मक्खन की हंड़िया सिर पर रखकर धूप में नहीं चलना चाहिए
बारूद के ढ़ेर पर बैठकर आग का खेल नहीं खेलना चाहिए
छोटा से पैबंद न लगाने पर बहुत बड़ा छिद्र बन जाता है
धारदार औजारोंं से खेलना खतरे से खाली नहीं होता है
काँटों पर चलने वाले नंगे पांव नहीं चला करते हैं
चूहों के कान होते हैं जो दीवारों में छिपे रहते हैं
नमक बिखरा तो पूरा बटोरा नहीं जा सकता है
उखड़े हुए पेड़ पर हर कोई कुल्हाड़ी मारता है
बारूद के ढ़ेर पर बैठकर आग का खेल नहीं खेलना चाहिए
छोटा से पैबंद न लगाने पर बहुत बड़ा छिद्र बन जाता है
धारदार औजारोंं से खेलना खतरे से खाली नहीं होता है
काँटों पर चलने वाले नंगे पांव नहीं चला करते हैं
चूहों के कान होते हैं जो दीवारों में छिपे रहते हैं
नमक बिखरा तो पूरा बटोरा नहीं जा सकता है
उखड़े हुए पेड़ पर हर कोई कुल्हाड़ी मारता है
.....कविता रावत
7 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर 👌
जय मां हाटेशवरी...
अनेक रचनाएं पढ़ी...
पर आप की रचना पसंद आयी...
हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 27/11/2018
को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की गयी है...
इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (27-11-2018) को "जिन्दगी जिन्दगी पे भारी है" (चर्चा अंक-3168) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर रचना
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन विश्व पर्यावरण संरक्षण दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
छोटी बातें पर दूर की कौड़ी ...
हर लाइन गहरी सटीक और स्पष्ट बात रखती हुयी है ... चुटीला अंदाज़ है आपका अपनी बात रखने का ... बहुत शुभकामनायें ...
जड़े मजबूत ही रहनी चाहिये। उखड़नी न पाये।
एक टिप्पणी भेजें