भोजताल का उत्सव - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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गुरुवार, 25 जुलाई 2024

भोजताल का उत्सव

सावन सूखा निकला जा रहा था। बरसात आंख-मिचौनी का खेल खेल रही थी। बारिश के आगमन और गमन के पूर्वाभास में मौसम विशेषज्ञ भी धोखा खा रहे थे। बादल 'जो गरजते हैं, वे बरसते नहीं' के तर्ज पर आकर बिन बरसे सरपट किधर भाग जाते थे इसका अनुमान लगाना जब किसी के बूते नहीं रही तब बादलों की बेरुखी देख लोग इन्द्रदेव को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ, हवनादि कर मनाने में जुट गए। इन्द्रदेव प्रसन्न हुए तो बारिश की ऐसी झड़ी लगी कि एक माह तक सूर्य देव के दर्शन दुर्लभ हो गए। 
उमड़-घुमड़ आकर बदरा जमकर क्या बरसे कि जलविहीन कंगाल सिकुड़ते-सिमटते नदी, नाले उमड़ते-उफनते हलचल मचाने लगे। शहर की उपेक्षित नालों में जोरदार बारिश ने जब भरपूर रौनक भर दी तब वे भी आवारा बनकर तट की मर्यादा तोड़कर इतराते-इठलाते हुए बड़ी नाजो से पली बड़ी हमारी नाजुक सड़कों को तहस-नहस करते हुए कच्चे मकान, झुग्गी-झोंपड़ियों पर अपना आतंक दिखाते हुए उन्हें उखाड़ने-उजाड़ने निकल पड़े। कमजोर पर ही सबका बस चलता है और मर्यादा भंग घोर विपत्ति और महाविनाश का सूचक है। शायद ऐसे ही किसी दृश्य को देखकर श्री बलदेव प्रसाद ने अपने महाकाव्य 'साकेत संत' में यह चेतावनी दी होगी -
"मर्यादा में ही सब अच्छे, पानी हो वह या कि हवा हो।
इधर मृत्यु है, उधर मृत्यु है, मध्य मार्ग का यदि न पता हो।"
प्रकृति-प्रकोप का यह व्यवहार हम मानव के लिए अपार कष्ट, विपत्ति और दुःख का कारण तो बनता ही है लेकिन साथ ही वह हमें यह भी सिखला देता है कि जीवन का यथार्थ सुख इन कष्टों, विपत्तियों और आपदाओं से ही फूटता है।
'सिमिटि-सिमिटि जल भरहिं तलाबा, जिमि सदगुन सज्जन पहिआवा।' की तर्ज पर जैसे ही भोजताल भरकर ख़ुशी से हिल्लौरे मारने लगा वैसे ही २१ अगस्त को हम भोपालवासियों को ६ साल बाद इस पर बने भदभदा डैम के गेट खुलने पर दुर्लभ बनता उत्सव सा माहौल देखने का शुभावसर मिल ही गया। गेट खुलते ही देखते-देखते गर्मागर्म भुट्टों को भूनकर खिलाने वालों, बंद डिब्बों में समोसे बेचने वालों और चाय की दुकानों पर अपार भीड़ जुट गई जिससे उनके मुरझाये चेहरों पर भी रंगत छा गई। हज़ारों के संख्या में बच्चे , महिलाएं, बुजुर्ग अपने घरों से निकलकर बड़े उत्साह और रोमांच से गेट से बहते, उछलते-उफनते जलराशि को देख मग्न हुए जा रहे थे। यह सब सुकूं भरे नज़ारे को देखकर मेरे मन में प्रकृति के चतुर चितेरे सुमित्रानंदन पन्त जी की यह पंक्तियाँ सजीव होकर उमड़ने-घुमड़ने लगी-
'पकड़ वारि की धार झूलता है रे मेरा मन'
..............................................
इन्द्रधनुष के झूले में झूलें मिल सब जन।
फिर-फिर आए जीवन में सावन मन-भावन।।
          यूँ तो भोजताल के आसपास हमें हर दिन ही उत्सव का माहौल नज़र आता है लेकिन इसपर बने भदभदा डैम के गेट खुलने पर हर बार जो अनोखा उत्सव का माहौल बनता है उसे किसी भी पूर्व निधारित धार्मिक या सांस्कृतिक उत्सव से कमतर नहीं आँका जा सकता है। जहाँ एक ओर धार्मिक या सांस्कृतिक उत्सव किसी भी वर्ग विशेष के आयोजन भर होकर वहीँ सिमट जाते हैं वहीँ दूसरी ओर जब हम थोड़ी गहराई में जाकर सोचने-विचारने की कोशिश करते हैं तो हमें साफ़ नज़र आने लगता है कि जब-जब हम मनुष्यों ने अपने ही द्वारा बनाये गए जात-पात, ऊँच-नीच, जाति धर्म के बंधन को सर्वोपरि समझकर विश्व बंधुत्व की भावना से मुहं फेरकर प्रकृति से खिलवाड़ करने की कोशिश की हैं तब-तब प्रकृति अपने स्वभाव के अनुरूप किसी न किसी रूप में आकर अपना अघोषित आयोजन पूरा कर हमें सबक सिखाने से पीछे नहीं हटी है।
...कविता रावत


