रामलीला में रावण - Kavita Rawat Blog, Kahani, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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गुरुवार, 2 अक्तूबर 2014

रामलीला में रावण

आसुरी शक्ति पर दैवी-शक्ति की विजय का प्रतीक शक्ति की अधिष्ठात्री देवी दुर्गा के नवस्वरूपों की नवरात्र के पश्चात् आश्विन शुक्ल दशमी को इसका समापन ‘मधुरेण समापयेत’ के कारण ‘दशहरा’ नाम से प्रसिद्ध है। एक ओर जहाँ नवरात्र पूजा-पाठ का पर्व है, जिसमें की गई पूजा मानव मन को पवित्र तथा भगवती माँ के चरणों में लीन कर जीवन में सुख-शांति और ऐश्वर्य की समृद्धि करती है तो दूसरी ओर विजयादशमी धार्मिक दृष्टि से आत्मशुद्धि का पर्व है, जिसमें पूजा, अर्चना और तपोमय जीवन-साधना के साथ-साथ शक्ति के प्रतीक शस्त्रों का शास्त्रीय विधि से पूजन इसके अंग माने गए हैं। यह हमारी  राष्ट्रीय शक्ति संवर्धन का दिन होने से राष्ट्रीय त्यौहार भी है। पर्व और त्यौहार हमारी भारतीय सांस्कृतिक एकता की आधारशिला होकर एकात्म दर्शन के साक्षी हैं। होली का हुडदंग, रक्षाबंधन की राखी, दशहरा का उल्लास तथा दीपावली व नवरात्र पूजन, रामनवमी और कृष्ण जन्माष्टमी मनाने के लिए लोग स्वप्रेरित होते हैं।  
        दशहरा असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। रावण के बिना दशहरा अधूरा है। कभी जब गांव में रामलीला का मंचन होता तो उसे देखने के लिए हम बच्चे बड़े उत्साहित रहते। पूरे 11 दिन तक आस-पास जहां भी रामलीला होती, हम जैसे-तैसे पहुंच जाते। किसी दिन भले ही नींद आ गई होगी लेकिन जिस दिन रावण का प्रसंग होता उस दिन उत्सुकतावश आंखों ने नींद उड़ जाती। पहले दिन मंच पर रावण अपने भाईयो कुंभकरण व विभीषण के साथ एक टांग पर खड़े होकर घनघोर ब्रह्मा जी की तपस्या करता नजर आता तो हम रोमांचित हो उठते। तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी उनसे वर मांगने को कहते तो वह भारी-भरकम आवाज में यह वरदान मांगते कि- 'देव-दनुज, किन्नर और नारी, जीतहूँ सबको सकल जग जानी।" कुंभकरण का विशाल शरीर देखकर ब्रह्मा जी उसे भ्रमित कर देते हैं तो वह "सुनहुं नाथ यह विनती हमारी, मो को है अति निद्रा प्यारी।" कहकर छः माह सोने व एक दिन जागने का वरदान मांग बैठता। अंत में विभीषण ब्रह्मा जी से प्रभु के चरणों में भक्ति के साथ जनकल्याण का वरदान इस तरह मांगते कि, "जो प्रभु प्रसन्न मोहि पर, दीजो यह वरदान, जनम-जनम हरि भक्ति में सदा रहे मम ध्यान।" भगवान ब्रह्मा जी ‘तथास्तु’  कहकर अंतर्ध्यान होते तो दृश्य का पटाक्षेप हो जाता। 
         अगले दृश्य में रावण वरदान पाकर अपनी शक्ति का प्रदर्शन कैलाश पर्वत पर करता दिखाई देता। कैलाश पर्वत पर शिवजी और पार्वती जी विराजमान रहते, उसे एक हाथ से उठाते हुए कहता-  "देखो ऐ लोगो तुम मेरे बल को, कैलाश परबत उठा रहा हूँ। सब देखें कौतुक नर और नारी, नर और नारी; कैलाश परबत उठा रहा हूँ।"  और जैसे ही वह कैलाश पर्वत को उठाने के लिए जोर लगता है तो पार्वती डर जाती कि यह क्या हो रहा है तो शिवजी उन्हें समझाते कि यह सब रावण का काम है जो वरदान पाकर उदण्ड हो गया है और इसी के साथ वे अपनी त्रिशुल उठाकर गाड़ देते जिससे रावण बहुत देर तक   "त्राहि माम्, त्राहि माम्" का करुण क्रंदन करने लगता जिसे सुन माता पार्वती भगवान शिव से उसे क्षमा कर देने को कहती। भोले शंकर अपना त्रिशूल उठाते तो वह छूटकर भाग खड़ा होता।
            मंचन के अगले दृश्य के लिए जैसे ही सींटी बजती और पर्दा खुलता तो वहाँ अलग-अलग शक्ल-सूरत वाले राक्षस धमाल मचाते नजर आते, जिनकी उटपटांग बातें सुनकर कभी हँसी आती तो कभी-कभी डर भी लगता। इसी बीच जैसे ही रावण तेजी से मंच पर आकर इधर से उधर चहलकदमी कर गरज-बरसकर दहाड़ता कि-"ऐ मेरे सूरवीर सरदारो! तुम बंद कंदराओं में जाकर ऋषि-मुनियों को तंग करो। उनके यज्ञ में विध्न-बाधा डालो। यज्ञहीन होने से सब देवता बलहीन हो जायेंगे और हमारी शरण में आयेंगे। तब तुम सम्पूर्ण ब्रह्मांड का सुख भोगोगे।" तो राक्षसों के साथ हमारी भी सिट्टी-पिट्टी गोल हो जाती। राक्षसों का अभिनय देखते ही बनता वे ’जी महाराज’ ‘जी महाराज’ की रट लगाकर उसके आगे-पीछे इधर से उधर छुपते फिरते।
           रावण का अगला लघु दृश्य सीता स्वयंवर में  देखने को मिलता, जहांँ वह धनुष उठाने के लिए जैसे ही तैयार होता है तो बाणासुर आकर उसे टोकते हुए समझाईश देता कि-"न कर रावण गुमान इतना, चढ़े न तुमसे धनुष भारी, मगर धनुष को प्रभु वह तोड़े जिन्होंने गौतम की नारी तारी।" जिसे सुन रावण क्रोधित होकर उसे याद दिलाते हुए मूर्ख ठहराते हुए कहता- "चुप बैठ रह वो बाणासुर, इस दुनिया में बलवान नहीं, मैंने कैलाश पर्वत उठाया था, क्या मूर्ख तुझे याद नहीं?" इसी के साथ जब वह धनुष उठाने के लिए जैसे ही झुकता तो एक आकाशवाणी होती कि उसकी बहन को कोई राक्षस उठा ले जा रहा है। जिसे सुन वह यह कहते हुए कि "अभी तो वह जा रहा है ,लेकिन एक दिन वह सीता को अपनी पटरानी जरूर बनायेगा।" तेजी से भाग जाता।  
 इसी तरह मारीच प्रसंग के बाद सीताहरण और फिर आखिर में युद्ध की तैयारी और फिर 11वें दिन राम-रावण युद्ध के दृश्य में रावण के  मारे जाने के बाद भी हमारी आपस में बहुत सी चर्चायें कभी खत्म होने का नाम नहीं लेती। स्कूल की किताब में लिखा हमें याद न हो पाये लेकिन रामलीला में किसकी क्या भूमिका रही, किसने क्या-क्या और किस ढंग से कहा इस पर आपसी संवाद स्कूल जाने और वापस घर पहुंँचने तक निरंतर चलता रहता।         
 आज जब भी दशहरा मैदान में रावण का दहन होता है तो उसके दस मुखों पर ध्यान केन्द्रित होता है। मेरी तरह आपका भी ध्यान  इस ओर जरूर जाता होगा कि क्या कभी दशानन रावण ने अपने दस मुखों से बोला होगा? इस संबंध में कहते हैं कि रावण को श्राप था कि जिस दिन वह अपने दस मुखों से एक साथ बोलेगा, उसी दिन उसकी मृत्यु सन्निकट होगी और वह बच नहीं पायेगा। इसीलिए वह बहुत सचेत रहता था। लेकिन कहा जाता है कि जब भगवान राम द्वारा समुद्र पर पुल बांध लेने का समाचार उसके दूतों ने उसे सुनाया तो वह जिस समुद्र को कभी नहीं बांध सका, इस कल्पनातीत कार्य के हो जाने पर विवेकशून्य होकर एक साथ अपने दस मुखों से समुद्र के दस नाम लेकर बोल उठा- 
बांध्यो बननिधि नीरनिधि, जलधि सिंघु बारीस।
सत्य तोयनिधि कंपति, उदति पयोधि नदीस।। 
………फिलहाल इतना ही .............

