भोजपाल महोत्सव मेला - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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शनिवार, 17 दिसंबर 2022

भोजपाल महोत्सव मेला

भोजपाल महोत्सव मेले का आयोजन भेल दशहरा मैदान गोविन्दपुरा, भोपाल में हर वर्ष नवंबर से दिसंबर माह में विगत 7 वर्ष से भेल जनसेवा समिति, भोपाल द्वारा किया जा रहा है, जो कि 35 दिन चलता है। इस मेले का मुख्य उद्देश्य जनमानस में सामाजिक समरसता को प्रगाढ़ बनाना, उभरती प्रतिभाओं को मंच देना, महापुरुषों के जीवन वृतांत की प्रदर्शनी लगाकर जन जागरण करना है। इस आयोजन स्थल पर प्राॅपर्टी एक्सपो, ऑटोमोबाइल जोन, इलेक्ट्रॉनिक्स, फर्नीचर महासेल, फ़ूड जोन, सेल्फी जोन, बम्पर सेल, आर्ट गैलरी, हैण्डलूम जोन, केंद्र शासन एवं मध्य प्रदेश शासन के विभिन्न जनहितैषी योजनाओ की प्रदर्शनी आदि के स्टॉल्स भी लगाए जाते हैं। 
          भोपाल उत्सव मेले की तरह ही इस मेले को भी देखने के लिए हम भोपाल और प्रदेशवासियोँ को बेसब्री से इंतज़ार रहता है। हर दिन की दौड़.धूप के बीच हमें भी 15 दिसंबर को यह मेला देखने का मौका मिला तो सोचा क्यों न आपको भी इसकी कुछ झलकियाँ दिखाती चलूं। इस मेले को देखने के लिए जब मैं परिवार के साथ शाम को निकली तो उस समय अधिक भीड़.भाड़ नहीं थी। इसका कारण मेले में बिजली की आकर्षक साज.सज्जा होना है, जिसकी चमक-धमक की रौनक अँधेरा होने पर ही देखते बनती है। इसीलिए अधिकांश लोग देर शाम को ही इसे देखने अपने घरों से निकलते हैं। इस बार मेला हमें एक नए कलेवर के रूप में देखने को मिला। मुख्य द्वार के सामने ज्योतिर्लिंग और थोड़ी दूरी पर राजा भोज की विशाल प्रतिमा, जिसके नाम से यह मेला लगता है, विराजमान थी, जहाँ पर लोग बारी-बारी से सेल्फी और फोटो खिंचवाने में लगे हुए थे।        
         इस मेले में एकतरफ जहाँ हमें पहनने.ओढ़ने की कई तरह के कपड़ों की, घरेलू उपयोग में आने वाली सामान की, सौंदर्य प्रसाधन की, फर्नीचर आदि की दुकानें सजी मिली वहीँ दूसरी तरफ इनके बीच.बीच में कई छोटी.छोटी खाने-खजाने की दुकानें जैसे-.पानी पूरी, चाय-कॉफी, आइसक्रीम, गुड़िया के बाल आदि के साथ ही बच्चों के रंग-बिरंगे खेल-खिलौने बेचने वाले, इलेक्ट्रॉनिक सामान बेचने वाले, गुब्बारे वाले, लाइलप्पा बेचने वाले भी मिले, जो अपनी रोजी.रोटी की खातिर हर आते-जाते लोगों को उनकी दुकान से सामान खरीदने के लिए आवाज देते जा रहे थे। हर शहरी मेले में इनकी अपनी एक अलग ही दुनिया देखने को मिलती है। मेले में घरेलू उपयोग में आने वाले आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक, साज.सज्जा एवं विभिन्न प्रकार के फर्नीचर के स्टॉल भी बार-बार अपनी ओर ध्यान आकर्षित कर रहे थे। इन स्टॉल से कुछ लोग कुछ न कुछ सामान खरीद रहे थे तो कुछ अचार, चूरन की गोलियां, गजक बेचने वाली दुकान पर उसके स्वाद के चटकारे लेकर ही मगन हुए जा रहे थे। 
           मेला गाँव में लगे या शहर में, झूलों के बिना अधूरा है। ऐसे में मेला जाकर झूले न झूले तो घर आकर लगता है कि कुछ छूट सा गया है। इसलिए हम भी डिब्बे वाले और ट्रेन की छुक-छुक के बीच बैठकर हमने भी अपने मन को मना लिया। क्योँकि यहाँ के दूसरे झूलों को देखकर तो दिल पहले ही धक-धक कर जवाब दे रहा था। इसलिए यहाँ अत्याधुनिक रोमांचक झूलों जिसमें- स्पीड की दुनिया में सबसे तेज भागता झूला ट्विस्टर व्हील, देश का सबसे बड़ा झूला रोलर कोस्टर के साथ ही टॉवर, रेंजर, ऑक्टोपस, ब्रेक डांस, एयरोप्लेन, मिनी ट्रैन, पिग्गी ट्रैन, कटर पिलर, फ्रीज व्हील, बड़ी नाव, ड्रैगन, टोरा-टोरा, चाँद.तारा, बाउसी, चाइना बाउसी, वाटर वोट, जम्पिंग, चाकरी, स्ट्राइकिंग कार आदि में उत्साहित होकर झूला झूलते हुए लोगों को इनका लुत्फ़ उठाते देख हम भी खुश हो लिए।           
मेले में गए और वहां कुछ चटपटा देखने के बाद उसका स्वाद चखने-खाने का मन न हो, ऐसा कभी होता नहीं, इसके बिना गाड़ी भी आगे नहीं बढ पाती है। यहां भी देशी-विदेशी खाने-पीने की छोटी-बड़ी कई दुकानें सजी हुई थी, जिनमें लोग पेट-पूजा करने में लगे हुए थे। उन्हें देखकर जब हमारे पेट में भी चूहे कूदने लगे तो हमने भी जलेबी, चाट, मसाला डोसा और पनीर कुलच्छा खाया और गरमागर्म काफी पीने के बाद अपने मनपसंद सांस्कृतिक मंच की ओर रूखसत किया, जहाँ मंच पर गायक कलाकार अपनी सुमधुर आवाज में नए-पुराने फिल्मी और सूफी गीत-संगीत से लोगों का समां बांध रहे थे और उन्हें झूमने के लिए मजबूर कर रहे थे। हमारा मन भी इन सुरीली गीत-संगीत की धुन में बहुत देर तक रमा रहा।
.... कविता रावत 
अब आप भी मेरे साथ इस "भोजताल महोत्सव मेले" की रंगत को अनुभव कीजिए-