पंच दिवसीय दीप पर्व | Deepawali 2024| दीपोत्सव | Diwali Article - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
ब्लॉग के माध्यम से मेरा प्रयास है कि मैं अपनी कविता, कहानी, गीत, गजल, लेख, यात्रा संस्मरण और संस्मरण द्वारा अपने विचारों व भावनाओं को अपने पारिवारिक और सामाजिक दायित्व निर्वहन के साथ-साथ सरलतम अभिव्यक्ति के माध्यम से लिपिबद्ध करते हुए अधिकाधिक जनमानस के निकट पहुँच सकूँ। इसके लिए आपके सुझाव, आलोचना, समालोचना आदि का हार्दिक स्वागत है।

मंगलवार, 29 अक्टूबर 2024

पंच दिवसीय दीप पर्व | Deepawali 2024| दीपोत्सव | Diwali Article



पंच दिवसीय दीप पर्व का आरम्भ भगवान धन्वन्तरी की पूजा-अर्चना के साथ होता है, जिसका अर्थ है पहले काया फिर माया। यह वैद्यराज धन्वन्तरी की जयन्ती है, जो समुद्र मंथन से उत्पन्न चौदह रत्नों में से एक थे। यह पर्व साधारण जनमानस में धनतेरस के नाम से जाना जाता है। इस दिन लोग पीतल-कांसे के बर्तन खरीदना धनवर्धक मानते हैं। इस दिन लोग घर के आगे एक बड़ा दीया जलाते हैं, जिसे ‘यम दीप’ कहते हैं। मान्यता है कि इस दीप को जलाने से परिवार में अकाल मृत्यु या बाल मृत्यु नहीं होती। 
दूसरे दिन मनाई जाने वाली कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को छोटी दीवाली या नरक चतुर्दशी अथवा रूप चतुर्दशी कहते हैं। पुराण कथानुसार इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने आततायी दानव नरकासुर का संहार कर लोगों को उसके अत्याचार से मुक्ति दिलाई थी। इस दिन को श्री कृष्ण की पूजा कर इसे रूप चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन पितृश्वरों का आगमन हमारे घरों में होता है अतः उनकी आत्मिक शांति के लिए यमराज के निमित्त घर के बाहर तेल का चौमुख दीपक के साथ छोटे-छोटे 16 दीए जलाए जाते हैं। उसके बाद रोली, खीर, गुड़, अबीर, गुलाल और फूल इत्यादि से ईष्ट देव की पूजा कर अपने कार्य स्थान की पूजा की जाती है। पूजा उपरांत सभी दीयों को घर के अलग-अलग स्थानों पर रखते हुए गणेश एवं लक्ष्मी के आगे धूप दीप जलाया जाता है। 
तीसरे दिन अमावास्या की रात्रि में दीवाली पर्व मनाया जाता है। दिन भर लोग अपने घर-आंगन की  साफ-सफाई कर कर रंगोली बनाते हैं। सायंकाल खील-बताशे, मिठाई आदि खरीदते हैं। दीए, कपास, बिनौले, मशाल, तूंबड़ी, पटाखे, मोमबत्ती आदि की व्यवस्था घर-घर में होती है। सूर्यास्त के कुछ समय पश्चात् दीप जलाने की श्रृंखला आरम्भ कर सभी लोग नए वस्त्र पहनकर शुभ मुहूर्त में लक्ष्मी पूजन करते हैं। शहरों में व्यापारी नए बही खातों का पूजन करते हैं तो कुछ श्रद्धालुजन इस रात विष्णु सहस्रनाम के पाठ का आयोजन करते हैं। गांवों में घर के बाहर तुलसी, गोवर्धन, पशुओं की खुरली, बैलगाड़ी, हल आदि के पास भी दीए रखे जाते हैं। गांव की गलियों,पगडंडियों, मंदिर, कुएं, पनघट, चौपाल आदि सार्वजनिक स्थानों पर भी दीए रखे जाते हैं। अमावस्या की रात को तांत्रिक भी बहुत उपयुक्त मानकर अपने मंत्र-तंत्र की सिद्धि करते हैं। कई लोग टोटके भी करते देखे जाते हैं।      
