मरना आसान लेकिन जीना बहुत कठिन है - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
ब्लॉग के माध्यम से मेरा प्रयास है कि मैं अपने विचारों, भावनाओं को अपने पारिवारिक दायित्व निर्वहन के साथ-साथ कुछ सामाजिक दायित्व को समझते हुए सरलतम अभिव्यक्ति के माध्यम से लिपिबद्ध करते हुए अधिकाधिक जनमानस के निकट पहुँच सकूँ। इसके लिए आपके सुझाव, आलोचना, समालोचना आदि का स्वागत है। आप जो भी कहना चाहें बेहिचक लिखें, ताकि मैं अपने प्रयास में बेहत्तर कर सकने की दिशा में निरंतर अग्रसर बनी रह सकूँ|

गुरुवार, 21 अक्तूबर 2010

मरना आसान लेकिन जीना बहुत कठिन है

पिछले सप्ताह एक के बाद एक तीन निकट सम्बन्धियों के मृत्यु समाचार से मन बेहद व्यथित है. कभी घर कभी बाहर की दौड़-भाग के बीच दिन-रात कैसे गुजर रहे हैं, कुछ पता नहीं चलता. मन में दुनिया भर की बातें घर करने लगती हैं. कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा है, थोडा मन हल्का हो यही सोच ब्लॉग पर अपने मन का कुछ गुबार बाहर निकाल कर सहज होने का प्रयत्न कर रहूँ हूँ. जानती हूँ की जीना-मरना जीवन चक्र है, फिर भी जब-जब शोक संतप्त परिवारों की हालातों को देखती हूँ तो मन में एक गहरी टीस उठने लगती है. जाने वाले चले जाते हैं लेकिन जीने वालों के लिए जीना कितना कठिन हो जाता है, यही सोच बार-बार मन उद्धिग्न होकर जिंदगी के भंवर जाल उलझने लगता है. सोचती हूँ....


जिंदगी को क्या कहूँ?
अतीत का खंडहर
या फिर
भविष्य की कल्पना!
भविष्य की आशा में अटका आदमी
उठता, बैठता, काम करता
बड़ी हड़बड़ी में भागता रहता
कुछ निश्चित नहीं किसलिए?
जिंदगी में कितने झूठ
बना लेता है एक आदमी-
लड़का बड़ा होगा, शादी होगी
बच्चे होंगे, धन कमाएगा
नाम रोशन करेगा, खुशहाल रखेगा
और यही सब करते-करते
मर जाता है बेटे के नाम
और बेटा बेटे के लिए
ऐसे ही मरते चले जाते है
एक-दूसरे के नाम पर!
गलत कहते है लोग
की मौत दुस्तर है?
भला मौत में क्या दुस्तरता?
क्षण भर में मर जाते हैं
सबकुछ धरा रह जाता है यहीं
खाली हाथ आया, खाली हाथ गया
जन्म लेता है तो किसी और के हाथ में
और मरता है तो भी किसी दूसरे के हाथ में
बीच की थोड़ी-बहुत घड़ियों में
अपने लिए कितना जी पाता है?
सच में मरना बहुत आसान है
लेकिन जीना बहुत कठिन!

          ....कविता रावत