दूर-दूर न जाओ इस कदर - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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रविवार, 6 दिसंबर 2009

दूर-दूर न जाओ इस कदर



जिंदगी की भागदौड़ के बीच अब कालेज की दिन सपने जैसे दिखाते हैं, तब कालेज से निकलने के बाद जिंदगी किस दिशा को मुड जायेगी, शायद ही कोई जान पाया हो. अलग-अलग मिजाज के दोस्त जब कालेज छोड़कर अपनी घर-गृहस्थी की दुनिया में रच-बस जाते हैं तो कभी कई वर्ष बाद मिलने पर यकायक यकीन ही नहीं होता की ये वही दोस्त हैं, जो कभी कालेज में साथ पढ़ते थे ...... बहुत कुछ बदले-बदले नज़र आते है सभी ........ कालेज की एक दोस्त के अनुरोध पर कि उसे भी कालेज फेयरवेल में कुछ बोलना है, मैंने एक कविता लिख कर दी, जिसे उसने फेयरवेल के दिन सुनाया तो उसकी सभी ने खूब तालियाँ बजाकर तारीफ़ की. फेयरवेल समाप्ति पर वह मुझसे मिली और कहने लगी कि मुझे नहीं मालूम था की तेरी लिखी कविता को सभी इतना पसंद करेंगे, तू लिखती रहना, मुझे भी लगता है तू अच्छा लिख सकती है..........यह सुनकर मुझे भी अच्छा लगा की चलो कवितायेँ भी कुछ अवसरों पर सबको अच्छी लगती है ......... आज उसी अवसर की कविता कालेज की दिन याद कर प्रस्तुत कर रही हूँ ..... शायद कोई कालेज का दोस्त भी पढ़कर अपने कालेज के दिन याद कर कुछ पल के लिए ही सही खुश हो ले.........


हमने लिखे कुछ गीत
तुम्हे सुनाने को
सोचा था
तुम मिलोगे किसी डगर पर
जहाँ दिल खोलकर बातें करेंगे
कुछ अतीत की, कुछ वर्तमान की और कुछ भविष्य की
पर सोचा था जो हमने
सोचते ही रह गए
हमारे वे प्यार भरे गीत
सब बेसुरे हो गए
तुम मिले हमें जरुर
पर उस राह पर
जहाँ दिल घवराया
कुछ न कह पाया
सिर्फ घडकन ही तेज होती रही
बात जो होनी थी तुमसे
जुबां पर आकर अटकती रही
अब तुम्हें कैसे बताऊँ
कि वे सब गीत बेसुरे हो चुके हैं
वे ख्वाब जो मिलकर देखे थे हमने
वे हकीकत न बन सके हैं
अरे वो उजाड़ के साथी!
क्यों न आबाद कर लेते घर
अभी समाये हो दिल में
दूर-दूर न जाओ इस कदर
दूर-दूर न जाओ इस कदर

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