58 टिप्‍पणियां:

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बहुत अच्छा लगा पढ़ कर



सादर

Ramakant Singh ने कहा…

नदी, नाले, पेड़, झरने ,लोग और शोर गुल सभी वही होते हैं . कवि या कहूँ लेखक शब्दों के माध्यम से उनके स्वरुप को इतना जीवंत कर देते हैं की लगता है बस बोल उठे .आपने भी वही किया ?

vijay ने कहा…

भोपाल ताल हमारी जीवन रेखा है और हम भी साप्ताहिक छुट्टी के दिन बोट क्लब जाकर खूब इंजॉय करते हैं ..........
भदभदा गेट खुलने पर जो माहौल बनता है वह सही है किसी उत्सव से कम नहीं है ..
बहुत ही बढ़िया जीवंत चित्रण ..आभार आपका

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

आपके संस्मरण और यात्रा वृत्तान्त पहले भी पढता रहा हूँ और नयी जानकारियों से लाभान्वित होता रहा हूँ.. यह उसी श्रृंखला की एक जीवंत कड़ी है!!

बेनामी ने कहा…


मेरे हिसाब से जो भी बाहर से भोपाल आता होगा वह जरुर भोपाल तालाब को देखे बिना वापस नहीं लौटता होगा ..और बिना देखे को जा भी कैसे सकता है जब इतना सुन्दर प्रकृति का नज़ारा देखने को मिलता है
भोजताल का बहुत सुन्दर लाजवाब चित्रण इस मनोरम चित्रण के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

पानी के रंग अनोखे होते हैं, आनन्दित करते हैं..

ZEAL ने कहा…

Great post Kavita ji.

Rahul Singh ने कहा…

पावन जीवनदायी पावस प्रसंग.

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ ने कहा…

बहुत ख़ूब!
आपकी यह सुन्दर प्रविष्टि कल दिनांक 27-08-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-984 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

संजय @ मो सम कौन... ने कहा…

जब भी यहाँ गए, अच्छा ही लगा|

दिगम्बर नासवा ने कहा…

भोपाल ताल से मिलना वो भी जब भरा पूरा हो ... मज़ा आ गया इस सैर का ....

गिरधारी खंकरियाल ने कहा…

जल तरंगे मन को आह्लादित करती हैं .

विनोद सैनी ने कहा…

हमारे यहा राजस्‍थान मे तो भारी बारिस हो रही है ये मौसम बहुत अच्‍छा है यहा पर बरसात का
यूनिक तकनीकी ब्लाग

रश्मि प्रभा... ने कहा…

pune mein to baarish sa mausam hai ...

Udan Tashtari ने कहा…

अच्छा लगा विवरण पढ़कर...

S.N SHUKLA ने कहा…


सार्थक और सामयिक पोस्ट , आभार.
मेरे ब्लॉग " meri kavitayen "की नवीनतम पोस्ट पर आपका स्वागत है .

ZEAL ने कहा…

Beautifully written

Surya ने कहा…

वाह! बरसात और ताल से ताल मिलाता अनुपम चित्रण
बहुत शानदार आलेख के लिए आभारी हैं

सदा ने कहा…

बहुत ही अच्‍छा लिखा है आपने ...

Mamta ने कहा…

'पकड़ वारि की धार झूलता है रे मेरा मन'
..............................................
इन्द्रधनुष के झूले में झूलें मिल सब जन।
फिर-फिर आए जीवन में सावन मन-भावन।।
पन्त जी की ये पंक्तियाँ इस बरसात के मौसम में आपकी लेखनी से सजीव हो उठी है ...
आपने भी बहुत सुन्दर चित्रित किया है ..बहुत अच्छा लगा.....

बेनामी ने कहा…

very nice blog post........

