मिटटी-पानी-हवा यही तो कुदरत के हैं वरदान - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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गुरुवार, 23 जून 2022

मिटटी-पानी-हवा यही तो कुदरत के हैं वरदान

प्रकृति का वरदान, नहीं संभलता इंसान 

मिटटी-पानी-हवा यही तो कुदरत के हैं वरदान 
मानव तो धरती पर निश्चित समय का है मेहमान 
नदी, कुएँ, झील, बावड़ी, सागर से रखो अपनापन 
ढ़लती उम्र में साथ इनका भुला न पाओगे बचपन 
हरे-भरे पेड़-पौधे, पशु-पक्षी करते सबको हैरान है 
सदियों से जुड़ाव है, यही तो मानव की पहचान है 
जल-जंगल-जमीन की रक्षा का सबका अभियान हो 
पर्यावरण चेतना से सम्भलता अपना हिन्दुस्तान हो 
मिटटी-पानी-हवा यही तो कुदरत के हैं वरदान 
मानव तो धरती पर निश्चित समय का है मेहमान 
                      आजकल 
हवा विषैली, पानी जहरीला, वातावरण में है बेचैनी 
बढ़ते ध्वनि प्रदूषण ने सुख-शांति सबकी है छीनी 
कटते पर्वत, धँसती धरती और धधक रही ज्वाला 
प्रकृति देती जीवन, हम पिलाते जहर का प्याला 


समय का जिंदगी में यह कैसा मोड़ है 

समय का जिंदगी में यह कैसा मोड़ है 
रात-दिन जिसमें सबकी भाग-दौड़ है 
समय अच्छा-बुरा सबका आता-जाता है 
कभी सुख, कभी दुःख, चलता रहता है 
बहरा है समय नहीं किसी की सुनता है 
अँधा है फिर भी सब पर नज़र रखता है 
सुख-सुविधा भोगने की मची होड़ है 
बुरे वक्त का नहीं यहाँ कोई तोड़ है 
समय का जिंदगी में यह कैसा मोड़ है 
रात-दिन जिसमें सबकी भाग-दौड़ है 


जी.एस.कंडारी, 
फिल्म असिस्टेंट (सेवानिवृत्त) 
एच आर डी मिनिस्ट्री 
एनसीईआरटी, नई दिल्ली  

ग्राम- स्यूंसी, पट्टी सावली, 
तहसील थैलीसैण  
जिला पौड़ी गढ़वाल 
उत्तराखंड 

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