बदलती परिस्थितियों में बदलते आधार भगवान को भी अपनाने पड़े हैं। विश्व विकास की क्रम व्यवस्था के अनुरूप अवतार का स्तर एवं कार्यक्षेत्र भी विस्तृत होता चला गया है। भगवान् श्रीराम भी दस दिशाओं में फैले रावण के अविवेक व अनाचार रुपी आतंक को मिटाने हेतु उस समय अवतरित हुए जब कोई सोच भी नहीं सकता था कि अहंकार, प्रपंच और स्वार्थ के प्रतिनिधि रावण का विरोध-प्रतिरोध किया जा सकता है। अनीति जब चरम सीमा पर पहुंची तो भगवान राम ने मनुष्य रूप में जन्म लिया। राम सीता का विवाह गृहस्थ उपभोग के लिए नहीं, किसी प्रयोजन के लिए एक अपूर्णता को पूर्णता में परिवर्तित कर समय की महती आवश्यकता को पूर्ण करने के लिए हुआ। राम वनवास हुआ, सीताहरण हुआ और माँ सीता असुर रावण की लंका पहुँच गयी। सीता हरण न होता तो अनाचार रुपी रावण का अंत न हो पाता। प्रजापति ब्रह्मा ने देवताओं को एकत्र कर भिन्न-भिन्न रूपों में धरती पर जागृत आत्माओं के रूप में अवतार प्रयोजन की पूर्ति हेतु रीछ, वानर, गिद्ध आदि रूपों में भगवान राम की सहायता के लिए भेजा, जिन्होंने अपने अदम्य शौर्य, दुस्साहस का परिचय देते हुए धर्म युद्ध लड़ा और मायावी रावण के आतंकवाद को समाप्त कर ही दम लिया, जिसकी प्रभु ने भूरि-भूरि प्रशंसा की। जब भी आतंक को चीरते हुए अप्रत्याशित रूप से सत्साहस उभरे, समझना चाहिए की दैवी चेतना काम कर रही है। चेतना प्रवाह का प्रत्यक्ष प्रमाण है- आदर्शवाद और दुस्साहस का परिचय देते हुए घाटे का सौदा स्वीकार करना। आदर्शवादी दुस्साहस की हमेशा प्रशंसा होती है, वह सत्साहस के रूप में उत्पन्न होकर असंख्य को अनुप्रमाणित करता है। श्रेय किस व्यक्ति को मिला यह नितांत गौण है। यह तो झंडा आगे चलने वाले की फोटो के समान है, जबकि उस सैन्य दल में अनेक सूरवीरों का शौर्य, पुरुषार्थ झंडाधारी की तुलना से कम नहीं, अधिक ही होता है।
वर्तमान परिस्थितियों में केवल दशहरा के दिन अधर्म, अनीति, आतंक के पर्याय रावण रुपी बुराई को बड़े-बड़े पुतले के रूप में जगह-जगह प्रतिस्थापित कर बारूद भरकर धमाके करते हुए जनमानस को उस धुएं से ढांकते हुए इतिश्री समझ लेने से जन साधारण का भला नहीं होने वाला, अपितु इसकी सार्थकता तभी सिद्ध होगी जब मानस में फैले आतंक, बुराई को मिटाने, असमर्थों को समर्थता, साधनहीनों को साधन की उपलब्धता तथा असहायों को सहायता के लिए अनुकूलताएँ उपस्थित करने के निमित्त जागृत आत्मा के रूप में आगे बढ़कर काम किया जाय। क्योंकि जो सोये रहते हैं, वे तो प्रत्यक्ष सौभाग्य सामने आने पर भी नहीं देख पाते। आवश्यकता जागृत आत्माओं के जागृत बने रहने की है। जागृत आत्मा प्रसंग में देखिये जटायु का प्रसंग कितना सार्थक और प्रासंगिक बन पड़ा है- पंख कटे जटायु को गोद में लेकर स्नेह से उसके सर पर हाथ फेरकर और आंसुओं से अभिषेक करते हुए जब भगवान राम ने मरणासन्न स्थिति में पड़े जटायु से कहा- "तात! तुम जानते थे रावण दुर्द्धर्ष और महाबलवान है, फिर उससे तुमने युद्ध क्यों किया?" तो अपनी आँखों में मोती ढुलकते हुए जटायु ने गर्वोन्नत वाणी में कहा- "प्रभो! मुझे मृत्यु का भय नहीं है, भय तो तब था जब अन्याय के प्रतिकार की शक्ति नहीं जागती।" यह सुनकर भगवान राम ने कहा- "तात! तुम धन्य हो! तुम्हारी जैसे संस्कारवान आत्माओं से संसार को कल्याण का मार्गदर्शन मिलेगा।"