सबको दशहरा की हार्दिक शुभकामनाऐं.......कविता रावत



42 टिप्‍पणियां:

  1. कभी बचपन में हम भी गाँव में रामलीला देखने के लिए कोसों दूर रात में गाँव वालों के साथ घर से निकल जाते थे ....आज उस समय जैसी रामलीला कहीं देखने को नहीं मिलती ....
    ....गाँव जाकर फिर से वही रामलीला देखने के लिए मन मचलने लगा है ..........
    बहुत सुन्दर
    सबको दशहरा की बधाई ..

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  2. बांध्यो बननिधि नीरनिधि, जलधि सिंघु बारीस।
    सत्य तोयनिधि कंपति, उदति पयोधि नदीस।।
    ..विधि का लेख कोई नहीं मिटा पाया है आज तक ... रावण का अंत था तो वह उसकी जुबान खुल ही गयी ...
    दशहरा पर बहुत अच्छा सामयिक लेख के लिए बधाई .............सत्य पर असत्य के विजय पर्व की सबको मंगल कामना

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  3. bahut sundar alekh....vijay dashmi ki hardik badhai

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  4. बहुत सुंदर एवं सार्थक.
    रामलीला की परंपरा लगभग समाप्त होती जा रही है.

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  5. ऱहिमन जस भवितव्यता तैसी होत सहाय !

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  6. दशहरा असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। रावण के बिना दशहरा अधूरा है.............सच्ची सच्ची बात रावण न हो तो कैसा दशहरा ...............
    अच्छी लगी रामलीला में रावण की भूमिका .....

    Happy Vijaydashmi!

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  7. दशहरा पर अच्छा लेख ....l
    असत्य पर सत्य की विजय के प्रतीक विजयादशमी की बधाई!
    जय श्रीराम!

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  8. सार्थकता लिये सशक्‍त लेखन .........
    विजयादशमी पर्व की अनंत शुभकामनायें

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  9. विजयादशमी-पर्व की हार्दिक वधाई !
    राम करे रावण मर जाए !
    मानवता जी भर सुख पाए !!
    अच्छा प्रस्तुती करण !
    बहुत अच्छी जानकारी !

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  10. विजयादशमी-पर्व की हार्दिक वधाई !

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  11. बहुत बढ़िया संस्मरण कविता जी । मुझे भी रामलीला देखना बहुत पसन्द था ( है ) हमारे गाँव में हर साल रामलीला होती थी । उस विषय में मैं भी कभई जरूर लिखूँगी ।

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  12. रावण जैसे गुमानी अपनी मृत्यु का आवाहन स्वयं करते हैं।

    बढि़या संस्मरणात्मक लेख।
    शुभकामनाएं।

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  13. जय जय श्रीराम

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  14. इस लिकं पर दृष्टि रखें:

    http://disarrayedlife.blogspot.in/2014/10/science-vis-vis-india-part-1.html

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  15. मुझे रामलीला का यादगार संस्मरण बहुत पसंद आया..
    कभी हम भी रामलीला देखने के लिए कोसो पैदल नापते चले जाते थे ............
    विजय पर्व की बधाई!

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  16. दशहरे के मौके पर सुंदर और सार्थक लेख....रामलीला का अपना आकर्षण है...बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक यह पर्व, सभी के जीवन में संपूर्णता लाये, यही प्रार्थना है परमपिता परमेश्वर से।

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  17. Saarthak aalekh....aapko badhay vijaydashami ki ,,,,!!

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  18. बांध्यो बननिधि नीरनिधि, जलधि सिंघु बारीस।
    सत्य तोयनिधि कंपति, उदति पयोधि नदीस।। ...... ज्ञानपरक पोस्ट। धन्यवाद।

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  19. रावण को उसका अहंकार ले डूबा....
    ज्ञानवर्धक पोस्ट

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  20. दशहरा पर अच्छा लेख ....l
    ज्ञानवर्धक पोस्ट ..

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  21. गहन एवं विशद व्याख्या...

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  22. अच्छी प्रस्तुति गम्भीर और ज्ञान-वर्द्धक !

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  23. रावण के बिना रामलीला की कल्पना नहीं की जा सकती
    अगर कुछ गलत हो तभी सही का अर्थ समझ आता है
    सादर !

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  25. अतीत में प्रवेश करा दिया आपने -- बचपन में जब राम लीला देखने जाते थे तो बिना रावण वाला द्रश्य देखे बिना मजा नहीं आता था --
    राम लीला रावण,परशराम संवाद के बिना अधूरी है ---
    बेहद सार्थक और जीवंत आलेख
    उत्कृष्ट प्रस्तुति
    सादर

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  30. बहुत बढ़िया प्रस्तुति.......

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  31. रामलीला देखना सचमें बड़ा आनंददायक लगता है. सुन्दर लेखन. बधाई.

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  32. सुंदरम मनोहरं

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  33. आपने बचपन की यादों में धकेल दिया ... कितना आनद था उन दिनों में ये बात आज की मारामारी में बाखूबी समझ आती है ...
    बुराई पे अच्छाई की जीत का ये पर्व बहुत प्रेरित करता है और समाज को बांधता है ...
    आपको सपरिवार विजयदशमी की बधाई ...

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  34. सुंदर वर्णन..काफी नयी जानकारी मिली।

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  35. वाह। आपने सुंदर शब्दों में पहाड़ की रामलीला का खाका खींचा है। रात को रामलीला और सुबह काम। फिर भी उत्साह बना रहता था। आपने रावण को केंद्र में बनाकर सभी दृश्यों को जीवंत कर दिया। शहरों में पहाड़ की रामलीला की दिल्ली में कुछ जगह कोशिश हो रही है लेकिन इनमें पहाड़ के रंग नहीं भरे जा सकते हैं। हमारी वो प्यारी रामलीला यादों में ही जीवित रहे यही हम सबके लिये भी अच्छा होगा।

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