दर्द कितना छुपा हर जिगर में
बताती हैं किसी की खामोशियाँ
हर तरफ शोर आई बसंत बहार
चलो छोडो जिंदगी की तन्हाईयाँ!
यूँ तो जुगुनुओं सी चमक वाले
हर दिन दिखते नज़ारे जहाँ कहीं
पर चांद सी हँसती खिलखिलाती
हरतरफ नजर आती सिर्फ तुम्हीं!
तुम्हारा यूँ दबे पाँव न होता आना
तो कहाँ संभव था तुमसे मिल पाना
हम कहाँ कोई ताना बाना बुन पाते
अपनी ही उलझनों में सिर खपाते!
मुझे बता बासंती खुशरंग बयार तू
भला क्यों रहती है कटी-कटी सी
गाँव तो ठीक, शहर की बगिया में
क्यों मुझे दिखती है ठिठकी सी
....कविता रावत
बताती हैं किसी की खामोशियाँ
हर तरफ शोर आई बसंत बहार
चलो छोडो जिंदगी की तन्हाईयाँ!
यूँ तो जुगुनुओं सी चमक वाले
हर दिन दिखते नज़ारे जहाँ कहीं
पर चांद सी हँसती खिलखिलाती
हरतरफ नजर आती सिर्फ तुम्हीं!
तुम्हारा यूँ दबे पाँव न होता आना
तो कहाँ संभव था तुमसे मिल पाना
हम कहाँ कोई ताना बाना बुन पाते
अपनी ही उलझनों में सिर खपाते!
मुझे बता बासंती खुशरंग बयार तू
भला क्यों रहती है कटी-कटी सी
गाँव तो ठीक, शहर की बगिया में
क्यों मुझे दिखती है ठिठकी सी
....कविता रावत