हर युग में बदलती परिस्थितियों के अनुरूप ही भगवान अवतरित हुए हैं। जहाँ एक ओर भगवान राम ने अपने अवतार में "प्राण जाय पर वचन न जाय" और मर्यादाओं का पालन कर बुराई के प्रतीक रावण का धीर-गंभीर समुद्र की भांति अविचल होकर दृढ़तापूर्वक नाश कर अच्छाई की धर्म पताका फहराते हुए रामराज्य की स्थापना की वहीँ दूसरी ओर कृष्ण अवतार में भगवान ने अपने समय की धूर्तता और छल-छदम से घिरी हुई परिस्थितियों का दमन 'विषस्य विषमौषधम' की नीति अपनाकर किया। उन्होंने कूटनीतिक दूरदर्शिता से तात्कालिक परिस्थितियों में जब सीधी उंगली से घी नहीं निकलती नज़र आयी तो कांटे से काँटा निकालने का उपाय अपनाकर अवतार प्रयोजन पूरा किया।
आप वर्तमान परिस्थितियों में इस विषय में क्या सोचते हैं, इस पर आपके विचारों का इंतज़ार रहेगा।
दशहरा (विजयादशमी) की हार्दिक शुभकामनाओं सहित......
- कविता रावत
57 टिप्पणियां:
वर्तमान संदर्भ में जटायु का कथन झकझोरता है। काश की मैं भी कह सकूं कि भय तो तब था जब अन्याय के प्रतिकार की शक्ति नहीं जागती।
बहुत सार्थक लेखन। आभार।
जय माता दी.. दुर्गा पूजा की हार्दिक शुभकामनाए...
"प्रभो! मुझे मृत्यु का भय नहीं है, भय तो तब था जब अन्याय के प्रतिकार की शक्ति नहीं जागती।"..........
बेहतरीन प्रस्तुति ....
आपको स;परिवार दुर्गानवमी और विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं .
हार्दिक शुभकामनाएं.
सार्थक आलेख.. दुर्गा पूजा की हार्दिक शुभकामनाए...
राम अपने मन्तव्यों में सफल रहे।
बेहतरीन प्रस्तुति।
आपको और आपके परिवार को विजयादशमी पर्व की शुभकामनाएं....
हर इंसान को अपने भीतर झांकना होगा... अनीति का पोषण नहीं प्रतिकार करना होगा... तभी परिस्थितियों में सकारात्मक परिवर्तन संभव है.
सार्थक चिंतन हेतु साधुवाद..
नवरात्रे एवं दशहरा की हार्दिक बधाइयां...
सार्थक आलेख दुर्गापूजा एवं विजय दशमी की हार्दिक शुभकामनायें in advance :)
समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://mhare-anubhav.blogspot.com/
आदर्शवादी दुस्साहस की हमेशा प्रशंसा होती है, वह सत्साहस के रूप में उत्पन्न होकर असंख्य को अनुप्रमाणित करता है। श्रेय किस व्यक्ति को मिला या नितांत गौण है। यह तो झंडा आगे चलने वाले की फोटो के समान है, जबकि उस सैन्य दल में अनेकों का शौर्य, पुरुषार्थ झंडाधारी के तुलना से कम नहीं, अधिक होता है।
....काश आज भी हम लोग ऐसा दुस्साहस अपने भीतर जगा पाते ...
तात्कालिक परिस्थतियों को लेकर दशहरा का औचित्य पर सार्थक चिंतन हेतु साधुवाद..
विजयादशमी की आपको भी शुभकामनायें
हर युग में बदलती परिस्थितियों के अनुरूप ही भगवान अवतरित हुए हैं, जहाँ एक ओर भगवान राम ने अपने अवतार में "प्राण जाय पर वचन न जाय" और मर्यादाओं का पालन कर बुराई के प्रतीक रावण का धीर-गंभीर समुद्र की भांति अविचल होकर दृढ़तापूर्वक नाश कर अच्छाई की धर्म पताका फहराते हुए रामराज्य की स्थापना की ....
