सावन सूखा निकला जा रहा था। बरसात आंख-मिचौनी का खेल खेल रही थी। बारिश के आगमन और गमन के पूर्वाभास में मौसम विशेषज्ञ भी धोखा खा रहे थे। बादल 'जो गरजते हैं, वे बरसते नहीं' के तर्ज पर आकर बिन बरसे सरपट किधर भाग जाते थे इसका अनुमान लगाना जब किसी के बूते नहीं रही तब बादलों की बेरुखी देख लोग इन्द्रदेव को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ, हवनादि कर मनाने में जुट गए। इन्द्रदेव प्रसन्न हुए तो बारिश की ऐसी झड़ी लगी कि एक माह तक सूर्य देव के दर्शन दुर्लभ हो गए।
उमड़-घुमड़ आकर बदरा जमकर क्या बरसे कि जलविहीन कंगाल सिकुड़ते-सिमटते नदी, नाले उमड़ते-उफनते हलचल मचाने लगे। शहर की उपेक्षित नालों में जोरदार बारिश ने जब भरपूर रौनक भर दी तब वे भी आवारा बनकर तट की मर्यादा तोड़कर इतराते-इठलाते हुए बड़ी नाजो से पली बड़ी हमारी नाजुक सड़कों को तहस-नहस करते हुए कच्चे मकान, झुग्गी-झोंपड़ियों पर अपना आतंक दिखाते हुए उन्हें उखाड़ने-उजाड़ने निकल पड़े। कमजोर पर ही सबका बस चलता है और मर्यादा भंग घोर विपत्ति और महाविनाश का सूचक है। शायद ऐसे ही किसी दृश्य को देखकर श्री बलदेव प्रसाद ने अपने महाकाव्य 'साकेत संत' में यह चेतावनी दी होगी -
"मर्यादा में ही सब अच्छे, पानी हो वह या कि हवा हो।
इधर मृत्यु है, उधर मृत्यु है, मध्य मार्ग का यदि न पता हो।"
प्रकृति-प्रकोप का यह व्यवहार हम मानव के लिए अपार कष्ट, विपत्ति और दुःख का कारण तो बनता ही है लेकिन साथ ही वह हमें यह भी सिखला देता है कि जीवन का यथार्थ सुख इन कष्टों, विपत्तियों और आपदाओं से ही फूटता है।
'सिमिटि-सिमिटि जल भरहिं तलाबा, जिमि सदगुन सज्जन पहिआवा।' की तर्ज पर जैसे ही भोजताल भरकर ख़ुशी से हिल्लौरे मारने लगा वैसे ही २१ अगस्त को हम भोपालवासियों को ६ साल बाद इस पर बने भदभदा डैम के गेट खुलने पर दुर्लभ बनता उत्सव सा माहौल देखने का शुभावसर मिल ही गया। गेट खुलते ही देखते-देखते गर्मागर्म भुट्टों को भूनकर खिलाने वालों, बंद डिब्बों में समोसे बेचने वालों और चाय की दुकानों पर अपार भीड़ जुट गई जिससे उनके मुरझाये चेहरों पर भी रंगत छा गई। हज़ारों के संख्या में बच्चे , महिलाएं, बुजुर्ग अपने घरों से निकलकर बड़े उत्साह और रोमांच से गेट से बहते, उछलते-उफनते जलराशि को देख मग्न हुए जा रहे थे। यह सब सुकूं भरे नज़ारे को देखकर मेरे मन में प्रकृति के चतुर चितेरे सुमित्रानंदन पन्त जी की यह पंक्तियाँ सजीव होकर उमड़ने-घुमड़ने लगी-
'पकड़ वारि की धार झूलता है रे मेरा मन'
..............................................
