उखड़े हुए पेड़ पर हर कोई कुल्हाड़ी मारता है - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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सोमवार, 26 नवंबर 2018

उखड़े हुए पेड़ पर हर कोई कुल्हाड़ी मारता है

मक्खन की हंड़िया सिर पर रखकर धूप में नहीं चलना चाहिए
बारूद के ढ़ेर पर बैठकर आग का खेल नहीं खेलना चाहिए

छोटा से पैबंद न लगाने पर बहुत बड़ा छिद्र बन जाता है
धारदार औजारोंं से खेलना खतरे से खाली नहीं होता है

काँटों पर चलने वाले नंगे पांव नहीं चला करते हैं
चूहों के कान होते हैं जो दीवारों में छिपे रहते हैं

नमक बिखरा तो पूरा बटोरा नहीं जा सकता है
उखड़े हुए पेड़ पर हर कोई कुल्हाड़ी मारता है
                                 .....कविता रावत 

7 टिप्‍पणियां:

Anuradha chauhan ने कहा…

बहुत सुंदर 👌

kuldeep thakur ने कहा…

जय मां हाटेशवरी...
अनेक रचनाएं पढ़ी...
पर आप की रचना पसंद आयी...
हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 27/11/2018
को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की गयी है...
इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (27-11-2018) को "जिन्दगी जिन्दगी पे भारी है" (चर्चा अंक-3168) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुन्दर रचना

HARSHVARDHAN ने कहा…

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन विश्व पर्यावरण संरक्षण दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

छोटी बातें पर दूर की कौड़ी ...
हर लाइन गहरी सटीक और स्पष्ट बात रखती हुयी है ... चुटीला अंदाज़ है आपका अपनी बात रखने का ... बहुत शुभकामनायें ...

गिरधारी खंकरियाल ने कहा…

जड़े मजबूत ही रहनी चाहिये। उखड़नी न पाये।