गरीबी में डॉक्टरी : कहानी (भाग-2) एक और मांझी की डॉक्टर बनने की संघर्ष गाथा - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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शनिवार, 27 जुलाई 2024

गरीबी में डॉक्टरी : कहानी (भाग-2) एक और मांझी की डॉक्टर बनने की संघर्ष गाथा

पूर्व से निरन्तर........
धर्मेन्द्र मांझी रात भर सोच-विचार कर रोता-कल्पता रहा। जब सुबह हुई और उसने उगते सूरज को देखा तो उसे यह बात समझ आयी कि सूरज भी तो हर दिन डूबता है और फिर अगले दिन घोर अँधेरे को चीरकर बाहर निकल आता है। उसने सोचा वह भी अँधेरे में नहीं डूबेगा और एक दिन अपने इर्द-गिर्द छाये अँधेरे को छांटकर रोशनी की एक नई किरण लेकर आएगा, ऐसा दृढ संकल्प कर वह फिर अगले दिन एम.पी. नगर की ओर निकल पड़ा। वहाँ पहुँचकर वह इधर-उधर से पता करते-करते तृप्ति अग्रवाल कोचिंग पहुँचा। जहाँ उन्होंने उसे बिना पैसों के पढ़ाने से साफ़ मना कर दिया। इसी तरह वह आस-पास की और भी कोचिंग गया, लेकिन किसी ने उसे उसकी कमजोर पढाई तो किसी ने बिना फीस के पढ़ाने से मना कर दिया। ऐसी स्थिति में उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह आखिर करे तो क्या करें। उसके पास न तो अच्छी पढ़ाई, न पास में पैसा और नहीं कोई उसका कोई मजबूत सहारा ही था। हर कदम पर मुसीबतों का पहाड़ खड़ा था। वह दिन भर एक कोचिंग से दूसरी कोचिंग में भटकता फिरता और शाम को कमरे पर आकर वहीँ खाना-पीना, झाडू-पोछा, बर्तन-भाण्डे घिसता और अपनी किस्मत को रोता कलपता। एक दिन वह रविवार को यूँ ही हिम्मत बटोर कर फिर अपनी किस्मत आजमाने एम.पी. नगर पहुँच गया। 

रविवार को कुछ कोचिंग बंद तो कुछ खुली थी। वह दिन भर कोचिंग की तलाश में इधर-उधर भटकता रहा। जब शाम हुई तो उसने बोर्ड ऑफिस चौराहे के सामने वाली बिल्डिंग में एक कोचिंग को खुला पाया, जिसके आस-पास अंधेरा था। वह बिल्डिंग की अंधेरी सीढ़ियों से ऊपर चढ़ने लगा, जहाँ चढ़ते-चढ़ते उसे 'विजय सिंह क्लासेस' का बोर्ड लिखा दिखा। वह कुछ देर सोचता रहा और फिर हिम्मत कर दबे पांव कोचिंग के अंदर गया। जहाँ उसे कोचिंग का मैनेजर मिला, जिसे   सभी पंडित जी' के नाम से पुकारते थे। पंडित जी के पूछने पर जब उसने अपनी पूरी व्यथा-कथा सुनाई तो उसे उस पर बड़ी दया आई। उसने उसे आश्वासन दिया और सोमवार को मिलने को कहा।

सोमवार को भगवान का नाम लेकर वह 'विजय सिंह क्लासेस' पहुंचा। उसे डर था कि अगर उसे टीचर्स ने साइंस के प्रश्न पूछे तो उससे नहीं बनेंगे तो वे भी दूसरी कोचिंग की तरह उसे पढ़ाने से मना कर देगें। फिर भी वह हिम्मत करके पंडित जी के पास जाकर बैठ गया। पंडित जी ने उसे विजय सर तथा उनके भाई संजय सर के पिताजी जिन्हें सभी बाबू जी के नाम से जानते थे, से मिलने को कहा तो वह उनके केबिन में जाकर उनके पैर पकड़कर फूट-फूट कर रोने लगा। उसे इस तरह रोते हुए देखकर बाबू जी को बड़ी दया आई और उन्होंने उसे उठाते हुए विजय सर को उसे निःशुल्क पढ़ाने को कहा।  विजय सर ने जैसे ही हामी भरी और उसे कल कोचिंग आकर मिलने को कहा तो वह ख़ुशी की मारे पागल सा हो गया। उसकी ख़ुशी का ठिकाना न रहा। उसे लगा वह अपनी मंजिल की पहली सीढ़ी के पायदान तक पहुँच गया। 

