दर्द कितना छुपा हर जिगर में
बताती हैं किसी की खामोशियाँ
हर तरफ शोर आई बसंत बहार
चलो छोडो जिंदगी की तन्हाईयाँ!
यूँ तो जुगुनुओं सी चमक वाले
हर दिन दिखते नज़ारे जहाँ कहीं
पर चांद सी हँसती खिलखिलाती
हरतरफ नजर आती सिर्फ तुम्हीं!
तुम्हारा यूँ दबे पाँव न होता आना
तो कहाँ संभव था तुमसे मिल पाना
हम कहाँ कोई ताना बाना बुन पाते
अपनी ही उलझनों में सिर खपाते!
मुझे बता बासंती खुशरंग बयार तू
भला क्यों रहती है कटी-कटी सी
गाँव तो ठीक, शहर की बगिया में
क्यों मुझे दिखती है ठिठकी सी
....कविता रावत
बताती हैं किसी की खामोशियाँ
हर तरफ शोर आई बसंत बहार
चलो छोडो जिंदगी की तन्हाईयाँ!
यूँ तो जुगुनुओं सी चमक वाले
हर दिन दिखते नज़ारे जहाँ कहीं
पर चांद सी हँसती खिलखिलाती
हरतरफ नजर आती सिर्फ तुम्हीं!
तुम्हारा यूँ दबे पाँव न होता आना
तो कहाँ संभव था तुमसे मिल पाना
हम कहाँ कोई ताना बाना बुन पाते
अपनी ही उलझनों में सिर खपाते!
मुझे बता बासंती खुशरंग बयार तू
भला क्यों रहती है कटी-कटी सी
गाँव तो ठीक, शहर की बगिया में
क्यों मुझे दिखती है ठिठकी सी
....कविता रावत
61 टिप्पणियां:
आदरणीय कविता रावत जी
नमस्कार !
बसंत के आगमन पर लिखी आपकी यह कविता बहुत अच्छी लगी ...आपका आभार
मुझे बता बासंती खुशरंग बयार तू
भला क्यों रहती है कटी-कटी सी
गाँव तो ठीक, शहर की बगिया में
क्यों मुझे दिखती है ठिटकी सी
रुत परिवर्तन पर आधारित इस सुमधुर रचना के साथ ही वसंत आगमन पर आपको शुभकामनाएं...
बढ़िया, बसंत पंचमी की शुभकामनाएँ...
शहरों में प्रकृति के उत्साह को भी नज़र लग जाती है आधुनिकता की।
Basant ka uttasav aap ko mubarak ho
......मुझे बता बासंती खुशरंग बयार तू
भला क्यों रहती है कटी-कटी सी......
बसंत पंचमी की शुभकामनाएँ...आभार.........
तुम्हारा यूँ दबे पाँव न होता आना
तो कहाँ संभव था तुमसे मिल पाना
हम कहाँ कोई ताना बाना बुन पाते
अपनी ही उलझनों में सिर खपाते!
yun to tu khilkhilati hui aati hai
per pradushan ke shor me....
per haule se tu chhu leti hai
aur wah waqt basanti ho jata hai
बहुत सुंदर ...जीवंत मनोभावों का चित्रण .......... स्वागत बसंत
तुम्हारा यूँ दबे पाँव न होता आना
तो कहाँ संभव था तुमसे मिल पाना
हम कहाँ कोई ताना बाना बुन पाते
अपनी ही उलझनों में सिर खपाते!
आपने बहुत कुशलता से बसंत आगमन का चित्रण किया है ...शुक्रिया
मुझे बता बासंती खुशरंग बयार तू
भला क्यों रहती है कटी-कटी सी
गाँव तो ठीक, शहर की बगिया में
क्यों मुझे दिखती है ठिटकी सी
..प्रकृति का यह अद्वितीय मानवीकरण बहुत ही प्रभावशाली लगा .... मन को छू गयी आपकी यह रचना ..आपको बसंत की बहुत शुभकामना
pyari si rachna...:)
बसंत पंचमी के अवसर में मेरी शुभकामना है की आपकी कलम में माँ शारदे ऐसे ही ताकत दे...:)
तुम्हारा यूँ दबे पाँव न होता आना
तो कहाँ संभव था तुमसे मिल पाना
हम कहाँ कोई ताना बाना बुन पाते
अपनी ही उलझनों में सिर खपाते!
