उसे स्वतंत्र नहीं कहा जा सकता है ।
जिसे अत्यधिक स्वतंत्रता मिल जाय,
वह सबकुछ चौपट करने लगता है ।।
फरिश्तों की गुलामी करने से,
शैतानों पर हुकूमत करना भला ।
पिंजरे में बंद शेर की तरह जीने से,
आवारा पशु की तरह रहना भला ।।
दासता की हालत में कोई नियम लागू नहीं होता है ।
स्वतंत्रता खोने वाले के पास कुछ नहीं बचता है।।
दूसरों की गुलामी के निवाले से हृष्ट-पुष्ट हो जाने से,
स्वतंत्रता के साथ दुर्बल बने रहना भला ।
झूठ-फरेब, भ्रष्टाचार, दुराचार-अनाचार भरी शान से
गरीब रहकर घर की रुखी-सूखी खाकर जीना भला ।।
.........कविता रावत