श्री गणेश जन्मोत्सव। Ganesh Chaturthi - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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शुक्रवार, 6 सितंबर 2024

श्री गणेश जन्मोत्सव। Ganesh Chaturthi

उत्सव, त्यौहार, पर्वादि हमारी भारतीय संस्कृति की अनेकता में एकता की अनूठी पहचान कराते हैं। रक्षाबन्धन के साथ ही त्यौहारों का सिलसिला शुरू हो जाता है। वर्ष के 365 दिन में से 111 दिन भारतीय समाज त्यौहारों और पर्वों को अलग-अलग रूपों में मनाता है। सदियों से चलती आयी हमारी यह उत्सवधर्मी परम्परा जीवन की एकरसता को दूर करने के साथ ही परिवार और समाज को एकसूत्र में बांधने का काम भी करती है। यह मात्र परम्परा नहीं है, यदि सूक्ष्मता से चिन्तन करें तो प्रत्येक पर्व के पीछे मानव कल्याण का भाव निहित है। हमारी भारतीय संस्कृति सर्व कल्याणकारिणी है, मंगलमयी है, जिसमें एक जाति, धर्म या राष्ट्र की नहीं, अपितु ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की मंगलकामना निहित हैः- "सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्।।"          
इन दिनों विघ्न हर्ता, बुद्धि और सुख-समृद्धि के देवता श्री गणेश की भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी से लेकर अनंत चतुर्दशी तक दस दिन तक चलने वाले गणेश जन्मोत्सव की पूरे शहर के चौक, चौराहों, कालोनियों सहित घर-घर धूम मची है। घर से लेकर गली.मोहल्लों और बाजारों में गणपति मनमोहक रूपों में विराजमान हैं। हर वर्ष की भांति हमारे घर में भी गणपति विराजमान हैं। उनके बारे में जितना लिखा जाय, बहुत कम होगा। कहा जाता है कि गणपति जी से प्रार्थना कर महर्षि वेदव्यास ने लोक कल्याणार्थ 60 लाख श्लोकों के रूप में महाभारत की रचना की, जिसमें कहा जाता है कि इनमें से 30 लाख देवलोक, 14 लाख असुर लोक, 15 लाख यक्ष लोक और केवल 1 लाख पृथ्वी लोक पर हैं। महाभारत को वेद भी माना जाता है। भगवान गणेश की महिमा संसार में सर्वत्र व्याप्त है। आज सिंघ और तिब्बत से लेकर जापान और श्रीलंका तक तथा भारत में जन्मे प्रत्येक विचार एवं विश्वास में गणपति समाए हैं। जैन सम्प्रदाय में ज्ञान का संकलन करने वाले गणेश या गणाध्यक्ष की मान्यता है तो बौद्ध के वज्रयान शाखा का विश्वास कभी यहां तक रहा है कि गणपति के स्तुति के बिना मंत्रसिद्धि नहीं हो सकती। नेपाल तथा तिब्बत के वज्रयानी बौद्ध अपने आराध्य तथागत की मूर्ति के बगल में गणेश जी को स्थापित रखते रहे हैं। सुदूर जापान तक बौद्ध प्रभावशाली राष्ट्र में भी गणपति पूजा का कोई न कोई रूप मिल जाता है। प्रत्येक मनुष्य अपने शुभ कार्य को निर्विध्न समाप्त करना चाहता है। गणपति मंगल.मूर्ति हैं, विध्नों के विनाशक हैं। इसलिए इनकी पूजा सर्वप्रथम होती है। शास्त्रों में गणेश को ओंकारात्मक माना गया है, अतः उनका सबसे पहले पूजन-विधान है।
           भगवान श्री गणेश जीवन में श्रेष्ठ और सृजनात्मक कार्य करने की प्ररेणा देते हैं। उनकी अनूठी शारीरिक संरचना से हमें बड़ी सीख देती है। जैसे- उनका बड़ा मस्तक बड़ी और फायदेमंद बातें सोचने के लिए प्रेरित करता है तो छोटी-छोटी आंखे हाथ में लिए कार्यों को उचित ढंग से और शीघ्र पूरा करने एवं हिलती-डुलती लम्बी सूूंड हमेशा सचेत रहने की ओर इशारा करती हैं। उनके सूप जैसे बड़े कान हमें नये विचारों और सुझावों को धैर्यपूर्वक सुनने की सीख देते हैं तो लम्बी सूंड हमें अपने चारों ओर की घटनाओं की जानकारी और ज्यादा सीखने के लिए प्रेरित करती हैं । उनका छोटा मुंह हमें कम बोलने की याद दिलाता है तो जीभ हमें तोल मोल के बोल की सीख देती है।        
त्यौहारों के आगमन के साथ ही घर-घर से भांति-भांति के पकवानों की महक से वातावरण खुशनुमा हो जाता है। इसमें भी अगर मिठाईयां न हो तो त्यौहारों में अधूरापन लगता है। दूध मिठाईयों का आधार है। इसी से निर्मित मावे और घी से अनेक व्यंजन तैयार होते हैं, लेकिन आज यह अधिक मुनाफे के फेर में मिलावटी बनकर स्वास्थ्य के लिए हानिकारक सिद्ध हो रहा है। मिलावटी दूध, घी हो या मावा सेहत के लिए वरदान नहीं बल्कि कई बीमारियों की वजह बनती है। इसलिए बाजार से मिठाई-नमकीन आदि जाँच-पड़ताल कर ही खरीदें, अच्छा तो यही होगा कि त्यौहार में घर पर पकवान बनाएं और स्वस्थ्य तन-मन से पूजा-अर्चना करें!

सभी को गणेशोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ।
                                     ....कविता रावत