.. हमको तो प्यार का इज़हार सी करती प्रेमिका का यह बासंती रंग भा गया ....बसंत की इस शुभबेला की आपको बधाई
यूँ तो जुगुनुओं सी चमक वाले
हर दिन दिखते नज़ारे जहाँ कहीं
पर चांद सी हँसती खिलखिलाती
हरतरफ नजर आती सिर्फ तुम्हीं!
प्यार का बसंती रंग जब सर चढ़कर बोलता है तो सब जगह अपना ही प्रेम नज़र आता है| वाह कितनी खूबसूरती से आपने एक साथ फिजा में बसंती रंग घोल दिया है...तस्वीर का आकर्षण भी लाजवाब है| बहुत बधाई आपको बसंत पंचमी की|
उलझनें अपनी जगह हैं, आगतें अपनी जगह.
बसंत आगमन पर हार्दिक शुभकामनाओं सहित...
हर तरफ शोर आई बसंत बहार
चलो छोडो जिंदगी की तन्हाईयाँ!
बहुत सुन्दर । बसंत के आगम पर बधाई । सुशील जी का शेर पसंद आया
तुम्हारा यूँ दबे पाँव न होता आना
तो कहाँ संभव था तुमसे मिल पाना
बहुत ही सुन्दर शब्दों का संगम है इस रचना में ।
कित्ती सुन्दर रचना ....वसंत पंचमी तो बहुत प्यारा त्यौहार है..इसके साथ मौसम भी कित्ता सुहाना हो जाता है. वसंत पंचमी पर ढेर सारी बधाई !!
_______________________
'पाखी की दुनिया' में भी तो वसंत आया..
कविता जी शहर में तो न कहीं बाग, न बागवानी ना फुलवारी की जगह बची हुई है तो वहI वसंत ऋतू ठिठकी ही दृष्टिगत होगी सच ही लिखा आपने .
मुझे बता बासंती खुशरंग बयार तू
भला क्यों रहती है कटी-कटी सी
गाँव तो ठीक, शहर की बगिया में
क्यों मुझे दिखती है ठिटकी सी
कविता जी! कितनी मासूमियत से आपने बसंत के आने की खबर दी! ......शहर की प्रदुषण भरी जिंदगी में बसंत कहीं एक कोने में ठिठक कर रह गया है ..... एक गहरे चिंतन को बखूबी पेश किया है आपने... आपकी लेखनी के कायल है हम.. ब्लॉग पर यूँ ही आप लिखती रही, बसंत सदा आप पर मेहरबान रहे, ऐसी मनोकामना है ..
दर्द कितना छुपा हर जिगर में
बताती हैं किसी की खामोशियाँ
हर तरफ शोर आई बसंत बहार
चलो छोडो जिंदगी की तन्हाईयाँ!
..आपका छुपे दर्द को बसंत के माध्यम से बयां करने का यह अद्भुत अंदाज लगा है. बसंत के शोर में अपने मन की तन्हाईओं को हम कुछ कम जरुर करेंगें. बसंत ऋतू के आगमन पर आपको बहुत बधाई ..आप यूँ ही लिखते रहें आप सरस्वती माँ से यही प्रार्थना है
मुझे बता बासंती खुशरंग बयार तू
भला क्यों रहती है कटी-कटी सी
गाँव तो ठीक, शहर की बगिया में
क्यों मुझे दिखती है ठिठकी सी
बहुत अच्छी कविता.
वसंत पंचमी पर ढेर सारी बधाई.
दर्द कितना छुपा हर जिगर में
बताती हैं किसी की खामोशियाँ
हर तरफ शोर आई बसंत बहार
चलो छोडो जिंदगी की तन्हाईयाँ!
बहुत सुन्दर कविता जी , मगर क्या यह सचमुच इतना आसान है ?
कविता जी! एक अनोखे दर्द से परिचय हुआ... प्रारम्भमें लगा कि यह कविता आपके मनोभाव के विपरीत है, लेकिन अंत तक भूल का पता चल गया और तब लगा कि यह अपका परिचय पत्र लिये है!!
बहुत ही बढ़िया.आपकी कलम को ढेरों बसंतई सलाम.
बहुत सुंदर रचना,आप को बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं.
दर्द कितना छुपा हर जिगर में , बताती हैं किसी की खामोशिया...
पढने वाले कम होते हैं ...
गाँव तो ठीक , शहर की बगिया में क्यूँ दिखती ठिठकी सी ...
बता दिया क्या ??
वसंत के शोर ने कुछ तो कम की तन्हाई , जो इतनी प्यारी कविता मिली !