इन्द्रधनुष के झूले में झूलें मिल सब जन।
फिर-फिर आए जीवन में सावन मन-भावन।।
यूँ तो भोजताल के आसपास हमें हर दिन ही उत्सव का माहौल नज़र आता है लेकिन इसपर बने भदभदा डैम के गेट खुलने पर हर बार जो अनोखा उत्सव का माहौल बनता है उसे किसी भी पूर्व निधारित धार्मिक या सांस्कृतिक उत्सव से कमतर नहीं आँका जा सकता है। जहाँ एक ओर धार्मिक या सांस्कृतिक उत्सव किसी भी वर्ग विशेष के आयोजन भर होकर वहीँ सिमट जाते हैं वहीँ दूसरी ओर जब हम थोड़ी गहराई में जाकर सोचने-विचारने की कोशिश करते हैं तो हमें साफ़ नज़र आने लगता है कि जब-जब हम मनुष्यों ने अपने ही द्वारा बनाये गए जात-पात, ऊँच-नीच, जाति धर्म के बंधन को सर्वोपरि समझकर विश्व बंधुत्व की भावना से मुहं फेरकर प्रकृति से खिलवाड़ करने की कोशिश की हैं तब-तब प्रकृति अपने स्वभाव के अनुरूप किसी न किसी रूप में आकर अपना अघोषित आयोजन पूरा कर हमें सबक सिखाने से पीछे नहीं हटी है।
...कविता रावत
बहुत अच्छा लगा पढ़ कर
ReplyDeleteसादर
नदी, नाले, पेड़, झरने ,लोग और शोर गुल सभी वही होते हैं . कवि या कहूँ लेखक शब्दों के माध्यम से उनके स्वरुप को इतना जीवंत कर देते हैं की लगता है बस बोल उठे .आपने भी वही किया ?
ReplyDeleteभोपाल ताल हमारी जीवन रेखा है और हम भी साप्ताहिक छुट्टी के दिन बोट क्लब जाकर खूब इंजॉय करते हैं ..........
ReplyDeleteभदभदा गेट खुलने पर जो माहौल बनता है वह सही है किसी उत्सव से कम नहीं है ..
बहुत ही बढ़िया जीवंत चित्रण ..आभार आपका
आपके संस्मरण और यात्रा वृत्तान्त पहले भी पढता रहा हूँ और नयी जानकारियों से लाभान्वित होता रहा हूँ.. यह उसी श्रृंखला की एक जीवंत कड़ी है!!
ReplyDelete
ReplyDeleteमेरे हिसाब से जो भी बाहर से भोपाल आता होगा वह जरुर भोपाल तालाब को देखे बिना वापस नहीं लौटता होगा ..और बिना देखे को जा भी कैसे सकता है जब इतना सुन्दर प्रकृति का नज़ारा देखने को मिलता है
भोजताल का बहुत सुन्दर लाजवाब चित्रण इस मनोरम चित्रण के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
पानी के रंग अनोखे होते हैं, आनन्दित करते हैं..
ReplyDeleteGreat post Kavita ji.
ReplyDeleteपावन जीवनदायी पावस प्रसंग.
ReplyDeleteबहुत ख़ूब!
ReplyDeleteआपकी यह सुन्दर प्रविष्टि कल दिनांक 27-08-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-984 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
जब भी यहाँ गए, अच्छा ही लगा|
ReplyDeleteभोपाल ताल से मिलना वो भी जब भरा पूरा हो ... मज़ा आ गया इस सैर का ....
ReplyDeleteजल तरंगे मन को आह्लादित करती हैं .
ReplyDeleteहमारे यहा राजस्थान मे तो भारी बारिस हो रही है ये मौसम बहुत अच्छा है यहा पर बरसात का
ReplyDeleteयूनिक तकनीकी ब्लाग
pune mein to baarish sa mausam hai ...
ReplyDeleteअच्छा लगा विवरण पढ़कर...
ReplyDeletevery nice...
ReplyDelete
Deleteसार्थक और सामयिक पोस्ट , आभार.
मेरे ब्लॉग " meri kavitayen "की नवीनतम पोस्ट पर आपका स्वागत है .
Beautifully written
ReplyDeleteवाह! बरसात और ताल से ताल मिलाता अनुपम चित्रण
ReplyDeleteबहुत शानदार आलेख के लिए आभारी हैं
बहुत ही अच्छा लिखा है आपने ...
ReplyDelete'पकड़ वारि की धार झूलता है रे मेरा मन'
ReplyDelete..............................................
इन्द्रधनुष के झूले में झूलें मिल सब जन।
फिर-फिर आए जीवन में सावन मन-भावन।।
पन्त जी की ये पंक्तियाँ इस बरसात के मौसम में आपकी लेखनी से सजीव हो उठी है ...
आपने भी बहुत सुन्दर चित्रित किया है ..बहुत अच्छा लगा.....
very nice blog post........
