मैं आऊँगा कल - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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शुक्रवार, 20 मार्च 2020

मैं आऊँगा कल

यही तो रास्ता है मेरे रोज गुजरने का
एक बार, दो बार, रोज ......
एक दिन अचानक नजरे मिली थी तुमसे वहाँ
तुम वहीं कहीं खड़ी थी
सूरत तुम्हारी आज भी याद है
सूरज की रौशनी में ओंस की बूंदों की चमक लिए
रोज यूँ ही देखा करता था तुम्हें गुजरते हुए
उस घनी हरियाली के बीच,
पत्थर पहाड़ों के पीछे तुम खड़ी मुस्कुराती थी
दूर से ही बातें किया करते थे
या फिर यूँ कहँ कि-
सिर्फ पूछा करते थे और खुद ही उसके जवाब बनाते थे
कभी हिम्मत ही नहीं हुई कि तुम्हारे पास आऊँ
मिलूँ तुमसे, बताऊँ तुम्हें अपने बारे में
बस यूँ ही दूर से ही देखा करता था तुम्हें
सोचता था हिम्मत जुटा लूँगा मैं कल,
हिम्मत जुटा लूँगा मैं कल
कल-कल-कल .........
वह कल आज आ गया है
पर तुम कहीं दिखाई ही नहीं देती
न वह हरियाली, न वह पत्थर-पहाड़
पेड़ों की जड़ें मरी पड़ी है जमीन पर
और पत्थर बिखरे, मिट्टी धूल में मिली है
तुम्हें क्या इन दरवाजों के भीतर किसी ने छुपाया है
या कहीं दीवारों में चुनवा तो नहीं दिया!
एक भीनीं-भीनीं खूशबू तो आती है यहाँ,
जो तुम्हारे होने का एहसास कराती है
कहीं चौकीदार से खड़े उस बड़े से पत्थर के पीछे तो नहीं हो तुम!
नहीं-नहीं, तुम वहीं रहना यहाँ न आना
इन सब इमारतों ने पीठ की हुई है तुम्हारी तरफ
यह जानती हैं यह कितनी गुनहगार हैं
तुमसे नजरें मिलाने को इन्होंने झरोखे रख छोड़े हैं
हमारी लाचारी का मजाक उड़ाते झरोखे
इनसे कैसे ढूंढ़ूंगा तुम्हें
यह नन्हीं बेले दीवारों पर चढ़ती हुई तुमने छोड़ी है
या सन्देश है तुम्हारे वापस आने का
न, ना तुम यहाँ न आना
मैं आऊँगा फिर हिम्मत जुटा के कल
मैं आऊँगा कल!
......मिलन सिंह

17 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आशा का संचार करती सुन्दर प्रस्तुति।

Digvijay Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 20 मार्च 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

कविता रावत ने कहा…

धन्यवाद !

Rohitas Ghorela ने कहा…

जब मौका होता है तो हिम्मत नहीं होती
और जब उतनी हिम्मत जुटाते है कि काम चल जाएगा तब इतनी सी हिम्मत की बजाए कड़ी मेहनत की जरूरत होती है।
और उम्मीद कायम रहती है तो मंजिल भी मिल जाती है क्योंकि मंजिल भी मिलने के संकेत भेजती है।
उम्दा उम्दा।
नयी रचना पढ़े- सर्वोपरि?

अनीता सैनी ने कहा…

जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(२१-०३-२०२०) को "विश्व गौरैया दिवस"( चर्चाअंक -३६४७ ) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी

कविता रावत ने कहा…

धन्यवाद जी !

शुभा ने कहा…

वाह!बहुत खूब!

Onkar ने कहा…

सुन्दर रचना

Sudha Devrani ने कहा…

कभी हिम्मत ही नहीं हुई कि तुम्हारे पास आऊँ
मिलूँ तुमसे, बताऊँ तुम्हें अपने बारे में
बस यूँ ही दूर से ही देखा करता था तुम्हें
सोचता था हिम्मत जुटा लूँगा मैं कल,
हिम्मत जुटा लूँगा मैं कल
कल-कल-कल .........
बहुत ही भावपूर्ण लाजवाब सृजन ।

Kamini Sinha ने कहा…

भावपूर्ण लाज़बाब सृजन कविता जी ,सादर नमन

दिगम्बर नासवा ने कहा…

वाह ... बहुत ही लाजवाब भावपूर्ण सृजन ...
धुंधले से सहमे छुपे प्रेम की महक से सजी रचना ...

Alaknanda Singh ने कहा…

जीवन की यही ज‍िजीव‍िषा... क‍ि सबकुछ खोता हुआ देखकर भी फ‍िर लौट आने की आशा सदैव बनी रहती है .... बहुत ही खूबसूरत रचना कव‍िता जी

Jyoti Dehliwal ने कहा…

आशा का संचार करती बहुत सुंदर रचना,कविता दी।

Meena Bhardwaj ने कहा…

बेहतरीन व लाजवाब सृजन ।

RAJU BATTI ने कहा…

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~Sudha Singh vyaghr~ ने कहा…

सुंदर भावपूर्ण रचना

Vivekahuja288blogspot ने कहा…

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