कविता जी आपकी कविता ने दबे पाँव से रंगों की छटा बिखेर ली |
बसंत पंचमी की बहुत बहुत शुभकामनायें |
मुझे बता बासंती खुशरंग बयार तू
भला क्यों रहती है कटी-कटी सी
गाँव तो ठीक, शहर की बगिया में
क्यों मुझे दिखती है ठिठकी सी
कविता रावत जी , बहुत ही गहरा सा भाव लिये बेहतरीन कविता .......... . सुंदर प्रस्तुति.
.
सैनिक शिक्षा सबके लिये
तुम्हारा यूँ दबे पाँव न होता आना
तो कहाँ संभव था तुमसे मिल पाना
हम कहाँ कोई ताना बाना बुन पाते
अपनी ही उलझनों में सिर खपाते!
व
मुझे बता बासंती खुशरंग बयार तू
भला क्यों रहती है कटी-कटी सी
गाँव तो ठीक, शहर की बगिया में
क्यों मुझे दिखती है ठिठकी सी
बसंत का तो शहर में शोर ही शोर है यहाँ तो वेलनटाइन डे की धूम रहती है बसंत की इस आहट में कुछ प्यार करने वालों के लिए भी आपने अप्रत्यक्ष रूप से ही सही लेकिन बहुत कुछ कहा लगता है ... आपकी रचनाओं में बहुत से अर्थ छुपे रहते है, पाठक जो जैसे समझे आप उसे उस तरह समझने के लिए उस पर छोड़ देती हैं, आपका यह प्यारा अंदाज बार बार आपका ब्लॉग पढने के लिए प्रेरित करता रहती है खींचता है अपनी ओर.... बसंत की बसंती रंगों भरी लाजवाब रचना के लिए शुक्रिया
Hi..
Kavitaon main jab vasant ke...
rang samate hain...
shabd bhav se oot-prot ho..
judte jaate hain...
Sundar kavita...
Deepak...
मुझे बता बासंती खुशरंग बयार तू
भला क्यों रहती है कटी-कटी सी
गाँव तो ठीक, शहर की बगिया में
क्यों मुझे दिखती है ठिठकी सी
..shahar mein vasant ke aane kee khabar kahan hoti hai, kisi baag bageeche mein kuch vasant rang dikh gaye mana liya vasant bas.. gaon mein jisne vasant kee bahar dekhi ho waha kahan shahar mein vasant kee kalpna kar sakta hai use to newspaper TV aadi se pata chalta hai...
bahut se arth samet diye hain aapne aur bahut vasant ne kam se kam aapko itne sundar kavita lkhne ke liye prerit kiya aur aapne bakhubi wah kaam kiya dhanyavad aapko ji!!
man mugdh kar gayi basanti rachna..
bahut pyari post.
मनोभावों का सुन्दर चित्रण......बेहद पसंद आया।
मुकम्मल जहां की तलाश में ही तो युगों से भटकता रहा है आदमी-प्रायः गांव से शहर और यदा-कदा शहर से गांव भी।
.... हर तरफ शोर "आई बसंत बहार,चलो छोडो जिंदगी की तन्हाईयाँ!" ....... एक बेहतरीन कविता...... चार पदों में ही आपने जिंदगी के तमाम पहलुओं से रू-ब-रू करा दिया. आभार.
बसंत के आगमन की शुभकामनाएँ. सुंदर कविता है, बसंत सी सुंदर!
घुघूती बासूती
सुन्दर रचना ।
ये बसंत यूँ ही खिला रहे ।
तुम्हारा यूँ दबे पाँव न होता आना
तो कहाँ संभव था तुमसे मिल पाना
हम कहाँ कोई ताना बाना बुन पाते
अपनी ही उलझनों में सिर खपाते!
bahut badhiya.........
बहुत ही गहरे और अद्भूत भाव संजोय है आपने कविता जी इस रचना मेँ । आभार ।
" देखे थे जो मैँने ख़्वाब.........गजल "
तुम्हारा यूँ दबे पाँव न होता आना
तो कहाँ संभव था तुमसे मिल पाना
हम कहाँ कोई ताना बाना बुन पाते
अपनी ही उलझनों में सिर खपाते!
बिलकुल ठीक बात -
सटीक सुंदर कविता .
