लाख बहाने पास हमारे
कैसा फैला झूठा रोग
जितने रंग बदलता गिरगिट
उतने रंग बदलते लोग
नहीं पता कब किसको
किसके आगे रोना-झुकना
रंग बदलती दुनिया में
कब कितना जीना-मरना
नहीं कुछ जब पास तुम्हारे
कोई कितना अपना रहता
किसे पड़ी जाकर देखें
कैसे जीता मरता खपता
नाते रिश्ते बहुत हमारे
इसका सबको खूब पता
वक्त पड़े तो देखो जरा
कहीं न मिलता अता-पता
@कविता रावत
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