उसी रामराज के आज सख्त जरुरत आन पड़ी है बस इंतज़ार है प्रभु के अवतार की..बाकी सब तो देख ही रहें तो क्या क्या नहीं हो रहा है..
दशहरा के मौके पर लोगों को नींद से जगाने का सही समय है ..
सपरिवार आपको दशहरा की शुभकामनायें. ..
अनीति जब चरम सीमा पर पहुंची तो भगवान राम ने मनुष्य रूप में जन्म लिया। राम सीता का विवाह गृहस्थोपभोग के लिए नहीं, किसी प्रयोजन के लिए एक अपूर्णता को पूर्णता में परिवर्तित कर समय की महती आवश्यकता को पूरी करने के लिए हुआ। वनवास हुआ, सीता हरण हुआ व असुर रावण के पास पहुँच गयी। सीता हरण न होता तो अनाचार रुपी रावण का अंत न हो पाता।
..विजयादशमी के अवसर पर सटीक ,प्रासंगिक और सार्थक आलेख के लिए आभार.
दशहरा की आपको सपरिवार शुभकामना!
सार्थक अभिव्यक्ति ....दशहरा की शुभकामनाएँ
प्रेरणात्मक लेख .
हमें तो लगता है --एक बार फिर भगवान को अवतार लेने की ज़रुरत आन पड़ी है .
geeta ke arth samajh len to sabkuch aasaan hoga
कृष्ण अवतार में भगवान ने अपने समय की धूर्तता और छल-छदम से घिरी हुई परिस्थितियों का दमन 'विषस्य विषमौषधम' की नीति अपनाकर किया। उन्होंने कूटनीतिक दूरदर्शिता से तात्कालिक परिस्थितियों में जब सीधी उंगली से घी नहीं निकलती नज़र आयी तो कांटे से काँटा निकालने का उपाय अपनाकर अवतार प्रयोजन पूरा किया..
आज की परिस्थिति भी सीधी ऊँगली से घी नहीं निकलने वाली ही है..... चाहे कृष्ण अवतार हो या राम अब तो जरुरत आन पड़ी है........
सार्थक सामयिक लेखन के लिए आभार...दुर्गानवमी और विजयादशमी की आपको भी हार्दिक शुभकामना..
राम-रावण के युद्ध की तस्वीर भी बहुत अच्छी लगी...
आपका पोस्ट अच्छा लगा ।
धन्यवाद .
सार्थक अभिव्यक्ति
दशहरा की शुभकामनाएँ
अब समय आ गया है एक नए अवतार के अवतरित होने का.
"तात! तुम जानते थे रावण दुर्द्धर्ष और महाबलवान है, फिर उससे तुमने युद्ध क्यों किया?" तो अपनी आँखों में मोती ढुलकते हुए जटायु ने गर्वोन्नत वाणी में कहा- "प्रभो! मुझे मृत्यु का भय नहीं है, भय तो तब था जब अन्याय के प्रतिकार की शक्ति नहीं जागती।"
..काश इस बात में मर्म को आज हम सभी समझ पाते?
सार्थक प्रस्तुति , सुन्दर प्रसंग प्रस्तुति और सामयिक चित्रांकन के साथ ही दशहरा की शुभ मंगलकामनाएं.........
वाह! आपकी पोस्ट और उस पर हुई टिप्पणियों को
पढकर आनंद आ गया.अपने अपने स्तर पर हम
अपनी सार्थक भूमिका का चयन कर सकते हैं.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.
नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा,कविता जी.
आपके सुवचन मेरा मार्ग दर्शन करते हैं.
बेहतरीन सार्थक अभिव्यक्ति!
आपको और आपके परिवार को विजयादशमी पर्व की शुभकामनाएं....
बहुत ही सार्थक चिंतन ..बदलती परिस्थितियों में जहाँ सत्य को भी राजनितिक हथकंडों से असत्य में परिवर्तित कर दिया जा रहा है ..
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान के कृत्यों पर भी साम्प्रदायिक रंग चड़ा दिया जाता ...बहुत कठिन एवं विषम परिसिथितियाँ है आज ...इन अधर्मियों के हथकंडों को समझते हुये आपसी स्नेह सदभाव और विश्वास में एक जुट होकर ही अधर्म रुपी रावण का नाश किया जा सकता है .....
आपको विजयदशमी पर हार्दिक शुभ कामनाएं
श्री रामचंद्र की धरती पर,रावण अब खुले विचरते हैं
आपको भी विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनायें
आज के समय अनुसार प्रभू किस रूप में अवतरित होंगे ये कहना बहुत ही मुश्किल है .... शायद प्रभोऊ ही ये निश्चय कर पायेंगे ... पर जैसा भी रूप हो जल्दी ही होना चाहिए इससे पहले की रावण दुबारा छा जाए धरती पर ...
NICE.
--
Happy Dushara.
VIJAYA-DASHMI KEE SHUBHKAMNAYEN.
--
MOBILE SE TIPPANI DE RAHA HU.
ISLIYE ROMAN ME COMMENT DE RAHA HU.
Net nahi chal raha hai.
दशहरा पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ|
बहुत बढ़िया लिखा है आपने! लाजवाब प्रस्तुती!
आपको एवं आपके परिवार को दशहरे की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें !
विजयदशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।
कल 08/10/2011 को आपकी कोई पोस्ट!
नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद
जय श्रीराम!
आपको एवं आपके परिवार को दशहरे की हार्दिक शुभकामनायें !
बहुत अच्छी राममय आलेख..
अब तो पुकार सुन ही लो भगवान, यही मन में बार बार आता है ..
आपको भी दुर्गानवमी और विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनये
"तात! तुम जानते थे रावण दुर्द्धर्ष और महाबलवान है, फिर उससे तुमने युद्ध क्यों किया?" तो अपनी आँखों में मोती ढुलकते हुए जटायु ने गर्वोन्नत वाणी में कहा- "प्रभो! मुझे मृत्यु का भय नहीं है, भय तो तब था जब अन्याय के प्रतिकार की शक्ति नहीं जागती।" यह सुनकर भगवान राम ने कहा- "तात! तुम धन्य हो! तुम्हारी जैसे संस्कारवान आत्माओं से संसार को कल्याण का मार्गदर्शन मिलेगा।"
..काश हम भी आज इस स्थिति में होकर जी पाते.. सटीक उद्धरण ...
आपको विजय पर्व की हार्दिक शुभकामना..
बहुत सामयिक और सुन्दर लेख....सटीक और सार्थक विश्लेषण
फिर भी यूँ लगता है जैसे , इस रावण की नाभि में शायद सच ही अमृत पात्र है | तभी तो रामबाण से मरने, और हर साल जलाये जाने के बावजूद हर साल फिर पुनर्जीवित हो उठता है !!!
प्रेरणात्मक लेख .
आपको भी दुर्गानवमी और विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनये
मुझे लगता है कि पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाने के लिये रावण को जलाना छोड देना चाहिये।
प्रेरक और सार्थक लेखन के लिए धन्यवाद..
अब तो समय निकला जा रहा है ....अब इंतज़ार है एक नए अवतार के अवतरित होने का...
बहुत ही उम्दा और सार्थक प्रस्तुति ..
आज आपकी पोस्ट ब्लोगर्स मीट वीकली (१२) के मंच पर प्रस्तुत की गई है /कृपया आइये और अपने विचारों से हमें अवगत करिए /आप इसी तरह मेहनत और लगन से हिंदी की सेवा करते रहें यही कमना है /आपका ब्लोगर्स मीट वीकली के मंच पर आपका स्वागत है /जरुर पधारें /
बेहतरीन प्रस्तुति।
आपको और आपके परिवार को विजयादशमी पर्व की शुभकामनाएं....
बहुत सामयिक और सुन्दर, सटीक और सार्थक विश्लेषण..
कविता जी,
आपकी कोई भी पोस्ट प्रकाशित होने के 15 सैकिंड के बाद ही अपनी पोस्ट को टिप्स हिंदी में ब्लॉग पर देखें | है न सबसे तेज | यकीन नहीं होता तो आप अपनी पोस्ट प्रकाशित करें व ठीक 15 सैकिंड बाद इस लिंक पर कलिक करके देख लें |
बहुत सार्थक आलेख..
वाह ...बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
very nice |
Asha
बैठे बिठाये लोग सब .......... रावण को रहे मार.....
पुतला उसका बना के .......... किया खूब प्रहार..
किया खूब प्रहार .................बड़ा ये युद्ध निरर्थक...
एक निहत्था रावण ना ..........साथी न समर्थक...
कह मनोज ये असत्य पर........नहीं सत्य की साध..
निरा ढोंग निष्पाप का............ व्याप्त मात्र अपराध...
मनोज
आपकी विवेचना अच्छी लगी ....
शुभकामनायें आपको !
.बहुत ही अच्छी सार्थक प्रस्तुति
जैसा कि गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है :
" परित्राणाय साधुनां विनाशाय च दुष्कृताम्,
धर्म संस्थापनार्थाय संभवामि युगे-युगे। "
---- सो अब तो काल्कि के अवतरण की प्रतीक्षा है !
बढ़िया, सामयिक आलेख!
बधाई !
वर्तमान संदर्भ में जटायु का कथन झकझोरता है। पर आज की परिस्थितियों में कृष्ण अवतार में जिस तरह से कृष्ण भगवान ने अपने समय की धूर्तता और छल-छदम से घिरी हुई का दमन 'विषस्य विषमौषधम' की नीति अपनाकर किया, वही सटीक बैठती हैं..
बहुत सार्थक लेखन...आभार।
निश्चित ही मन में छुपे बुराइयों के दशानन का खात्मा इन पर्वों का उद्देश्य है. समसामयिक और सारगर्भित लेख के लिए बधाई स्वीकार करें.
आपको भी बधाई।
मैं आपके पोस्ट पर समय पर न आ सका फिर भी मेरी ओर से हार्दिक शुभकामनाएं । मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।
धर्म- सत्य, न्याय एवं नीति को धारण करके उत्तम कर्म करना व्यक्तिगत धर्म है । धर्म के लिए कर्म करना, सामाजिक धर्म है । धर्म पालन में धैर्य, विवेक, क्षमा जैसे गुण आवश्यक है ।
ईश्वर के अवतार एवं स्थिरबुद्धि मनुष्य सामाजिक धर्म को पूर्ण रूप से निभाते है । लोकतंत्र में न्यायपालिका भी धर्म के लिए कर्म करती है ।
धर्म संकट- सत्य और न्याय में विरोधाभास की स्थिति को धर्मसंकट कहा जाता है । उस परिस्थिति में मानव कल्याण व मानवीय मूल्यों की दृष्टि से सत्य और न्याय में से जो उत्तम हो, उसे चुना जाता है ।
अधर्म- असत्य, अन्याय एवं अनीति को धारण करके, कर्म करना अधर्म है । अधर्म के लिए कर्म करना भी अधर्म है ।
कत्र्तव्य पालन की दृष्टि से धर्म (किसी में सत्य प्रबल एवं किसी में न्याय प्रबल) -
राजधर्म, राष्ट्रधर्म, मंत्रीधर्म, मनुष्यधर्म, पितृधर्म, पुत्रधर्म, मातृधर्म, पुत्रीधर्म, भ्राताधर्म इत्यादि ।
जीवन सनातन है परमात्मा शिव से लेकर इस क्षण तक एवं परमात्मा शिव की इच्छा तक रहेगा ।
धर्म एवं मोक्ष (ईश्वर के किसी रूप की उपासना, दान, तप, भक्ति, यज्ञ) एक दूसरे पर आश्रित, परन्तु अलग-अलग विषय है ।
धार्मिक ज्ञान अनन्त है एवं श्रीमद् भगवद् गीता ज्ञान का सार है ।
राजतंत्र में धर्म का पालन राजतांत्रिक मूल्यों से, लोकतंत्र में धर्म का पालन लोकतांत्रिक मूल्यों से होता है ।
आपका ब्लॉग पढ़ कर हमें अच्छा लगा। विजयादशमी और दशहरा क्यों मनाया जाता है इसकी जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट पे विजिट करें ।
http://www.dishanirdesh.in/vijayadashmi-11-october-2016/
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