घर के आसपास पानी जमा न होने, शरीर ढंककर सोने, मच्छरदानी और मास्क्यूटो क्वायल लगाने, टंकियों व कूलर में जमा पानी हर दिन बदलने से लेकर हर दिन बगीचे में रखे गमलों में पानी जमा न होने देने और उन्हें सड़ने से बचाए रखने के उपरांत भी जाने कैसे मेरे शिवा को पिछले सप्ताह डेंगू हुआ तो उसे एक निजी अस्पताल में 5 दिन तक भर्ती रहना पड़ा। इस दौरान अस्पताल में यदि मुझे कोई मच्छर नजर आता तो मेरे दोनों हाथ यंत्रवत् खड़े हो उठते और उसका खात्मा करके ही जब वापस आते तब मुझे चैन मिलता। सुना था कि डेंगू के मच्छर सामान्यतः दिन में काटते हैं, इसलिए दिन में कुछ ज्यादा सतर्कता बरतनी पड़ी। वैसे भी दिन में एक मिनट की भी फुर्सत नहीं मिली। एक तरफ एलोपैथिक इलाज जिसमें मेरे शिवा पर ग्लूकोज के साथ एक दिन में लगभग 12 इंजेक्शन लगाए जा रहे थे तो दूसरी ओर हमारा शहद के साथ पपीते के पत्तों और गिलोय के तने का रस, नारियल पानी, मौसम्बी और अनार का रस, बकरी का दूध और कीवी फल आदि द्वारा आयुर्वेदिक उपचार लगातार चलता रहा। इस दौरान बच्चे को इतने कडुवे घूँट पिलाना बड़ा कटु अनुभव रहा। खैर अब जबकि मेरा शिवा पूर्ण रूप से स्वस्थ है तो सोचा क्यों न ब्लॉग पर डेंगू के विषय में लिखूं।

कहा जाता है कि डेंगू फीवर शब्द पहले डेंडी फीवर था, जिसे वेस्टइंडीज में गुलाम बनाए गए लोगों के नाम दिया था। इसका मतलब हड्डियों में उठने वाले दर्द से है। डेंगू का पहला प्रकरण चीन की मेडिकल इनसाइक्लोपीडिया ‘जिन डायनेस्टी’ (265-420 एडी) में मिलता है। वर्ष 1980 के लगभग अफ्रीका, उत्तर अमेरिका और एशिया में लोगों में एक जैसी बीमारी के लक्षण देखे गए। इसके बाद कई मेडिकल रिसर्च हाने के बाद अंततः वर्ष 1779 में इसे एक बीमारी माना गया।
वर्तमान में एलोपैथी में अन्य खतरनाक बीमारियों की तरह ही समय पर पता चलने पर डेंगू का इलाज उपलब्ध है। लेकिन यदि इसके साथ-साथ आयुर्वेदिक इलाज भी किया जाता है तो निश्चित ही बड़ी जल्दी इस बीमारी से व्यक्ति को निजात मिलते देर नहीं लगती है। डेंगू का आयुर्वेदिक उपचार के तहत् पहले कब्जी दूर करने के लिए हरड़े का चूर्ण एक चम्मच रात को गर्म पानी में लेने और मुनक्का भिगोकर खाने को दिया जाता है। शरीर में बाहरी त्वचा पर कर्पूर, पानी में मिलाकर लगाने की सलाह दी जाती है। इसके साथ ही तुलसी के पांच पत्ते, नीम के पांच पत्ते पीसकर उसकी तीन गोली बनाकर एक-एक गोली दिन में तीन बार लगातार 5 दिन तक पानी से लेने की सलाह दी जाती है। इसके साथ ही हल्दी आधा चम्मच, दो काली मिर्च, तुलसी के दो पत्तों को 250 ग्राम पानी में उबालकर आधा पानी शेष रहने पर नींबू के रस या चीनी के साथ मिलाकर पीने, बिना दूध की नींबू की चाय पीने, एक कप गर्म दूध में हल्दी दो ग्राम, तुलसी के तीन पत्ते पीसकर मिलाकर दिन में दो बार लेने से लाभ होता है।
इसके अतिरिक्त तुलसी के पत्तों का रस पाव चम्मच, शहद पाव चम्मच, एक चुटकी सौंठ के मिश्रण को दिन में तीन बार लेने, नींम की सात कोंपल, पांच काली मिर्च पीसकर दो चम्मच पानी में मिलाकर दिन में तीन बार लेने और सौंठ, काली मिर्च, पीपल, अजवायन, तुलसी के पत्ते, नीम के तीन-तीन पत्तों को लेकर उन्हें पीसकर दो चम्मच पानी में मिलाते हुए थोड़ा सेंधा नमक मिलाकर तीन बार लेने से विशेष लाभ होता है।
डेंगू ग्रसित व्यक्ति को खान-पान में परहेज करना बहुत जरूरी है। इसमें बीमार व्यक्ति को खिचड़ी, गेहूं का दलिया, पतली रोटी, मूंग और मसूर की दाल, बकरी का दूध, मुनक्का, नींबू की चाय, मौसम्बी, सेब, पपीता, अनार आदि खाना चाहिए एवं कुछ दिन चावल, तली चीजें, मिठाई, फ्रिज में रखी हुई चीजें, आमचूर, इमली, गरिष्ठ भोजन, बाजार की तली व अशुद्ध चीजें नहीं खानी चाहिए।
डेंगू मच्छरों द्वारा फैलाया जाने वाला रोग है। इसलिए इलाज से बेहतर है कि इसकी रोकथाम के उपाय कर लिए जायें, जिससे इन्हें पनपने का अवसर न मिलें। इसके लिए हमारे प्राचीन आयुर्वेद के जानकारों ने मच्छरों को दूर भगाने के लिए घर में तुलसी, गेंदा, हार्समिंट, लेमन बाल्म, लेवेंडर, रोजमेरी और लौंग के पौधे लगाने की सलाह दी है, क्योंकि इनकी गंध मच्छरों को नहीं सुहाती है। अकेले विडालपर्णास के पौधे में मच्छरों को भगाने वाले क्वाइल और स्प्रे से कहीं ज्यादा रसायन होना बताया गया है, जो कि मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक भी नहीं होता है।