ReplyDeleteहमें भी गेट खुलने का बहुत दिन से इंतज़ार था और उस दिन की मत पूछो! भीड़ भाड़ में खोने का डर लग रहा था लेकिन जब गेट से छलकता पानी देखा तो सबकुछ भूलकर गए थे हम सभी दोस्त लोग ..बहुत मजा आया और आज फिर पढ़कर याद ताज़ी करते हुए बड़ा मजा आ गया ...मैडम जी इसके लिए धन्यवाद
ReplyDeleteसच में बहुत सुंदर
ReplyDeleteऐसा लग रहा है, जैसे सब कुछ अपनी नजरों के सामने से गुजरा है।
काव्यात्मक गद्य लिखने में आपका ज़वाब नहीं आँखों देखा हाल लिखा आपने अनुभूत हमने भी किया सागर(मध्य प्रदेश ) का तालाब तो बारहा देखा भोपाली आपने दिखा दिया .शुक्रिया बधाई इस बढ़िया पोस्ट के लिए .. .कृपया यहाँ भी पधारें -
ReplyDeleteसोमवार, 27 अगस्त 2012
अतिशय रीढ़ वक्रता (Scoliosis) का भी समाधान है काइरोप्रेक्टिक चिकित्सा प्रणाली में
http://veerubhai1947.blogspot.com/
आज 28/08/2012 को आपकी यह पोस्ट (दीप्ति शर्मा जी की प्रस्तुति मे ) http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
ReplyDeleteभोजताल के बारे में अच्छी जानकारी .... नदी नालों की रौनक बनी रहे ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर पोस्ट कविता मैम
ReplyDeleteतालाब की सैर होती रहती है लेकिन ब्लॉग पर साहित्यिक भाषा में पढना बहुत अच्छा लगा
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद
बहुत ही शानदार और सराहनीय प्रस्तुति....
ReplyDeleteबधाई
इंडिया दर्पण पर भी पधारेँ।
कभी भोपाल आये तो हम भी ये नज़ारा देखेंगे. आपकी ये पोस्ट बहुत प्रभावशाली और ज्ञानवर्धक लगी. आभार
ReplyDeleteBadee manbhawan post hai!
ReplyDeleteArticles that impresses the mind
ReplyDeleteGratitude for the excellent article
अच्छा लगा भोपाल के बारे में जानकर...
ReplyDeleteआभार आपका !
बहुत सुन्दर पोस्ट
ReplyDeleteबहुत सुंदर शब्दों में वर्णन किया है. आप घुमक्कड़.कॉम पर मनु जी की Post पर आयीं तो आप का बलोग ID पता चला.
ReplyDeleteधन्यवाद
भोपाल ताल भरा-पूरा होने पर बहार छा जाती है सब तरफ ... बहुत अच्छा रोमाचंकारी सैर ...
ReplyDeletereally nice post
ReplyDeleteआप बहुत अच्हा लिक्ति है
ReplyDeleteकविता जी ....यह सब पढ़ कर बहुत अच्छा लगा---
ReplyDeletewaah bahut sundar aanand aa gaya padhkar
Deleteउम्दा पोस्ट |
ReplyDeleteवाह कविता जी विलक्षण शैली !!!!! पद्य का लालित्य गद्य में !!!!!!!!!!!!!!अभिभूत कर गई यह शैली.
ReplyDelete"जलविहीन कंगाल सिकुड़ते-सिमटते नदी, नाले उमड़ते-उफनते हलचल मचाने लगे"--- यहाँ दृश्य सजीव हो उठे हैं....
"वे भी आवारा बनकर तट की मर्यादा तोड़कर इतराते-इठलाते हुए बड़ी नाजो से पली बड़ी हमारी नाजुक सड़कों को तहस-नहस करते हुए " ----मखमली व्यंग्य का भी समावेश, वाह !!!!!!
"जब-जब हम मनुष्यों ने अपने ही द्वारा बनाये गए जात-पात, ऊँच-नीच, जाति धर्म के बंधन को सर्वोपरि समझकर विश्व बंधुत्व की भावना से मुहं फेरकर प्रकृति से खिलवाड़ करने की कोशिश की हैं तब-तब प्रकृति अपने स्वभाव के अनुरूप किसी न किसी रूप में आकर अपना अघोषित आयोजन पूरा कर हमें सबक सिखाने से पीछे नहीं हटी है"-------सार्थक संदेश बड़े ही प्रभावी ढंग में.
बीच बीच में 'सिमिटि-सिमिटि जल भरहिं तलाबा, जिमि सदगुन सज्जन पहिआवा।' , साकेत संत और कवि पंत के उद्धहरणों ने आलेख को ऊँचाइयों पर पहुँचा दिया. इस विलक्षण लेखन के लिये बधाई स्वीकार करें.
