शिक्षकों द्वारा किए गए श्रेष्ठ कार्यों का मूल्यांकन कर उन्हें सम्मानित करने का दिन है ‘शिक्षक दिवस‘। छात्र-छात्राओं के प्रति और अधिक उत्साह-उमंग से अध्यापन, शिक्षण और जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में संघर्ष के लिए उनके अंदर छिपी शक्तियों को जागृत करने का संकल्प-दिवस है ‘अध्यापक दिवस’। यह दिवस समाज और राष्ट्र में ‘शिक्षक’ के गर्व और गौरव को पहचान कराता है। इस दिन विभिन्न राज्यों से शिक्षण के प्रति समर्पित अति विशिष्ट शिक्षकों को पुरुस्कृत कर सम्मानित किया जाता है।
तमिलनाडु के तिरुतनी नामक गांव में 5 सितम्बर 1888 को जन्मे डाॅ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन् प्रकांड विद्वान, दार्शनिक, शिक्षा-शास्त्री, संस्कृतज्ञ और राजनयज्ञ थे। वे सन् 1962 से 1967 तक भारत के राष्ट्रपति भी रहे। इस पद पर आने के पूर्व वे शिक्षा जगत् से ही सम्बद्ध थे। मद्रास में प्रेजीडेंसी कालेज में वे दर्शनशास्त्र के सहायक प्राध्यापक रहे। सन् 1936 से 1939 तक वे आॅक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में पूर्वी देशों के धर्म और दर्शन के ‘स्पाल्डिंग प्रोफेसर’ पद पर रहे। उन्होंने अपने लेखों और भाषणों के माध्यम से विश्व को भारतीय दर्शनशास्त्र से परिचित कराया। वे वर्ष 1939 से 1948 तक काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के उपकुलपति पद पर आसीन हुए। वे 1949 से 1952 तक रूस की राजधानी मास्को में भारत के राजदूत रहे। इस दौरान भारत-रूस मैत्री बढ़ाने में उनका भारी योगदान रहा। उनके उल्लेखनीय कार्यो के लिए भारत के प्रथम राष्ट्रपति डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद जी ने उन्हें देश का सर्वोच्च अलंकरण भारत रत्न प्रदान किया। राष्ट्रपति बनने के बाद जब उनके प्रशंसकों ने उनका जन्मदिवस सार्वजनिक रूप से मनाना चाहा तो उन्होंने जीवनपर्यन्त स्वयं शिक्षक रहने के नाते उन्होंने अपने जन्मदिवस 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाना स्वीकार किया। तभी से प्रतिवर्ष यह दिन ‘शिक्षक दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।