भयेभ्यस्त्राहि नो देवी दुर्गे देवि नमोsस्तु ते ।।
सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्तिभूते सनातनि।
गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोsस्तु ते ।।
गणेशोत्सव के बाद नौ दिन तक चलने वाला शक्ति और भक्ति का अनुपम उत्सव दुर्गोत्सव सर्वाधिक धूम-धाम से मनाया जाने वाला उत्सव है। अकेले मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में दुर्गा उत्सव के अवसर पर लगभग डेढ़ हजार स्थानों पर माँ दुर्गा की भव्य प्रतिमाएं आकर्षक साज-सज्जा के साथ स्थापित की जाती हैं। वहीँ दुर्गा मंदिरों में नौ दिन तक माता रानी की अखंड ज्योत जलाकर पूजा अर्चना, हवनादि होता रहता है। नवरात्र उत्सव का विशेष आकर्षण भव्यतम झाँकियाँ जो पौराणिक गाथाओं के साथ-साथ सामयिक सामाजिक व्यवस्थाओं को प्रदर्शित कर नव जागरण का सन्देश देती हैं, सभी जाति, धर्म सम्प्रदाय के लोगों को समान रूप से आकृष्ट करती है। शाम ढलते ही माँ दुर्गे की भव्य प्रतिमाओं और आकर्षक झाँकियों के दर्शन के लिए जन समूह एक साथ उमड़ पड़ता है। जगह-जगह नौ दिन तक हर दिन मेला लगा रहता है।

सर्वज्ञ महात्मा वेद भगवान के द्वारा प्रतिपादित नौ देवियों का स्वरुप 'नवदुर्गा' कहलाती हैं, जिनको पृथक-पृथक शक्ति रूप से जाना जाता है। माँ दुर्गा की प्रथम शक्ति है शैलपुत्री : माता सती के अगले जन्म मैं शैलराज हिमालय के यहाँ पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनकी स्तुति शैलपुत्री के रूप में करते हैं । माता शैलपुत्री की आराधना से आत्मसम्मान, चिंतन और उच्च विचारों का आविर्भाव होता है। माँ की दूसरी शक्ति है ब्रह्मचारिणी : सच्चिदानन्दमय ब्रह्मस्वरूप की प्राप्ति कराना जिनका स्वभाव हो, वे ब्रह्मचारिणी कहलाई। माँ की तीसरी शक्ति है चंद्रघंटा : इस देवी के मस्तक पर घंटे के आकार का आधा चन्द्र है, इसलिए इन्हें चन्द्रघंटा कहा जाता है। इनका शरीर स्वर्ण के समान चमकीला है। दस हाथ वाली खडग और अन्य अस्त्र=शस्त्र से सज्जित सिंह पर सवार यह देवी युद्ध के लिए उद्धत मुद्रा में विराजमान रहती हैं। इनके दर्शन से अलौकिक वस्तु दर्शन, दिव्य सुगंधियों का अनुभव और कई तरह की घंटियाँ सुनायी देती हैं। इनकी आराधना से साधक में वीरता, निर्भयता के साथ सौम्यता और विनम्रता का विकास होता है। माँ की चौथी शक्ति है कूष्मांडा : यह देवी चराचर जगत की अधिष्ठात्री है। अष्टभुजा युक्त होने से इन्हें देवी अष्टभुजा के नाम से भी जाना जाता है। इस देवी की आराधना से अधियों-व्याधियों से मुक्ति और सुख- समृद्धि की प्राप्ति होती है। माँ की पांचवीं शक्ति है स्कंदमाता: भगवती शक्ति से उत्पन्न हुए सनत्कुमार का नाम स्कन्द है, उनकी माता होने से वे स्कंदमाता कहलाई। माँ की छठवीं शक्ति है कात्यायनी : देवताओं के कार्यसिद्धि हेतु महर्षि कात्यायन के आश्रम में प्रकट हुई, जिससे उनके द्वारा अपने पुत्री मानने से कात्यायनी नाम से प्रसिद्द हुई. माँ की सातवीं शक्ति है कालरात्रि : काल की भी रात्रि (विनाशिका) होने से उनका नाम कालरात्रि कहलाई. माँ की आठवीं शक्ति हैआ महागौरी : तपस्या के द्वारा महान गौरवर्ण प्राप्त करने से महागौरी कहलाई। माँ की नौवीं शक्ति है सिद्धिदात्री : सिद्धि अर्थात मोक्षदायिनी होने से सिद्धिदात्री कहलाती है।
नाना प्रकार के आभूषणों और रत्नों से सुशोभित ये देवियाँ क्रोध से भरी हुई और रथ पर आरूढ़ दिखाई देती हैं. ये शंख, चक्र, गदा, शक्ति, हल, मुसल, खेटक, तोमर, परशु, पाश, कुंत, त्रिशूल एवं उत्तम शांर्गधनुष आदि अस्त्र-शस्त्र अपने हाथों में धारण किए रहती हैं, जिसका उद्देश्य दुरात्माओं का नाश कर भक्तों को अभयदान देते हुए उनकी रक्षा कर लोक में शांति व्याप्त करना है।
नवरात्रि के अवसर पर भक्तों का शक्ति की अधिष्ठात्री देवी दुर्गा की आराधना के मूल में शक्तिशाली और विजयी होने की भावना के साथ-साथ विश्वव्यापी विपत्तियों के नाश और भय-नाश ही सर्वोपरि परिलक्षित होती है।
माँ दुर्गा अपने नामानुकूल सभी पर माँ जैसी समान कृपा बनाये रखे इसी नेक भावना के साथ मेरी ओर से सभी को भक्ति और शक्ति के द्योतक दुर्गोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ।