दशहरा। विजयादशमी। बदलती परिस्थिति के अनुरूप हुआ भगवान राम का अवतार - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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शनिवार, 12 अक्टूबर 2024

दशहरा। विजयादशमी। बदलती परिस्थिति के अनुरूप हुआ भगवान राम का अवतार


बदलती परिस्थितियों में बदलते आधार भगवान को भी अपनाने पड़े हैं। विश्व विकास की क्रम व्यवस्था के अनुरूप अवतार का स्तर एवं कार्यक्षेत्र भी विस्तृत होता चला गया है। भगवान् श्रीराम भी दस दिशाओं में फैले रावण के अविवेक व अनाचार रुपी आतंक को मिटाने हेतु उस समय अवतरित हुए जब कोई सोच भी नहीं सकता था कि अहंकार, प्रपंच और स्वार्थ के प्रतिनिधि रावण का विरोध-प्रतिरोध किया जा सकता है। अनीति जब चरम सीमा पर पहुंची तो भगवान राम ने मनुष्य रूप में जन्म लिया। राम सीता का विवाह गृहस्थ उपभोग के लिए नहीं, किसी प्रयोजन के लिए एक अपूर्णता को पूर्णता में परिवर्तित कर समय की महती आवश्यकता को पूर्ण करने के लिए हुआ। राम वनवास हुआ, सीताहरण हुआ और माँ सीता असुर रावण की लंका पहुँच गयी। सीता हरण न होता तो अनाचार रुपी रावण का अंत न हो पाता। प्रजापति ब्रह्मा ने देवताओं को एकत्र कर भिन्न-भिन्न रूपों में धरती पर जागृत आत्माओं के रूप में अवतार प्रयोजन की पूर्ति हेतु रीछ, वानर, गिद्ध आदि रूपों में भगवान राम की सहायता के लिए भेजा, जिन्होंने अपने अदम्य शौर्य, दुस्साहस का परिचय देते हुए धर्म युद्ध लड़ा और मायावी रावण के आतंकवाद को समाप्त कर ही दम लिया, जिसकी प्रभु ने भूरि-भूरि प्रशंसा की। जब भी आतंक को चीरते हुए अप्रत्याशित रूप से सत्साहस उभरे, समझना चाहिए की दैवी चेतना काम कर रही है। चेतना प्रवाह का प्रत्यक्ष प्रमाण है- आदर्शवाद और दुस्साहस का परिचय देते हुए घाटे का सौदा स्वीकार करना। आदर्शवादी दुस्साहस की हमेशा प्रशंसा होती है, वह सत्साहस के रूप में उत्पन्न होकर असंख्य को अनुप्रमाणित करता है। श्रेय किस व्यक्ति को मिला यह नितांत गौण है। यह तो झंडा आगे चलने वाले की फोटो के समान है, जबकि उस सैन्य दल में अनेक सूरवीरों का शौर्य, पुरुषार्थ झंडाधारी की तुलना से कम नहीं, अधिक ही होता है।
          वर्तमान परिस्थितियों में केवल दशहरा के दिन अधर्म, अनीति, आतंक के पर्याय रावण रुपी बुराई को बड़े-बड़े पुतले के रूप में जगह-जगह प्रतिस्थापित कर बारूद भरकर धमाके करते हुए जनमानस को उस धुएं से ढांकते हुए इतिश्री समझ लेने से जन साधारण का भला नहीं होने वाला, अपितु इसकी सार्थकता तभी सिद्ध होगी जब मानस में फैले आतंक, बुराई को मिटाने, असमर्थों को समर्थता, साधनहीनों को साधन की उपलब्धता तथा असहायों को सहायता के लिए अनुकूलताएँ उपस्थित करने के निमित्त जागृत आत्मा के रूप में आगे बढ़कर काम किया जाय। क्योंकि जो सोये रहते हैं, वे तो प्रत्यक्ष सौभाग्य सामने आने पर भी नहीं देख पाते। आवश्यकता जागृत आत्माओं के जागृत बने रहने की है। जागृत आत्मा प्रसंग में देखिये जटायु का प्रसंग कितना सार्थक और प्रासंगिक बन पड़ा है- पंख कटे जटायु को गोद में लेकर स्नेह से उसके सर पर हाथ फेरकर और आंसुओं से अभिषेक करते हुए जब भगवान राम ने मरणासन्न स्थिति में पड़े जटायु से कहा- "तात! तुम जानते थे रावण दुर्द्धर्ष और महाबलवान है, फिर उससे तुमने युद्ध क्यों किया?" तो अपनी आँखों में मोती ढुलकते हुए जटायु ने गर्वोन्नत वाणी में कहा- "प्रभो! मुझे मृत्यु का भय नहीं है, भय तो तब था जब अन्याय के प्रतिकार की शक्ति नहीं जागती।" यह सुनकर भगवान राम ने कहा- "तात! तुम धन्य हो! तुम्हारी जैसे संस्कारवान आत्माओं से संसार को कल्याण का मार्गदर्शन मिलेगा।"
          हर युग में बदलती परिस्थितियों के अनुरूप ही भगवान अवतरित हुए हैं। जहाँ एक ओर भगवान राम ने अपने अवतार में "प्राण जाय पर वचन न जाय" और मर्यादाओं का पालन कर बुराई के प्रतीक रावण का धीर-गंभीर समुद्र की भांति अविचल होकर दृढ़तापूर्वक नाश कर अच्छाई की धर्म पताका फहराते हुए रामराज्य की स्थापना की वहीँ दूसरी ओर कृष्ण अवतार में भगवान ने अपने समय की धूर्तता और छल-छदम से घिरी हुई परिस्थितियों का दमन 'विषस्य विषमौषधम' की नीति अपनाकर किया। उन्होंने कूटनीतिक दूरदर्शिता से तात्कालिक परिस्थितियों में जब सीधी उंगली से घी नहीं निकलती नज़र आयी तो कांटे से काँटा निकालने का उपाय अपनाकर अवतार प्रयोजन पूरा किया।
 

आप वर्तमान परिस्थितियों में इस विषय में क्या सोचते हैं, इस पर आपके विचारों का इंतज़ार रहेगा।

दशहरा (विजयादशमी) की हार्दिक शुभकामनाओं सहित......
                                                        - कविता रावत