पिछले सप्ताह एक के बाद एक तीन निकट सम्बन्धियों के मृत्यु समाचार से मन बेहद व्यथित है. कभी घर कभी बाहर की दौड़-भाग के बीच दिन-रात कैसे गुजर रहे हैं, कुछ पता नहीं चलता. मन में दुनिया भर की बातें घर करने लगती हैं. कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा है, थोडा मन हल्का हो यही सोच ब्लॉग पर अपने मन का कुछ गुबार बाहर निकाल कर सहज होने का प्रयत्न कर रहूँ हूँ. जानती हूँ की जीना-मरना जीवन चक्र है, फिर भी जब-जब शोक संतप्त परिवारों की हालातों को देखती हूँ तो मन में एक गहरी टीस उठने लगती है. जाने वाले चले जाते हैं लेकिन जीने वालों के लिए जीना कितना कठिन हो जाता है, यही सोच बार-बार मन उद्धिग्न होकर जिंदगी के भंवर जाल उलझने लगता है. सोचती हूँ....
जिंदगी को क्या कहूँ?
अतीत का खंडहर
या फिर
भविष्य की कल्पना!
भविष्य की आशा में अटका आदमी
उठता, बैठता, काम करता
बड़ी हड़बड़ी में भागता रहता
कुछ निश्चित नहीं किसलिए?
जिंदगी में कितने झूठ
बना लेता है एक आदमी-
लड़का बड़ा होगा, शादी होगी
बच्चे होंगे, धन कमाएगा
नाम रोशन करेगा, खुशहाल रखेगा
और यही सब करते-करते
मर जाता है बेटे के नाम
और बेटा बेटे के लिए
ऐसे ही मरते चले जाते है
एक-दूसरे के नाम पर!
गलत कहते है लोग
की मौत दुस्तर है?
भला मौत में क्या दुस्तरता?
क्षण भर में मर जाते हैं
सबकुछ धरा रह जाता है यहीं
खाली हाथ आया, खाली हाथ गया
जन्म लेता है तो किसी और के हाथ में
और मरता है तो भी किसी दूसरे के हाथ में
बीच की थोड़ी-बहुत घड़ियों में
अपने लिए कितना जी पाता है?
सच में मरना बहुत आसान है
लेकिन जीना बहुत कठिन!
....कविता रावत
जिंदगी को क्या कहूँ?
अतीत का खंडहर
या फिर
भविष्य की कल्पना!
भविष्य की आशा में अटका आदमी
उठता, बैठता, काम करता
बड़ी हड़बड़ी में भागता रहता
कुछ निश्चित नहीं किसलिए?
जिंदगी में कितने झूठ
बना लेता है एक आदमी-
लड़का बड़ा होगा, शादी होगी
बच्चे होंगे, धन कमाएगा
नाम रोशन करेगा, खुशहाल रखेगा
और यही सब करते-करते
मर जाता है बेटे के नाम
और बेटा बेटे के लिए
ऐसे ही मरते चले जाते है
एक-दूसरे के नाम पर!
गलत कहते है लोग
की मौत दुस्तर है?
भला मौत में क्या दुस्तरता?
क्षण भर में मर जाते हैं
सबकुछ धरा रह जाता है यहीं
खाली हाथ आया, खाली हाथ गया
जन्म लेता है तो किसी और के हाथ में
और मरता है तो भी किसी दूसरे के हाथ में
बीच की थोड़ी-बहुत घड़ियों में
अपने लिए कितना जी पाता है?
सच में मरना बहुत आसान है
लेकिन जीना बहुत कठिन!
....कविता रावत