दीपावली की गहन अंधियारी रात्रि में
जब हरतरफ पटाखों के शोरगुल
और धुएं से उपजे प्रदूषण के बीच
अन्धकार को मिटाने को उद्धत
छोटे से टिमटिमाते दीप को
निर्विकार भाव से निरंतर
जलते देखती हूँ
तो भावुक मन सोचने लगता है कि
जीवन भर आलोक बिखेर कर
दूसरों का पथ प्रदर्शन करने वाला
मानव को समभाव का पाठ पढाता
यह नन्हा सा दीपक किस तरह
अपने क्षणिक जीवन में
वह सब समझ लेता है
जो हम जीवन भर नहीं समझ पाते
तभी तो वह अपनी जीवन की
मूल्यवान घड़ियों को व्यर्थ नहीं गवांता
प्राणयुक्त तेल चुक जाने के बाद भी
अपनी आखिरी दम तक जलकर
मंद-मंद प्रकाश बिखेरना नहीं छोड़ता
सूरज के निरंतर चलते रहने के व्रत को
अंधियारी रात्रि में निरंतर जलकर
प्रकाश के क्रम को टूटने नहीं देता है
इस भौतिक जगत में जो भी आया
वह एक न एक दिन जाएगा जरुर
यह तथ्य वह हमसे पहले जान लेता है
क्यों न हम भी छोटे-छोटे कदमों से
अँधेरे कोनों में भी दीप जलाते रहें
दीप बन जग में उजियारा फैलाएं
सबको दीप पर्व की हार्दिक शुभकामनाओं सहित..
..कविता रावत