दूसरे दिन सुबह-सुबह वह देवी माँ का नाम लेकर कोचिंग खुलने से पहले पहुँच गया। वह कोचिंग के बाहर उसके खुलने का बेसब्री से इंतज़ार करने लगा। कुछ समय पश्चात आकर जब पंडित जी ने कोचिंग का ताला खोलकर शटर ऊपर उठाया तो उसे लगा जैसे आज उसकी किस्मत का ताला खुल गया है। वह नमस्ते करते हुए पंडित जी के पास जाकर बैठकर विजय सर का इंतज़ार करने लगा। जैसे ही विजय सर आये, वह उनके पाँव छूकर वहीँ पर खड़ा हो गया। उसे डर था कि कहीं अगर उन्होंने कोई प्रश्न पूछे और वह उत्तर नहीं दे पाया तो फिर उसका क्या होगा। लेकिन उसकी शंका निराधार न थी। जब विजय सर ने उससे फिजिक्स के कुछ प्रश्न पूछे और वह उनका कोई उत्तर नहीं दे पाया तो उसे लगा उसकी किस्मत का ताला हमेशा के लिए बंद हो गया।  लेकिन विजय सर ने उसकी व्यथा-कथा और दृढ इच्छाशक्ति को देखते हुए उसे मुफ्त कोचिंग देने का निर्णय लिया तो यह देखकर उसके मन में उठा तूफ़ान कुछ शांत हुआ। 

अब वह खुश होकर नादरा बस स्टैंड से निकलकर आने वाली पहली बस में बैठता और एमपी नगर पहुँचता। नादरा बस स्टैंड से एमपी नगर की दूरी बहुत है। इसलिए उसे आने-जाने में काफी समय लग जाता, जिसके कारण वह समय पर कोचिंग नहीं पहुंच पाता था। सुबह 8 बजे से लगने वाली कोचिंग क्लास के लिए उसे सुबह 4 बजे जागना पड़ता था। जागकर कमरे में झाडू-पोछा नहाना-धोना, खाना बनाना आदि घर के कामों में उलझा जब तक वह कोचिंग के लिए निकलता, तब तक देर हो चुकी होती। जब वह पहले दिन कोचिंग पढ़ने क्लास में बैठा तो उसने अनुभव किया कि वह तो पढ़ने में सबसे कमजोर है। उसने अनुभव किया कि उसकी पहली कक्षा से 12वीं तक का पढ़ा-लिखा तो सब शून्य है। बावजूद इसके वह क्लास में बैठता, लिखता और पढ़ता रहता। कोचिंग की माथा-पची और भागमभाग के कारण जैसे ही उसने घर के काम करने कम किये तो उसके बुआ के लड़के ने उसे अपने साथ रखने से साफ़ इंकार कर उसे घर से निकल दिया। ऐसी विकट स्थिति में उसने वहीं थोड़ी दूर दुर्गा माँ के एक मंदिर में अपना सामान रखा और वहीं अपना डेरा डाल दिया। पूरे एक वर्ष तक उसने वहीं से कोचिंग आना-जाना किया। एक बस जो नादरा से सुबह 7 बजे निकलती थी, जब उसने उसके मालिक से मिलकर अपनी व्यथा-कथा बताई तो उसने दया कर उसे मुफ्त में बैठने के लिए कंडक्टर को बोला तो उसके आने-जाने का खर्चा बच गया, उसे लगा दुनिया में भले लोग मिलने में भले ही देर हो, लेकिन इरादे नेक हों तो आखिर में कोई न कोई मिल ही जाता है। 

शेष अगले अंक में .....