Meenakshi ने कहा…

हमें भी गेट खुलने का बहुत दिन से इंतज़ार था और उस दिन की मत पूछो! भीड़ भाड़ में खोने का डर लग रहा था लेकिन जब गेट से छलकता पानी देखा तो सबकुछ भूलकर गए थे हम सभी दोस्त लोग ..बहुत मजा आया और आज फिर पढ़कर याद ताज़ी करते हुए बड़ा मजा आ गया ...मैडम जी इसके लिए धन्यवाद

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

सच में बहुत सुंदर
ऐसा लग रहा है, जैसे सब कुछ अपनी नजरों के सामने से गुजरा है।

virendra sharma ने कहा…

काव्यात्मक गद्य लिखने में आपका ज़वाब नहीं आँखों देखा हाल लिखा आपने अनुभूत हमने भी किया सागर(मध्य प्रदेश ) का तालाब तो बारहा देखा भोपाली आपने दिखा दिया .शुक्रिया बधाई इस बढ़िया पोस्ट के लिए .. .कृपया यहाँ भी पधारें -

सोमवार, 27 अगस्त 2012
अतिशय रीढ़ वक्रता (Scoliosis) का भी समाधान है काइरोप्रेक्टिक चिकित्सा प्रणाली में
http://veerubhai1947.blogspot.com/

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

भोजताल के बारे में अच्छी जानकारी .... नदी नालों की रौनक बनी रहे ...

आशा बिष्ट ने कहा…

बहुत सुन्दर पोस्ट कविता मैम

pratibha ने कहा…

तालाब की सैर होती रहती है लेकिन ब्लॉग पर साहित्यिक भाषा में पढना बहुत अच्छा लगा
बहुत-बहुत धन्यवाद

India Darpan ने कहा…

बहुत ही शानदार और सराहनीय प्रस्तुति....
बधाई

इंडिया दर्पण
पर भी पधारेँ।

Pawan Kumar ने कहा…

कभी भोपाल आये तो हम भी ये नज़ारा देखेंगे. आपकी ये पोस्ट बहुत प्रभावशाली और ज्ञानवर्धक लगी. आभार

kshama ने कहा…

Badee manbhawan post hai!

Mamta ने कहा…

Articles that impresses the mind
Gratitude for the excellent article

Satish Saxena ने कहा…

अच्छा लगा भोपाल के बारे में जानकर...
आभार आपका !

sm ने कहा…

बहुत सुन्दर पोस्ट

Surinder ने कहा…

बहुत सुंदर शब्दों में वर्णन किया है. आप घुमक्कड़.कॉम पर मनु जी की Post पर आयीं तो आप का बलोग ID पता चला.
धन्यवाद

pankaj ने कहा…

भोपाल ताल भरा-पूरा होने पर बहार छा जाती है सब तरफ ... बहुत अच्छा रोमाचंकारी सैर ...

Raju Patel ने कहा…

कविता जी ....यह सब पढ़ कर बहुत अच्छा लगा---

shashi purwar ने कहा…

waah bahut sundar aanand aa gaya padhkar

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

उम्दा पोस्ट |

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

वाह कविता जी विलक्षण शैली !!!!! पद्य का लालित्य गद्य में !!!!!!!!!!!!!!अभिभूत कर गई यह शैली.
"जलविहीन कंगाल सिकुड़ते-सिमटते नदी, नाले उमड़ते-उफनते हलचल मचाने लगे"--- यहाँ दृश्य सजीव हो उठे हैं....
"वे भी आवारा बनकर तट की मर्यादा तोड़कर इतराते-इठलाते हुए बड़ी नाजो से पली बड़ी हमारी नाजुक सड़कों को तहस-नहस करते हुए " ----मखमली व्यंग्य का भी समावेश, वाह !!!!!!
"जब-जब हम मनुष्यों ने अपने ही द्वारा बनाये गए जात-पात, ऊँच-नीच, जाति धर्म के बंधन को सर्वोपरि समझकर विश्व बंधुत्व की भावना से मुहं फेरकर प्रकृति से खिलवाड़ करने की कोशिश की हैं तब-तब प्रकृति अपने स्वभाव के अनुरूप किसी न किसी रूप में आकर अपना अघोषित आयोजन पूरा कर हमें सबक सिखाने से पीछे नहीं हटी है"-------सार्थक संदेश बड़े ही प्रभावी ढंग में.
बीच बीच में 'सिमिटि-सिमिटि जल भरहिं तलाबा, जिमि सदगुन सज्जन पहिआवा।' , साकेत संत और कवि पंत के उद्धहरणों ने आलेख को ऊँचाइयों पर पहुँचा दिया. इस विलक्षण लेखन के लिये बधाई स्वीकार करें.

