मिटटी-पानी-हवा यही तो कुदरत के हैं वरदान
मानव तो धरती पर निश्चित समय का है मेहमान
नदी, कुएँ, झील, बावड़ी, सागर से रखो अपनापन
ढ़लती उम्र में साथ इनका भुला न पाओगे बचपन
हरे-भरे पेड़-पौधे, पशु-पक्षी करते सबको हैरान है
सदियों से जुड़ाव है, यही तो मानव की पहचान है
जल-जंगल-जमीन की रक्षा का सबका अभियान हो
पर्यावरण चेतना से सम्भलता अपना हिन्दुस्तान हो
मिटटी-पानी-हवा यही तो कुदरत के हैं वरदान
मानव तो धरती पर निश्चित समय का है मेहमान
आजकल
नदी, कुएँ, झील, बावड़ी, सागर से रखो अपनापन
ढ़लती उम्र में साथ इनका भुला न पाओगे बचपन
हरे-भरे पेड़-पौधे, पशु-पक्षी करते सबको हैरान है
सदियों से जुड़ाव है, यही तो मानव की पहचान है
जल-जंगल-जमीन की रक्षा का सबका अभियान हो
पर्यावरण चेतना से सम्भलता अपना हिन्दुस्तान हो
मिटटी-पानी-हवा यही तो कुदरत के हैं वरदान
मानव तो धरती पर निश्चित समय का है मेहमान
आजकल
हवा विषैली, पानी जहरीला, वातावरण में है बेचैनी
बढ़ते ध्वनि प्रदूषण ने सुख-शांति सबकी है छीनी
कटते पर्वत, धँसती धरती और धधक रही ज्वाला
प्रकृति देती जीवन, हम पिलाते जहर का प्याला
समय का जिंदगी में यह कैसा मोड़ है
समय का जिंदगी में यह कैसा मोड़ है
रात-दिन जिसमें सबकी भाग-दौड़ है
समय अच्छा-बुरा सबका आता-जाता है
कभी सुख, कभी दुःख, चलता रहता है
बहरा है समय नहीं किसी की सुनता है
अँधा है फिर भी सब पर नज़र रखता है
सुख-सुविधा भोगने की मची होड़ है
बुरे वक्त का नहीं यहाँ कोई तोड़ है
रात-दिन जिसमें सबकी भाग-दौड़ है
समय अच्छा-बुरा सबका आता-जाता है
कभी सुख, कभी दुःख, चलता रहता है
बहरा है समय नहीं किसी की सुनता है
अँधा है फिर भी सब पर नज़र रखता है
सुख-सुविधा भोगने की मची होड़ है
बुरे वक्त का नहीं यहाँ कोई तोड़ है
समय का जिंदगी में यह कैसा मोड़ है
रात-दिन जिसमें सबकी भाग-दौड़ है
रात-दिन जिसमें सबकी भाग-दौड़ है
एच आर डी मिनिस्ट्री
एनसीईआरटी, नई दिल्ली
एनसीईआरटी, नई दिल्ली
ग्राम- स्यूंसी, पट्टी सावली,
तहसील थैलीसैण
जिला पौड़ी गढ़वाल
उत्तराखंड
टीप: हमारे 'अतिथि लेखन' कॉलम हेतु रचनाएँ सादर आमंत्रित हैं। कृपया अपनी रचनाएँ हमें ईमेल (kakhushi2003@gmail.com ) द्वारा प्रेषित करें।
10 टिप्पणियां:
पर्यावरण पर अच्छी रचना ।
सही कहा आपने कविता जी, प्रकृति ने हमें वरदान दिया है और हम नासुकरो की तरह उसे नष्ट किए जा रहे हैं, बेहतरीन आलेख 🙏
Very well written by Shri GS Kandari ji we should be glad that we are living in a nation which is rich in natural resources.
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शनिवार (25-06-2022) को चर्चा मंच "गुटबन्दी के मन्त्र" (चर्चा अंक-4471) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
पर्यावरण पर बेहतरीन आलेख परिवारिक व्यस्ताओं के कारण बहुत दिनों बाद ब्लॉग पर आना हुआ पढ़कर अच्छा लगा!
पर्यावरण संरक्षण को प्रेरित करती रचना। बहुत सुंदर और सार्थक प्रयास।
पर्यावरण पर सराहनीय सृजन।
हार्दिक बधाई
पर्यावरण संरक्षण पर बहुत ही सराहनीय पोस्ट ।बहुत आभार कविता जी ।
उम्दा एवं सराहनीय प्रस्तुति।
पर्यावरण पर बहुत सुंदर सृजन।
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