'सिमिटि-सिमिटि जल भरहिं तलाबा, जिमि सदगुन सज्जन पहिआवा।' की तर्ज पर जैसे ही भोजताल भरकर ख़ुशी से हिल्लौरे मारने लगा वैसे ही २१ अगस्त को हम भोपालवासियों को ६ साल बाद इस पर बने भदभदा डैम के गेट खुलने पर दुर्लभ बनता उत्सव सा माहौल देखने का शुभावसर मिल ही गया। गेट खुलते ही देखते-देखते गर्मागर्म भुट्टों को भूनकर खिलाने वालों, बंद डिब्बों में समोसे बेचने वालों और चाय की दुकानों पर अपार भीड़ जुट गई जिससे उनके मुरझाये चेहरों पर भी रंगत छा गई। हज़ारों के संख्या में बच्चे , महिलाएं, बुजुर्ग अपने घरों से निकलकर बड़े उत्साह और रोमांच से गेट से बहते, उछलते-उफनते जलराशि को देख मग्न हुए जा रहे थे।
ReplyDelete...बारिश के मौसम का बहुत ही सुन्दर प्राकृतिक वर्णन ....
भोपाल ताल की बात ही न्यारी है
bahut acchi prastuti kavita jee...
ReplyDeleteआपकी टिपण्णी हमारे लेखन की आंच हैं,सुलगाये रखिये इस आंच को .आपकी नै पोस्ट प्रतीक्षित .
ReplyDeleteमधुमेह पुरानी पड़ जाने पर बीनाई को बचाए रखिये
Protecting Your Vision from Diabetes Damage
मधुमेह पुरानी पड़ जाने पर बीनाई को बचाए रखिये
?आखिर क्या ख़तरा हो सकता है मधुमेह से बीनाई को
* एक स्वस्थ व्यक्ति में अग्नाशय ग्रंथि (Pancreas) इतना इंसुलिन स्राव कर देती है जो खून में तैरती फ़ालतू शक्कर को रक्त प्रवाह से निकाल बाहर कर देती है और शरीर से भी बाहर चली जाती है यह फ़ालतू शक्कर (एक्स्ट्रा ब्लड सुगर ).
मधुमेह की अवस्था में अग्नाशय अपना काम ठीक से नहीं निभा पाता है लिहाजा फ़ालतू ,ज़रुरत से कहीं ज्यादा शक्कर खून में प्रवाहित होती रहती है .फलतया सामान्य खून के बरक्स खून गाढा हो जाता है .
अब जैसे -जैसे यह गाढा खून छोटी महीनतर रक्त वाहिकाओं तक पहुंचता है ,उन्हें क्षतिग्रस्त करता आगे बढ़ता है .नतीज़न इनसे रिसाव शुरु हो जाता है .
http://veerubhai1947.blogspot.com/
बहुत-बहुत सुन्दर पोस्ट...
ReplyDelete:-)
बहुत सुन्दर पोस्ट
ReplyDeletebahut acchi prastuti kavita ji
ReplyDeletebahut sunder ..
ReplyDeleteVery Nice to meet you.
तालों में ताल भोपाल
ReplyDeleteबाकी सब तलैया
इस उक्ति को जीवंत कर दिया आपने कविता जी!
शिक्षक दिवस की बधाई
बिन पानी सब सून ..और जो अब पानी तो पानी ही पानी !
ReplyDeleteखुशगवार पलो की खूबसूरत बयानी अच्छी लगी !
"मर्यादा में ही सब अच्छे, पानी हो वह या कि हवा हो।
ReplyDeleteइधर मृत्यु है, उधर मृत्यु है, मध्य मार्ग का यदि न पता हो।"
prabhavi aalekh ...!!
'पकड़ वारि की धार झूलता है रे मेरा मन'
ReplyDelete..............................................
इन्द्रधनुष के झूले में झूलें मिल सब जन।
फिर-फिर आए जीवन में सावन मन-भावन।।
पन्त जी पढना मुझे भी बहुत भाता है
बहुत सुन्दर मनभावन चित्रण
धन्यवाद
गद्य-पद्य का मिश्रित अवतरण अधिक मनभावन हो जाता है.
