधाई !!

_______________________
'पाखी की दुनिया' में भी तो वसंत आया..

गिरधारी खंकरियाल ने कहा…

कविता जी शहर में तो न कहीं बाग, न बागवानी ना फुलवारी की जगह बची हुई है तो वहI वसंत ऋतू ठिठकी ही दृष्टिगत होगी सच ही लिखा आपने .

vijay ने कहा…

मुझे बता बासंती खुशरंग बयार तू
भला क्यों रहती है कटी-कटी सी
गाँव तो ठीक, शहर की बगिया में
क्यों मुझे दिखती है ठिटकी सी

कविता जी! कितनी मासूमियत से आपने बसंत के आने की खबर दी! ......शहर की प्रदुषण भरी जिंदगी में बसंत कहीं एक कोने में ठिठक कर रह गया है ..... एक गहरे चिंतन को बखूबी पेश किया है आपने... आपकी लेखनी के कायल है हम.. ब्लॉग पर यूँ ही आप लिखती रही, बसंत सदा आप पर मेहरबान रहे, ऐसी मनोकामना है ..

pratibha ने कहा…

दर्द कितना छुपा हर जिगर में
बताती हैं किसी की खामोशियाँ
हर तरफ शोर आई बसंत बहार
चलो छोडो जिंदगी की तन्हाईयाँ!

..आपका छुपे दर्द को बसंत के माध्यम से बयां करने का यह अद्भुत अंदाज लगा है. बसंत के शोर में अपने मन की तन्हाईओं को हम कुछ कम जरुर करेंगें. बसंत ऋतू के आगमन पर आपको बहुत बधाई ..आप यूँ ही लिखते रहें आप सरस्वती माँ से यही प्रार्थना है

रचना दीक्षित ने कहा…

मुझे बता बासंती खुशरंग बयार तू
भला क्यों रहती है कटी-कटी सी
गाँव तो ठीक, शहर की बगिया में
क्यों मुझे दिखती है ठिठकी सी

बहुत अच्छी कविता.
वसंत पंचमी पर ढेर सारी बधाई.

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

दर्द कितना छुपा हर जिगर में
बताती हैं किसी की खामोशियाँ
हर तरफ शोर आई बसंत बहार
चलो छोडो जिंदगी की तन्हाईयाँ!
बहुत सुन्दर कविता जी , मगर क्या यह सचमुच इतना आसान है ?

सम्वेदना के स्वर ने कहा…

कविता जी! एक अनोखे दर्द से परिचय हुआ... प्रारम्भमें लगा कि यह कविता आपके मनोभाव के विपरीत है, लेकिन अंत तक भूल का पता चल गया और तब लगा कि यह अपका परिचय पत्र लिये है!!

विशाल ने कहा…

बहुत ही बढ़िया.आपकी कलम को ढेरों बसंतई सलाम.

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुंदर रचना,आप को बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं.

वाणी गीत ने कहा…

दर्द कितना छुपा हर जिगर में , बताती हैं किसी की खामोशिया...
पढने वाले कम होते हैं ...
गाँव तो ठीक , शहर की बगिया में क्यूँ दिखती ठिठकी सी ...
बता दिया क्या ??
वसंत के शोर ने कुछ तो कम की तन्हाई , जो इतनी प्यारी कविता मिली !

विजय मधुर ने कहा…

कविता जी आपकी कविता ने दबे पाँव से रंगों की छटा बिखेर ली |

बसंत पंचमी की बहुत बहुत शुभकामनायें |

उपेन्द्र नाथ ने कहा…

मुझे बता बासंती खुशरंग बयार तू
भला क्यों रहती है कटी-कटी सी
गाँव तो ठीक, शहर की बगिया में
क्यों मुझे दिखती है ठिठकी सी
कविता रावत जी , बहुत ही गहरा सा भाव लिये बेहतरीन कविता .......... . सुंदर प्रस्तुति.
.
सैनिक शिक्षा सबके लिये

shailendra ने कहा…

तुम्‍हारा यूँ दबे पाँव न होता आना
तो कहाँ संभव था तुमसे मिल पाना
हम कहाँ कोई ताना बाना बुन पाते
अपनी ही उलझनों में सिर खपाते!

