सम्पूर्ण संसार में भगवान विष्णु के चरण चिन्ह का गयाधाम का मंदिर इकलौता है। पितृपक्ष में श्राद्ध के दौरान पिण्डदान की प्रक्रिया यहीं से शुरू होती है। धार्मिक शास्त्र वायुपुराण के अनुसार- "पंचकोश गया क्षेत्र कोशमेकं गयाशिरः" अथार्थ- गया के पांच कोस क्षेत्र में जिसकी मौत होती है, उसका गया में श्राद्ध करने की आवश्यकता नहीं होती है, क्योंकि इसे गयासुर का साम्राज्य क्षेत्र और मोक्षदायिनी क्षेत्र माना गया है। पहले यहां 365 वेदियां थी, मगर वर्तमान में 45 वेदियां ही शेष बची हैं। धर्मशास्त्रों के मुताबिक श्राद्ध प्रतिदिन होना चाहिए, इसलिए पहले वेदियों की संख्या 365 थी।
गयासुर के शरीर पर स्थापित गयाधाम में परमपिता ब्रह्मा द्वारा यज्ञ किए जाने की बात भी धर्मशास्त्रों में लिखी है। यज्ञ के बाद यहां ब्रह्म सरोवर में यज्ञ स्तंभ आरोपित किया गया था। धर्मशास्त्रों के अनुसार किसी भी मृत व्यक्ति का जब तक पितृपक्ष में विष्णुचरम पर पिंडदान नहीं किया जाता, तब तक उसकी आत्मा प्रेतयोनि में भटकती रहती है। श्राद्धकर्म के बाद वे पितृलोक में चले जाते हैं। श्राद्ध करने में यज्ञ जरूरी है। श्राद्ध के लिए समय को भी ध्यान में रखना जरूरी है। समय से किए गए श्राद्ध से पितर प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं। पितृश्राद्ध पूर्वाद्ध में, पूर्वज श्राद्ध अपरान्ह में, एक दो दृष्टि श्राद्ध मध्यान्ह और नित्य नैमित्तिक श्राद्ध प्रातःकाल किया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के आस्थाओं के अनुसार जो व्यक्ति पितरों को तर्पण और श्राद्ध नहीं करता वह पुत्र कहलाने का अधिकारी नहीं होता है।
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के वनवास से लौटने के बाद अपने अनुज लक्ष्मण और अर्द्धागिनी सीता के साथ गया में पिण्डदान का उल्लेख धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। श्रीराम के पिण्डदान करने की एक कथा प्रचलित है कि जब वे यहां पिण्डदान करने आये, तब वे सीता को फल्गु नदी के किनारे छोड़कर आवश्यक सामग्री जुटाने के लिए निकल गये। पिण्डदान का समय होने पर महाराजा दशरथ की आत्मा की आवाज जनकनंदनी सीता के कानों में गूंजी कि उन्हें भोजन (पिंड) चाहिए, जिसे सुनकर सीता सोच में पड़ गई कि उन्हें तो श्राद्ध का अधिकार है ही नहीं। और अगर उन्होंने पिण्डदान कर भी दिया तो उनके पति श्रीराम उन पर विश्वास नहीं करेंगे। इसी तरह के कई सवालों मन में उत्पन्न हुए लेकिन सीता ने फल्गू नदी, केतकी का फूल, गाय और वट का पेड को साक्षी बनाकर बालू का पिण्डदान कर दिया। पिण्डदान देने से दशरथ की आत्मा तृप्त हो गई और उन्हें मोक्ष मिल गया। बाद में श्रीराम जब सामग्री लेकर लौटे तब जनक नंदनी ने सारा वृतान्त सुनाया, लेकिन श्रीराम को विश्वास नहीं हुआ। तब सीता ने एक-एक कर चारों साक्ष्यों को प्रस्तुत किया, लेकिन उनमें से फल्गू नदी, केतकी का फूल और गाय मुकर गये। कुपित होकर सीता ने फल्गू नदी को सूखी रहने और बालू के नीचे दबे रहने, केतकी फूल को पूजा के अयोग्य रहने और गाय को उसके मुंह से छुए हुए वस्तु को पूजा के अयोग्य होने का श्राप दिया। वट वृक्ष ने ही गवाही दी, जिसे सीता जी ने उसे दीर्घायु का वरदान दिया। इसीलिए सुहागन स्त्रियां भी अपने पति की लम्बी उम्र की कामना हेतु वट वृक्ष की पूजा करते हैं।