ReplyDelete@जब-जब हम मनुष्यों ने अपने ही द्वारा बनाये गए जात-पात, ऊँच-नीच, जाति धर्म के बंधन को सर्वोपरि समझकर विश्व बंधुत्व की भावना से मुहं फेरकर प्रकृति से खिलवाड़ करने की कोशिश की हैं तब-तब प्रकृति अपने स्वभाव के अनुरूप किसी न किसी रूप में आकर अपना अघोषित आयोजन पूरा कर हमें सबक सिखाने से पीछे नहीं हटी है।
ReplyDeleteअंतिम वाक्य एक बहुत बड़ा सत्य है, सहमत हूं आपके इस विचार से।
प्रकृति को अपना संतुलन बनाए रखने की कला अच्छी तरह ज्ञात है।
लगता है इस बार बनारस का भी पानी भोपाल में बरस गया। झीलों-तालाबों का शहर देखने लायक हुआ होगा। आपकी पोस्ट पढ़कर भोपाल आने की इच्छा हो रही है।
ReplyDeleteइन्द्रधनुष के झूले में झूलें मिल सब जन।
ReplyDeleteफिर-फिर आए जीवन में सावन मन-भावन।।....
...मनभावन चित्रण
ReplyDeleteमंगलवार, 11 सितम्बर 2012
देश की तो अवधारणा ही खत्म कर दी है इस सरकार ने
आज भारत के लोग बहुत उत्तप्त हैं .वर्तमान सरकार ने जो स्थिति बना दी है वह अब ज्यादा दुर्गन्ध देने लगी है .इसलिए जो संविधानिक संस्थाओं को गिरा रहें हैं उन वक्रमुखियों के मुंह से देश की प्रतिष्ठा की बात अच्छी नहीं लगती .चाहे वह दिग्विजय सिंह हों या मनीष तिवारी या ब्लॉग जगत के आधा सच वाले महेंद्र श्रीवास्तव साहब .
असीम त्रिवेदी की शिकायत करने वाले ये वामपंथी वहीँ हैं जो आपातकाल में इंदिराजी का पाद सूंघते थे .और फूले नहीं समाते थे .
त्रिवेदी जी असीम ने सिर्फ अपने कार्टूनों की मार्फ़त सरकार को आइना दिखलाया है कि देखो तुमने देश की हालत आज क्या कर दी है .
अशोक की लाट में जो तीन शेर मुखरित थे वह हमारे शौर्य के प्रतीक थे .आज उन तमाम शेरों को सरकार ने भेड़ियाबना दिया है .और भेड़िया आप जानते हैं मौक़ा मिलने पर मरे हुए शिकार चट कर जाता है .शौर्य का प्रतीक नहीं हैं .
असीम त्रिवेदी ने अशोक की लाट में तीन भेड़िये दिखाके यही संकेत दिया है .
और कसाब तो संविधान क्या सारे भारत धर्मी समाज के मुंह पे मूत रहा है ये सरकार उसे फांसी देने में वोट बैंक की गिरावट महसूस करती है .
क्या सिर्फ सोनिया गांधी की जय बोलना इस देश में अब शौर्य का प्रतीक रह गया है .ये कोंग्रेसी इसके अलावा और क्या करते हैं ?
क्या रह गई आज देश की अवधारणा ?चीनी रक्षा मंत्री जब भारत आये उन्होंने अमर जवान ज्योति पे जाने से मना कर दिया .देश में स्वाभिमान होता ,उन्हें वापस भेज देता .
बात साफ है आज नेताओं का आचरण टॉयलिट से भी गंदा है .
टॉयलट तो फिर भी साफ़ कर लिया जाएगा .असीम त्रिवेदी ने कसाब को अपने कार्टून में संविधान के मुंह पे मूतता हुआ दिखाया है उसे नेताओं के मुंह पे मूतता हुआ दिखाना चाहिए था .ये उसकी गरिमा थी उसने ऐसा नहीं किया .
सरकार किस किसको रोकेगी .आज पूरा भारत धर्मी समाज असीम त्रिवेदी के साथ खड़ा है ,देश में विदेश में ,असीम त्रिवेदी भारतीय विचार से जुड़ें हैं .और भारतीय विचार के कार्टून इन वक्र मुखी रक्त रंगी लेफ्टियों को रास नहीं आते इसलिए उसकी शिकायत कर दी .इस देश की भयभीत पुलिस ने उसे गिरिफ्तार कर लिया .श्रीमान न्यायालय ने उसे पुलिस रिमांड पे भेज दिया .
देश की तो अवधारणा ही खत्म कर दी है इस सरकार ने .
बढ़िया जानकारी भरी पोस्ट..धन्यवाद कविता जी
ReplyDelete"मर्यादा में ही सब अच्छे, पानी हो वह या कि हवा हो।
ReplyDeleteइधर मृत्यु है, उधर मृत्यु है, मध्य मार्ग का यदि न पता हो।"
सत्य वचन! बहुत ख़ूब लिखा आपने.......
तालों में ताल भोजताल
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