करुणासिंधु, बंधु जन-जन के, सिद्धि-सदन, सेवक-सुखदायक।।
कृष्णस्वरूप, अनूप-रूप अति, विघ्न-बिदारण, बोध-विधायक।
सिद्धि-बुद्धि-सेवित, सुषमानिधि, नीति-प्रीति पालक, वरदायक।।
शंकर-सुवन, भुवन-भय-वारण, वारन-वदन, विनायक-नायक।
मोदक प्रिय, निज-जन-मन-मोदक, गिरि-तनया-मन-मोद-प्रदायक।।
अमल, अकल अरु सकल-कलानिधि, ऋद्धि-सिद्धिदायक, सुरनायक।
ज्ञान-ध्यान-विज्ञान दान करि, निज-जन-मनवांछित फल-दायक।।
प्रथम-पूज्य, सुरसेव्य एक-रद, सदा एकरस, खल-दल शायक ।
विद्या-बल-विवेक-वर-वारिधि, विश्ववंद्य, विबुधाधिप-नायक।।
चरण-शरण-जन जानि दयानिधि! देहु एक यह वर वरदायक।
जन-जन में हो नीति-प्रीति नित, रहे न कोउ विषय-विष-पायक।।
""स्वामी सनातन देव""
4 टिप्पणियां:
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 12 सितंबर 2024 को लिंक की जाएगी ....
http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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सुन्दर
गणेशोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं आपको, बहुत ही सुन्दर सार्थक गणेश वंदना सादर
बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना
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