इंटरनेट के बिना एक दिन - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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गुरुवार, 3 नवंबर 2022

इंटरनेट के बिना एक दिन

इंटरनेट से पहले जब दूरभाष या टेलीफोन का आविष्कार हुआ तो यह मानवीय जीवन के लिए एक उपयोगी वरदान था। क्योँकि तब यह दूर देश-परदेश में रहने वाले अपने लोगों से बातचीत का एक सरलतम सुविधा माध्यम था। टेलीफोन आने से समय की बचत हुई, सन्देश या समाचार सहज रूप से मिलने लगे।  इसके साथ ही व्यापार और कार्यालय सञ्चालन में यह एक विश्वसनीय साथी के रूप में हमारा साथी बना। समय बदला तो स्थाई रूप से एक सामने टिका रहने वाला  टेलीफोन 'सेल्युलर फ़ोन' के रूप में आया तो 'घर से बाहर' भी यह कुछ पैसे वाले लोगों के हाथों में दिखने लगा। धीरे-धीरे जैसे ही तकनीकी का विस्तार हुआ और इसकी जगह मोबाइल फ़ोन ने ली तो यह कुछ हाथों से होता हुआ हर हाथ की पहुँच गया,  फिर जैसे ही इंटरनेट सस्ता हुआ तो उसने मोबाइल क्या जमाना ही बदल कर रख दिया। 

आज का युग इंटरनेट का युग है। हम ऐसी पीढ़ी के लोग है जिन्होंने टेलीफोन से लेकर इंटरनेट के फैलते जाल को देखा है। हमने इसके भले और बुरे दोनों पहलुओं को देखा-परखा है। इसलिए आज हम भले ही इंटरनेट के बिना एक दिन क्या एक माह भी आराम से काट सकते हैं, लेकिन आज चिंतनीय स्थिति इस बात की है कि इसके बिना आज का युवा वर्ग एक दिन क्या एक मिनट भी चल पाने में असमर्थ नज़र आ रहा है। यह किसी नशे से कम नहीं है। भले ही यह आज हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग बन गया है और हमें इससे बहुत सुविधाएँ भी मिलती हैं, लेकिन इसका दुरूपयोग सबसे अधिक होना गंभीर चिंता का विषय है। क्योँकि आज इंटरनेट के माध्यम से कोई कब क्या गुल खिला दें, इसकी कोई कल्पना तक नहीं कर सकता है।  प्राचीनकाल में देश का युवा वर्ग देश का कर्णधार कहा जाता था। देश के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले युवा वर्ग ने ही अपनी स्वच्छ मानसिकता के बल पर देश को अंग्रेजों से स्वाधीन कराया। मगर तब यह इंटरनेट वाली संस्कृति हमारे देश में दूर-दूर तक नहीं थी। तब इसका नाम तक नहीं न था। मगर जैसे ही इंटरनेट संस्कृति का जन्म हुआ है, देश का युवा वर्ग और विद्यालयीन छात्र वर्ग अपने लक्ष्य से बहुत हद तक भटक गया है, वह अपने दायित्व निर्वहन से विमुख होता सा लगता है। 

आज यदि गंभीर चिंतन किया जाय तो हाथ में मोबाइल लिए देश का युवा वर्ग पथभ्रष्ट हो रहा है। यह युवा वर्ग की मानसिक कुंठाओं का ही परिणाम है कि हर दिन इस इंटरनेट की लत के कारण कई युवा आत्महत्या जैसा कदम बड़े पैमाने पर उठा रहे हैं। इंटरनेट का ही दुष्परिणाम है कि ठगी के कई नए-नए पैंतरे देखने को मिल रहे हैं।  देश के छोटे-छोटे बच्चों के हाथों में मोबाइल और उसमें इंटरनेट जैसी चीजें विनाश का पैगाम है। क्योँकि इससे आज लोगों की मन और बुद्धि कुंठित हो रही है, जिससे सोचने की क्षमता कमजोर हो रही हैं। इंटरनेट आने से जीवन सरपट भाग रहा है, यह कई मायने में लाभकारी है लेकिन इसके दुष्परिणामों पर समय रहते यदि अंकुश न लगा तो संभवत युवा पीढ़ी को पथभ्रष्ट होने से कोई बचा नहीं पायेगा।  इसलिए आज इस बात की आवश्यकता है कि इंटरनेट को केवल विशेष कार्यों में प्रयोग में लाने के लिए स्वत्रंतता दी जानी चाहिए, असामाजिक गतिविधियों में इसका प्रयोग पूर्ण रूप में प्रतिबंधित कर देना चाहिए।  

8 टिप्‍पणियां:

शिवम कुमार पाण्डेय ने कहा…

बिल्कुल सही लिखा है आपने। नई पीढ़ी की सोचने समझने की शक्तियां लगभग विलुप्त हो चुकी है।

Jyoti Dehliwal ने कहा…

कविता दी, इंटरनेट बूरा नहीं है। इससे हमें बहुत लाभ हुआ है। लेकिन यह उपयोग करने वाले पर निर्भर है कि वो इसका उपयोग कैसे करते है। आज की ज्यादातर युवा पीढ़ी अपने आप पर अंकुश नहीं लगा पा रही है और इसके जाल में फंसती जा रही है। विचारणीय आलेख।

Shantanu Sanyal शांतनु सान्याल ने कहा…

प्रभावशील लेखन, सामयिक विषय पर आलोकपात करती हुई सशक्त रचना, अभिनंदन ।

अनीता सैनी ने कहा…


जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज शुक्रवार(०४-११-२०२२ ) को 'चोटियों पर बर्फ की चादर'(चर्चा अंक -४६०२) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर

मन की वीणा ने कहा…

सामायिक चिंतन देता सार्थक लेख।
काश ये संभव हो ...

MANOJ KAYAL ने कहा…

भावपूर्ण सृजन

जिज्ञासा सिंह ने कहा…

चिंतनशील मुद्दे पर सराहनीय और विचारणीय आलेख।

Asharfi Lal Mishra ने कहा…

सार्थक अभिव्यक्ति।