लक्ष्मी पूजा की रात्रि को सुखरात्रि भी कहते हैं। इस अवसर पर लक्ष्मी पूजा के साथ-साथ कुबेर की पूजा भी की जाती है, जिससे सुख मिले। लक्ष्मी प्राप्ति के लिए पुराणों में कहा गया है कि-
वसामि नित्यं सुभगे प्रगल्भे दक्षे नरे कर्मणि वर्तमाने।
अक्रोधिने देवपरे कृतज्ञे जितेन्द्रिये निम्यपुदीर्णसत्तवे।।
स्वधर्मशीलेषु च धर्मावित्सु, वृद्धोपसवतानिरते च दांते।
कृतात्मनि क्षान्तिपरे समर्थे क्षान्तासु तथा अबलासु।।
वसामि वारीषु प्रतिब्रतासु कल्याणशीलासु विभूषितासु।
सत्यासु नित्यं प्रियदर्शनासु सौभाग्ययुक्तासु गुणान्वितासु।।   
 अर्थात् मैं उन पुरुषों के घरों में निवास करती हूं जो स्वरूपवान, चरित्रवान, कर्मकुशल तथा तत्परता से अपने काम को पूरा करने वाले होते हैं। जो क्रोधी नहीं होते, देवताओं में भक्ति रखते हैं, कृतज्ञ होते हैं तथा जितेन्द्रिय होते हैं। जो अपने धर्म, कर्तव्य  और सदाचरण में सतर्कता से तत्पर होते हैं। सदैव विषम परिस्थितियों में भी अपने को संयम में रखते हैं। जो आत्मविश्वासी होते हैं, क्षमाशील तथा सर्वसमर्थ होते हैं। इसी प्रकार उन स्त्रियों को घर मुझे पसंद हैं जो क्षमाशील, जितेन्द्रिय, सत्य पर भक्ति रखने वाली होती हैं तथा जिन्हें देखकर चित्त प्रसन्न हो जाता है। जो सौभाग्यवती, गुणवती पति से अटूट भक्ति रखने वाली, सबका कल्याण चाहने वाली तथा सदगुणों से अलंकृत होती हैं।       
चौथे दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन की पूजा कर उसे अंगुली पर उठाकर इन्द्र द्वारा की गई अतिवृष्टि से गोकुल को बचाया था। इस पर्व के दिन बलि पूजा, अन्नकूट आदि को मनाए जाने की परम्परा है। इस दिन गाय, बैल आदि पशुओं को स्नान कराकर फूल माला, धूप, चंदन आदि से उनका पूजन किया जाता है। कहा जाता है कि इस दिन गौमाता की पूजा करने से सभी पाप उतर जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। गोवर्धन पूजा में गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर जल, मोली, रोली, चावल, फूल, दही, खीर तथा तेल का दीपक जलाकर समस्त कुटुंब-परिजनों के साथ पूजा की जाती है।
    दीप पर्व के पांचवे दिन भाई दूज का त्यौहार मनाया जाता है। इसमें बहिन अपने भाई की लम्बी आयु व सफलता की कामना करती है। भैयादूज का दिन भाई-बहिन के प्रेम के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। बहिने अपने भाई के माथे पर तिलक कर उनकी आरती कर उनकी दीर्घायु की कामना के लिए हाथ जोड़कर यमराज से प्रार्थना करती है।  भाई दूज को यम द्वितीया भी कहा जाता हैं ऐसा माना जाता है कि इसी दिन मृत्यु के देवता यम की बहिन यमी (सूर्य पुत्री यमुना) ने अपने भाई यमराज को अपने घर  निमंत्रित कर तिलक लगाकर भोजन कराया था तथा भगवान से प्रार्थना की थी कि उनका भाई  सुरक्षित रहे। इसलिए इसे यम द्वितीया कहते हैं।



ज्योति पर्व का प्रकाश आप सभी के जीवन को सुख, समृद्धि  एवं वैभव से आलोकित करे, 
यही मेरी शुभकामना है...... कविता रावत
#deepawali2023
#diwaliarticle
#happydiwali2023