दिन-रात खटता रहता
अंतहीन भागम-भाग में
अंतहीन भागम-भाग में
एक पल भी सुकून से न जी पाता
बस मैं और मेरे के फेरे के
भंवरजाल में फंसा रहता
किस लिए, किसके लिए
कुछ निश्चित नहीं?
जिंदगी में कितने झूठ की
जिंदगी में कितने झूठ की
गठरी लादे रखता
माया-मोह में आकंठ डूबा रहता
मेरे बच्चे बड़े होंगे
कमाएंगे-धमाएंगे, हमें सुखी रखेंगे
नाम रोशन करेंगे, खुशहाल रखेंगे
और यही सब सोचते-करते
मर मिट जाता है उनके नाम पर
और बच्चे अपने बच्चों के लिए
ऐसे ही मरते चले जाते हैं
एक-दूसरे के नाम पर
और यही सब सोचते-करते
मर मिट जाता है उनके नाम पर
और बच्चे अपने बच्चों के लिए
ऐसे ही मरते चले जाते हैं
एक-दूसरे के नाम पर
सबकुछ छोड़ छाड़ कर
गलत कहते हैं लोग
की मौत दुस्तर है?
भला मौत में क्या दुस्तरता?
क्षण भर लगता है सांस उखड़ने में
फिर सब कुछ धरा रह जाता है यहीं
खाली हाथ आया, खाली हाथ गया
जन्म लेता तो किसी और के हाथ में होता
और मरता तो दूसरों के हाथो से जाता
जिंदगी की थोड़ी-बहुत घड़ियों में
अपने लिए कितना जी पाता है?
गलत कहते हैं लोग
की मौत दुस्तर है?
भला मौत में क्या दुस्तरता?
क्षण भर लगता है सांस उखड़ने में
फिर सब कुछ धरा रह जाता है यहीं
खाली हाथ आया, खाली हाथ गया
जन्म लेता तो किसी और के हाथ में होता
और मरता तो दूसरों के हाथो से जाता
जिंदगी की थोड़ी-बहुत घड़ियों में
अपने लिए कितना जी पाता है?
उसके लिए न मरना आसान रहता है
और न जीना ही सरल होता है
और न जीना ही सरल होता है
....कविता रावत