...कविता रावत
आजकल गर्मी के तेवर बड़े तीखे हैं। नौतपा आकर चला गया लेकिन मौसम का मिजाज कम होने के स्थान पर और भी अधिक गरमाया हुआ है। इंसान तो इंसान प्रकृति के जीव-जंतु, पेड़-पौधे, फूल-पत्तियाँ कुछ मुरझाते तो कुछ सूखते चले जा रहे हैं। हमारे बग़ीचे का भी हाल बुरा है। छोटे-छोटे कई नाजुक पौधे तो दम तोड़ चुके हैं और कुछ यदि दो-चार दिन बारिश न हुई तो उन्हें भी बेदम होते देर नहीं लगेगी। पानी का एक समय निर्धारित हैं और वह भी मुश्किल से एक घंटा आता है। शाम को ऑफिस से आकर जैसे ही पानी आया नहीं कि घर का पानी भरकर बग़ीचे में पाइप से पानी देने लग जाते हैं लेकिन इस बढ़ती गर्मी के मारे पानी कहाँ जाता है पता ही नहीं चलता। पेड़-पौधों को मुरझाते और सूखते देख अपना गला भी सूखने लगता है। लेकिन क्या करें, कोई दूसरा रास्ता भी भी नहीं है, इसलिए उन पेड़-पौधे को देख मन को तसल्ली देने बैठ जाते हैं जो इस भीषण गर्मी में भी अपना दमखम बनाये रखकर हमारा हौसला बुलंद किये हुए मिलते हैं। इनमें वे कांटेदार पौधे हैं जो भीषण से भीषण गर्मी में ऐसे तने रहते हैं जैसे कोई तपस्वी अपनी तपस्या में लीन हों, जिन्हें दीन-दुनिया में क्या चल रहा है उससे को फर्क नहीं पड़ता है। खैर ये तो रही कांटेदार पेड़ों की बात। अब बात करती हूँ इसके अलावा हमारे बगीचे में जो पेड़ थोड़ा-बहुत हमारे पानी देने पर बड़े खुश होकर इसका प्रतिफल देने में कोई हिचक नहीं करते वे हैं केले और पपीते के पेड़। पहले शुरू करती हूँ केले के पेड़ से। पिछले वर्ष जब पहली बार बगीचे के केले के पेड़ में पहली बार केले लगे तो मन को बड़ी ख़ुशी हुई कि चलो मेहनत काम आयी, हालांकि तब उसमें गिनती के पांच केले लगे थे, वे भी पककर खाने को मिलते उससे पहले ही तीन तो गिलहरी खा गयी दो शेष बचे तो हमने प्रसाद समझकर खाया। इस वर्ष केले के दूसरे पेड़ पर लगभग चार दर्जन केले आये तो दिल यह देखकर बाग़-बाग़ हो गया। हर दिन इन गर्मियों में एक-दो, एक-दो कर वे पकते चलते गए और हम उन्हें तोड़कर कुछ खाते गए तो कुछ आस-पड़ोस से लेकर नाते-रिश्तेदारों में प्रसाद की तरह बांटते चले गए। सभी ने स्वादिष्ट केलों की जमकर तारीफ़ के तो मन को बड़ा सुकून मिला। इसके अलावा दूसरा जो पेड़ है वह है पपीता का पेड़। हमने शुरुवात में 15-20 पपीते के पेड़ इधर-उधर से लाकर बरसात के मौसम में लगाए थे, लेकिन कोई गल गया तो किसी को दीमक खा गया, जिनमें से पांच गिनती के पेड़ ही बच पाए। लेकिन ख़ुशी की बात है कि इस भीषण गर्मी वे दो-चार दिन के अंतराल में एक आध पका पपीता खाने को दे ही देते हैं। वे भले ही छोटी कद काठी के होते हैं लेकिन घर के पेड़ों के फलों की मिठास की बात ही कुछ और होती हैं। पपीते के पेड़ को भी केले के पेड़ की तरह ही ज्यादा पानी की जरुरत होती है। इसलिए इन पर विशेष ध्यान देते हुए अपेक्षाकृत ज्यादा पानी देना पड़ता है वर्ना इसकी पत्तियां एक-एक कर सूखती चली जाती हैं। अभी इनसे पपीते खाने को मिल रहे हैं, तो मन उत्साहित हैं कि इस बरसात में बगीचे के किनारे-किनारे और पेड़ लगाए जाएंगे। इसके लिए हमने पहले से ही बीज सुखाकर रख लिए हैं। बस अब बरसात की प्रतीक्षा है, जैसे ही बादल अपनी पहली फुहार से बगीचे का तन-मन भिगोएंगे वैसे ही झटपट हम बीज रोपेंगे और अगली बरसात के पहले गर्मियों में इसके रसीले फलों का सेवन करेंगे, क्योंकि बरसात में पपीते का पेड़ बड़े तेजी से बढ़ते हैं और अगली बरसात से पहले वे फल देने लायक बन जाते हैं।