मुझे बता बासंती खुशरंग बयार तू
भला क्यों रहती है कटी-कटी सी
गाँव तो ठीक, शहर की बगिया में
क्यों मुझे दिखती है ठिठकी सी


बसंत का तो शहर में शोर ही शोर है यहाँ तो वेलनटाइन डे की धूम रहती है बसंत की इस आहट में कुछ प्यार करने वालों के लिए भी आपने अप्रत्यक्ष रूप से ही सही लेकिन बहुत कुछ कहा लगता है ... आपकी रचनाओं में बहुत से अर्थ छुपे रहते है, पाठक जो जैसे समझे आप उसे उस तरह समझने के लिए उस पर छोड़ देती हैं, आपका यह प्यारा अंदाज बार बार आपका ब्लॉग पढने के लिए प्रेरित करता रहती है खींचता है अपनी ओर.... बसंत की बसंती रंगों भरी लाजवाब रचना के लिए शुक्रिया

Deepak Shukla ने कहा…

Hi..

Kavitaon main jab vasant ke...
rang samate hain...
shabd bhav se oot-prot ho..
judte jaate hain...

Sundar kavita...

Deepak...

Mamta ने कहा…

मुझे बता बासंती खुशरंग बयार तू
भला क्यों रहती है कटी-कटी सी
गाँव तो ठीक, शहर की बगिया में
क्यों मुझे दिखती है ठिठकी सी
..shahar mein vasant ke aane kee khabar kahan hoti hai, kisi baag bageeche mein kuch vasant rang dikh gaye mana liya vasant bas.. gaon mein jisne vasant kee bahar dekhi ho waha kahan shahar mein vasant kee kalpna kar sakta hai use to newspaper TV aadi se pata chalta hai...
bahut se arth samet diye hain aapne aur bahut vasant ne kam se kam aapko itne sundar kavita lkhne ke liye prerit kiya aur aapne bakhubi wah kaam kiya dhanyavad aapko ji!!

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

man mugdh kar gayi basanti rachna..
bahut pyari post.

वीरेंद्र सिंह ने कहा…

मनोभावों का सुन्दर चित्रण......बेहद पसंद आया।

कुमार राधारमण ने कहा…

मुकम्मल जहां की तलाश में ही तो युगों से भटकता रहा है आदमी-प्रायः गांव से शहर और यदा-कदा शहर से गांव भी।

शूरवीर रावत ने कहा…

.... हर तरफ शोर "आई बसंत बहार,चलो छोडो जिंदगी की तन्हाईयाँ!" ....... एक बेहतरीन कविता...... चार पदों में ही आपने जिंदगी के तमाम पहलुओं से रू-ब-रू करा दिया. आभार.

ghughutibasuti ने कहा…

बसंत के आगमन की शुभकामनाएँ. सुंदर कविता है, बसंत सी सुंदर!
घुघूती बासूती

डॉ टी एस दराल ने कहा…

सुन्दर रचना ।
ये बसंत यूँ ही खिला रहे ।

CS Devendra K Sharma "Man without Brain" ने कहा…

तुम्‍हारा यूँ दबे पाँव न होता आना
तो कहाँ संभव था तुमसे मिल पाना
हम कहाँ कोई ताना बाना बुन पाते
अपनी ही उलझनों में सिर खपाते!

bahut badhiya.........

DR.ASHOK KUMAR ने कहा…

बहुत ही गहरे और अद्भूत भाव संजोय है आपने कविता जी इस रचना मेँ । आभार ।

" देखे थे जो मैँने ख़्वाब.........गजल "

Anupama Tripathi ने कहा…

तुम्‍हारा यूँ दबे पाँव न होता आना
तो कहाँ संभव था तुमसे मिल पाना
हम कहाँ कोई ताना बाना बुन पाते
अपनी ही उलझनों में सिर खपाते!

बिलकुल ठीक बात -
सटीक सुंदर कविता .

Dr Varsha Singh ने कहा…

सुन्दर और भावपूर्ण कविता । बधाई।

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

कविता जी खूबसूरत कविता के लिए आपको बहुत बहुत बधाई |

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

मुझे बता बासंती खुशरंग बयार तू
भला क्यों रहती है कटी-कटी सी
गाँव तो ठीक, शहर की बगिया में
क्यों मुझे दिखती है ठिठकी सी

....भावपूर्ण ..... बहुत सुन्दर...

rashmi ravija ने कहा…

बसंती बयार ठिठकी सी नहीं...क्या खूब झोंके के साथ आई है...और इस खुशबू से हमें भी सराबोर कर गयी
सुन्दर कविता