Surya ने कहा…

'सिमिटि-सिमिटि जल भरहिं तलाबा, जिमि सदगुन सज्जन पहिआवा।' की तर्ज पर जैसे ही भोजताल भरकर ख़ुशी से हिल्लौरे मारने लगा वैसे ही २१ अगस्त को हम भोपालवासियों को ६ साल बाद इस पर बने भदभदा डैम के गेट खुलने पर दुर्लभ बनता उत्सव सा माहौल देखने का शुभावसर मिल ही गया। गेट खुलते ही देखते-देखते गर्मागर्म भुट्टों को भूनकर खिलाने वालों, बंद डिब्बों में समोसे बेचने वालों और चाय की दुकानों पर अपार भीड़ जुट गई जिससे उनके मुरझाये चेहरों पर भी रंगत छा गई। हज़ारों के संख्या में बच्चे , महिलाएं, बुजुर्ग अपने घरों से निकलकर बड़े उत्साह और रोमांच से गेट से बहते, उछलते-उफनते जलराशि को देख मग्न हुए जा रहे थे।

...बारिश के मौसम का बहुत ही सुन्दर प्राकृतिक वर्णन ....
भोपाल ताल की बात ही न्यारी है

Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

bahut acchi prastuti kavita jee...

virendra sharma ने कहा…

आपकी टिपण्णी हमारे लेखन की आंच हैं,सुलगाये रखिये इस आंच को .आपकी नै पोस्ट प्रतीक्षित .

मधुमेह पुरानी पड़ जाने पर बीनाई को बचाए रखिये


Protecting Your Vision from Diabetes Damage

मधुमेह पुरानी पड़ जाने पर बीनाई को बचाए रखिये

?आखिर क्या ख़तरा हो सकता है मधुमेह से बीनाई को

* एक स्वस्थ व्यक्ति में अग्नाशय ग्रंथि (Pancreas) इतना इंसुलिन स्राव कर देती है जो खून में तैरती फ़ालतू शक्कर को रक्त प्रवाह से निकाल बाहर कर देती है और शरीर से भी बाहर चली जाती है यह फ़ालतू शक्कर (एक्स्ट्रा ब्लड सुगर ).

मधुमेह की अवस्था में अग्नाशय अपना काम ठीक से नहीं निभा पाता है लिहाजा फ़ालतू ,ज़रुरत से कहीं ज्यादा शक्कर खून में प्रवाहित होती रहती है .फलतया सामान्य खून के बरक्स खून गाढा हो जाता है .

अब जैसे -जैसे यह गाढा खून छोटी महीनतर रक्त वाहिकाओं तक पहुंचता है ,उन्हें क्षतिग्रस्त करता आगे बढ़ता है .नतीज़न इनसे रिसाव शुरु हो जाता है .
http://veerubhai1947.blogspot.com/

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

बहुत-बहुत सुन्दर पोस्ट...
:-)

Pushpendra Singh ने कहा…

बहुत सुन्दर पोस्ट

Unknown ने कहा…

bahut acchi prastuti kavita ji

Dr BHAVANA SHRIVASTAVA ने कहा…

bahut sunder ..
Very Nice to meet you.

बेनामी ने कहा…

तालों में ताल भोपाल
बाकी सब तलैया
इस उक्ति को जीवंत कर दिया आपने कविता जी!
शिक्षक दिवस की बधाई

वाणी गीत ने कहा…

बिन पानी सब सून ..और जो अब पानी तो पानी ही पानी !
खुशगवार पलो की खूबसूरत बयानी अच्छी लगी !

Anupama Tripathi ने कहा…

"मर्यादा में ही सब अच्छे, पानी हो वह या कि हवा हो।
इधर मृत्यु है, उधर मृत्यु है, मध्य मार्ग का यदि न पता हो।"

prabhavi aalekh ...!!

Dolly ने कहा…

'पकड़ वारि की धार झूलता है रे मेरा मन'
..............................................
इन्द्रधनुष के झूले में झूलें मिल सब जन।
फिर-फिर आए जीवन में सावन मन-भावन।।
पन्त जी पढना मुझे भी बहुत भाता है
बहुत सुन्दर मनभावन चित्रण
धन्यवाद

alka mishra ने कहा…

गद्य-पद्य का मिश्रित अवतरण अधिक मनभावन हो जाता है.