सुन्दर और भावपूर्ण कविता । बधाई।
कविता जी खूबसूरत कविता के लिए आपको बहुत बहुत बधाई |
मुझे बता बासंती खुशरंग बयार तू
भला क्यों रहती है कटी-कटी सी
गाँव तो ठीक, शहर की बगिया में
क्यों मुझे दिखती है ठिठकी सी
....भावपूर्ण ..... बहुत सुन्दर...
बसंती बयार ठिठकी सी नहीं...क्या खूब झोंके के साथ आई है...और इस खुशबू से हमें भी सराबोर कर गयी
सुन्दर कविता
कविता जी बगिया है ही नहीं................मात्र उसकी समाधियाँ बची हैं............तो भला वसन्त की बयार क्यों न ठिठक जाये........................अपने कल्लोल से उसे आगे बढ़ाने वाले नव पल्लव............नव किसलय अब कहाँ.............................जो कुछ भी बचे दिख रहे हैं..वे मात्र धरोहर हैं....प्राचीन इमारतों की तरह।
बसन्त की बयार के लिये प्रकृति का शृंगार चाहिए।
ये शृंगार वृक्षों से होगा। अतः वृक्ष स्वयं लगाइये................अन्य लोगों को भी प्रेरित कीजिये..............तथा इसकी सूचना हमें दीजिये।
इस पावन यज्ञ में आपकीभी कम से कम एक आहुति अपेक्षित है।
दर्द कितना छुपा हर जिगर में
बताती हैं किसी की खामोशियाँ
हर तरफ शोर आई बसंत बहार
चलो छोडो जिंदगी की तन्हाईयाँ!
ये पंक्तियाँ लाजवाब लगीं .......
दिल की गहराईयों को छूने वाली एक खूबसूरत, संवेदनशील और मर्मस्पर्शी प्रस्तुति. आभार.
सादर,
डोरोथी.
sunder ehsaas
तुम्हारा यूँ दबे पाँव न होता आना
तो कहाँ संभव था तुमसे मिल पाना
हम कहाँ कोई ताना बाना बुन पाते
अपनी ही उलझनों में सिर खपाते!
दिल की गहराईयों को छूने वाली एक खूबसूरत, संवेदनशील और मर्मस्पर्शी प्रस्तुति.
आपकी लेखनी के कायल है हम.. ब्लॉग पर यूँ ही आप लिखती रही, बसंत सदा आप पर मेहरबान रहे, ऐसी मनोकामना है ..
तुम्हारा यूँ दबे पाँव न होता आना
तो कहाँ संभव था तुमसे मिल पाना
हम कहाँ कोई ताना बाना बुन पाते
अपनी ही उलझनों में सिर खपाते!
वसंत का स्वागत करती बेहतरीन प्रस्तुति ।
आभार ।
.
sir ji aaj ke liye nahi likh rahe ho kya...
तुम्हारा यूँ दबे पाँव न होता आना
तो कहाँ संभव था तुमसे मिल पाना
हम कहाँ कोई ताना बाना बुन पाते
अपनी ही उलझनों में सिर खपाते!
..aapne bahut hi badiya tareeke se vasant ka swagat kiya hai .valentine day ke liye bhi yah tofa kama nahi! behtreen prastuti ke liye aabhari hain
अंतिम पंक्तियाँ काफी कुछ कहती हैं।
kavita ji
basantibayaar ke khusbhari rango ke saath hi saath aapne kitni kushalta se badhte hue pradushan ki taraf bhi ishhar kar diya hai jiske badhte tej kadmose prakriti ki hariyaali bhithithak kar rah gai hai. man ko behad prabhavit kar gai aapki basanti post.
bahut bahut badhai
poonam
"दर्द कितना छुपा हर जिगर में
बताती हैं किसी की खामोशियाँ
हर तरफ शोर आई बसंत बहार
चलो छोडो जिंदगी की तन्हाईयाँ!"
समसामयिक भाव तथा सन्देश भी
बहुत खूब .....!
शुभकामनायें !
सुन्दर,भावपूर्ण कविता !
बसंत ऋतु की शुभकामनाएँ !
मुझे बता बासंती खुशरंग बयार तू
भला क्यों रहती है कटी-कटी सी
गाँव तो ठीक, शहर की बगिया में
क्यों मुझे दिखती है ठिठकी सी
बहुत सुन्दर पंक्तियां हैं कविता जी.
bahut hi badiya rachna.. kavita ji ab hamen aapki agli post ka itzaar hai....
basant mubarak ho kavita
Kavitaji,
Khub fali phuli.
par apna muluk ki yaad kabhi na bhuli.
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