वृक्षारोपण : एक कदम प्रकृति की ओर ने कहा…

कविता जी बगिया है ही नहीं................मात्र उसकी समाधियाँ बची हैं............तो भला वसन्त की बयार क्यों न ठिठक जाये........................अपने कल्लोल से उसे आगे बढ़ाने वाले नव पल्लव............नव किसलय अब कहाँ.............................जो कुछ भी बचे दिख रहे हैं..वे मात्र धरोहर हैं....प्राचीन इमारतों की तरह।


बसन्त की बयार के लिये प्रकृति का शृंगार चाहिए।
ये शृंगार वृक्षों से होगा। अतः वृक्ष स्वयं लगाइये................अन्य लोगों को भी प्रेरित कीजिये..............तथा इसकी सूचना हमें दीजिये।
इस पावन यज्ञ में आपकीभी कम से कम एक आहुति अपेक्षित है।

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

दर्द कितना छुपा हर जिगर में
बताती हैं किसी की खामोशियाँ
हर तरफ शोर आई बसंत बहार
चलो छोडो जिंदगी की तन्हाईयाँ!

ये पंक्तियाँ लाजवाब लगीं .......

Dorothy ने कहा…

दिल की गहराईयों को छूने वाली एक खूबसूरत, संवेदनशील और मर्मस्पर्शी प्रस्तुति. आभार.
सादर,
डोरोथी.

OM KASHYAP ने कहा…

sunder ehsaas

Dolly ने कहा…

तुम्‍हारा यूँ दबे पाँव न होता आना
तो कहाँ संभव था तुमसे मिल पाना
हम कहाँ कोई ताना बाना बुन पाते
अपनी ही उलझनों में सिर खपाते!

दिल की गहराईयों को छूने वाली एक खूबसूरत, संवेदनशील और मर्मस्पर्शी प्रस्तुति.
आपकी लेखनी के कायल है हम.. ब्लॉग पर यूँ ही आप लिखती रही, बसंत सदा आप पर मेहरबान रहे, ऐसी मनोकामना है ..

ZEAL ने कहा…

तुम्‍हारा यूँ दबे पाँव न होता आना
तो कहाँ संभव था तुमसे मिल पाना
हम कहाँ कोई ताना बाना बुन पाते
अपनी ही उलझनों में सिर खपाते!


वसंत का स्वागत करती बेहतरीन प्रस्तुति ।
आभार ।

.

बेनामी ने कहा…

sir ji aaj ke liye nahi likh rahe ho kya...

Unknown ने कहा…

तुम्‍हारा यूँ दबे पाँव न होता आना
तो कहाँ संभव था तुमसे मिल पाना
हम कहाँ कोई ताना बाना बुन पाते
अपनी ही उलझनों में सिर खपाते!
..aapne bahut hi badiya tareeke se vasant ka swagat kiya hai .valentine day ke liye bhi yah tofa kama nahi! behtreen prastuti ke liye aabhari hain

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

अंतिम पंक्तियाँ काफी कुछ कहती हैं।

पूनम श्रीवास्तव ने कहा…

kavita ji
basantibayaar ke khusbhari rango ke saath hi saath aapne kitni kushalta se badhte hue pradushan ki taraf bhi ishhar kar diya hai jiske badhte tej kadmose prakriti ki hariyaali bhithithak kar rah gai hai. man ko behad prabhavit kar gai aapki basanti post.
bahut bahut badhai
poonam

बेनामी ने कहा…

"दर्द कितना छुपा हर जिगर में
बताती हैं किसी की खामोशियाँ
हर तरफ शोर आई बसंत बहार
चलो छोडो जिंदगी की तन्हाईयाँ!"

समसामयिक भाव तथा सन्देश भी

Satish Saxena ने कहा…

बहुत खूब .....!
शुभकामनायें !

ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने कहा…

सुन्दर,भावपूर्ण कविता !
बसंत ऋतु की शुभकामनाएँ !

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

मुझे बता बासंती खुशरंग बयार तू
भला क्यों रहती है कटी-कटी सी
गाँव तो ठीक, शहर की बगिया में
क्यों मुझे दिखती है ठिठकी सी
बहुत सुन्दर पंक्तियां हैं कविता जी.

vijay ने कहा…

bahut hi badiya rachna.. kavita ji ab hamen aapki agli post ka itzaar hai....

Minoo Bhagia ने कहा…

basant mubarak ho kavita

Gaje Singh ने कहा…

Kavitaji,
Khub fali phuli.
par apna muluk ki yaad kabhi na bhuli.