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

@जब-जब हम मनुष्यों ने अपने ही द्वारा बनाये गए जात-पात, ऊँच-नीच, जाति धर्म के बंधन को सर्वोपरि समझकर विश्व बंधुत्व की भावना से मुहं फेरकर प्रकृति से खिलवाड़ करने की कोशिश की हैं तब-तब प्रकृति अपने स्वभाव के अनुरूप किसी न किसी रूप में आकर अपना अघोषित आयोजन पूरा कर हमें सबक सिखाने से पीछे नहीं हटी है।

अंतिम वाक्य एक बहुत बड़ा सत्य है, सहमत हूं आपके इस विचार से।
प्रकृति को अपना संतुलन बनाए रखने की कला अच्छी तरह ज्ञात है।

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

लगता है इस बार बनारस का भी पानी भोपाल में बरस गया। झीलों-तालाबों का शहर देखने लायक हुआ होगा। आपकी पोस्ट पढ़कर भोपाल आने की इच्छा हो रही है।

mark rai ने कहा…

इन्द्रधनुष के झूले में झूलें मिल सब जन।
फिर-फिर आए जीवन में सावन मन-भावन।।....

...मनभावन चित्रण

virendra sharma ने कहा…


मंगलवार, 11 सितम्बर 2012
देश की तो अवधारणा ही खत्म कर दी है इस सरकार ने
आज भारत के लोग बहुत उत्तप्त हैं .वर्तमान सरकार ने जो स्थिति बना दी है वह अब ज्यादा दुर्गन्ध देने लगी है .इसलिए जो संविधानिक संस्थाओं को गिरा रहें हैं उन वक्रमुखियों के मुंह से देश की प्रतिष्ठा की बात अच्छी नहीं लगती .चाहे वह दिग्विजय सिंह हों या मनीष तिवारी या ब्लॉग जगत के आधा सच वाले महेंद्र श्रीवास्तव साहब .

असीम त्रिवेदी की शिकायत करने वाले ये वामपंथी वहीँ हैं जो आपातकाल में इंदिराजी का पाद सूंघते थे .और फूले नहीं समाते थे .

त्रिवेदी जी असीम ने सिर्फ अपने कार्टूनों की मार्फ़त सरकार को आइना दिखलाया है कि देखो तुमने देश की हालत आज क्या कर दी है .

अशोक की लाट में जो तीन शेर मुखरित थे वह हमारे शौर्य के प्रतीक थे .आज उन तमाम शेरों को सरकार ने भेड़ियाबना दिया है .और भेड़िया आप जानते हैं मौक़ा मिलने पर मरे हुए शिकार चट कर जाता है .शौर्य का प्रतीक नहीं हैं .
असीम त्रिवेदी ने अशोक की लाट में तीन भेड़िये दिखाके यही संकेत दिया है .

और कसाब तो संविधान क्या सारे भारत धर्मी समाज के मुंह पे मूत रहा है ये सरकार उसे फांसी देने में वोट बैंक की गिरावट महसूस करती है .
क्या सिर्फ सोनिया गांधी की जय बोलना इस देश में अब शौर्य का प्रतीक रह गया है .ये कोंग्रेसी इसके अलावा और क्या करते हैं ?

क्या रह गई आज देश की अवधारणा ?चीनी रक्षा मंत्री जब भारत आये उन्होंने अमर जवान ज्योति पे जाने से मना कर दिया .देश में स्वाभिमान होता ,उन्हें वापस भेज देता .
बात साफ है आज नेताओं का आचरण टॉयलिट से भी गंदा है .
टॉयलट तो फिर भी साफ़ कर लिया जाएगा .असीम त्रिवेदी ने कसाब को अपने कार्टून में संविधान के मुंह पे मूतता हुआ दिखाया है उसे नेताओं के मुंह पे मूतता हुआ दिखाना चाहिए था .ये उसकी गरिमा थी उसने ऐसा नहीं किया .
सरकार किस किसको रोकेगी .आज पूरा भारत धर्मी समाज असीम त्रिवेदी के साथ खड़ा है ,देश में विदेश में ,असीम त्रिवेदी भारतीय विचार से जुड़ें हैं .और भारतीय विचार के कार्टून इन वक्र मुखी रक्त रंगी लेफ्टियों को रास नहीं आते इसलिए उसकी शिकायत कर दी .इस देश की भयभीत पुलिस ने उसे गिरिफ्तार कर लिया .श्रीमान न्यायालय ने उसे पुलिस रिमांड पे भेज दिया .
देश की तो अवधारणा ही खत्म कर दी है इस सरकार ने .

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

बढ़िया जानकारी भरी पोस्ट..धन्यवाद कविता जी

बेनामी ने कहा…

"मर्यादा में ही सब अच्छे, पानी हो वह या कि हवा हो।
इधर मृत्यु है, उधर मृत्यु है, मध्य मार्ग का यदि न पता हो।"
सत्य वचन! बहुत ख़ूब लिखा आपने.......

Unknown ने कहा…

तालों में ताल भोजताल