घर सारा बीमार है - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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शुक्रवार, 20 मई 2011

घर सारा बीमार है

एक बार आकर देख जा बेटे
घर को तेरा इन्तजार है
घर सारा बीमार है.

बाप के तेरे खांस-खांस कर
हुआ बुरा हाल है
छूटी लाठी, पकड़ी खटिया
बिन इलाज़ बेहाल है
तेरे नाम के रटन लगी
जान जर्जर सूखी डार है
घर सारा बीमार है.

भाई तेरा रोज दुकान पर खटता
देर रात नशे में धुत लौटता
उस पर किसी का जोर न चलता
नशे में भूला घर परिवार है
घर सारा बीमार है

यह निशानी पुरखों के घर की
वह भी अपनी नियति पर रोती है
झर-झर कर कंकाल बन बैठी
जाने कब तक साथ निभाती है?
खंडहर हो रही हैं जिंदगियां
कहने भर को बचा यह संसार है
घर सारा बीमार है!

       ....कविता रावत

     गाँव मुझे हरदम अपनी ओर आकर्षित करते हैं इसलिए जब भी मौका मिलता है निकल पड़ती हूँ भले ही दो-चार दिन के लिए ही सही। लेकिन जितने समय वहां रहती हूँकई घर-परिवारों की दशा देखकर शहर में आकर भी मन वहीँ बार-बार भटकने लगता है. पिछली बार जब गाँव जाना हुआ तो गाँव के एक परिवार की दशा देख जब उसके परदेशी बेटे से जो 3 साल से घर नहीं आया था; हो सकता है उसकी भी कुछ मजबूरी रही होगी। उसकी माँ से मैंने अपने मोबाइल से बात करवाई तो वह माँ रुंधे कंठ से जिस तरह एक झीनी उम्मीद से अपना दुखड़ा सुना रही थी, वही बीते पलों की यादें व्यथित हो छलक उठे हैं कविता के रूप में.. 

88 टिप्‍पणियां:

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

यह निशानी पुरखों के घर की
वह भी अपनी नियति पर रोती है!
झर-झर कर कंकाल बन बैठी
जाने कब तक साथ निभाती है?
खंडहर हो रही हैं जिंदगियां
कहने भर को बचा यह संसार है
घर सारा बीमार है!

सच में यही हालात हैं..... बहुत सही शब्द चुने आपने

pratibha ने कहा…

भाई तेरा रोज दुकान पर खटता
देर रात नशे में धुत लौटता
उस पर किसी का जोर न चलता
नशे में भूला घर परिवार है
घर सारा बीमार है
....कमोवेश शहर की स्लम बस्तियों को तो छोडो बहुत से अच्छे खासे दिखने वाले कई परिवारों की औलादों का भी यही हाल है... संवेदना से परिपूर्ण तस्वीर और मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति के लिए बहुत बहुत आभार....

Shah Nawaz ने कहा…

बहुत ही बेहतरीन भाव लिए हुए रचना है... बहुत पसंद आई कविता जी.

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

यह निशानी पुरखों के घर की
वह भी अपनी नियति पर रोती है!
झर-झर कर कंकाल बन बैठी
जाने कब तक साथ निभाती है?
खंडहर हो रही हैं जिंदगियां
कहने भर को बचा यह संसार है
घर सारा बीमार है!


sach me ek gaon ki kahani kah di aapne..!!
aisa hi to hota hai...!!
bahut marmsparshi abhivyakti..

Apanatva ने कहा…

dil tak seedhe pahuchee ye rachana.......
marmik prastuti.
nagreekaran ka kaduva sach hai ye ....

M VERMA ने कहा…

सीधे दिल में उतर जाने वाली रचना

vijay ने कहा…

यह निशानी पुरखों के घर की
वह भी अपनी नियति पर रोती है!
झर-झर कर कंकाल बन बैठी
जाने कब तक साथ निभाती है?
खंडहर हो रही हैं जिंदगियां
कहने भर को बचा यह संसार है
घर सारा बीमार है!
...............
शहर में अपनी घर गृहस्थी में रम चुके घर परिवार के यही हाल है... एक बार अपना घर परिवार शहर क्या लाते हैं कि घर में बूढ़े माँ-बाप और घर की सुध लेना ही भूल जाते है .. माना की शहर में घर परिवार चलाना दुश्वार होता जा रहा लेकिन इसके बावजूद गाँव को और विशेषकर अपने माँ-बाप भूल जाना सच में आज बेहद दुखदायी बनता जा रहा है ......
संवेदना से भरी प्रस्तुति के लिए बहुत आभार..धन्यवाद

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

Nice post.

लौट कर वापस सफ़र से जब घर आते हैं हम
डाल कर बाहें गले में सर को सहलाती है माँ

ऐसा लगता है कि जैसे आ गए फ़िरदौस में
भींचकर बाहों में जब सीने से लिपटाती है माँ

देर हो जाती है घर आने में अक्सर जब हमें
रेत पर मछली हो जैसे ऐसे घबराती है माँ

मरते दम बच्चा न आ पाए अगर परदेस से
अपनी दोनों आँखें चैखट पे रख जाती है माँ

बाद मर जाने के फिर बेटे की खि़दमत के लिए
भेस बेटी का बदल कर घर में आ जाती है माँ

http://pyarimaan.blogspot.com/2011/02/mother.html

अल्लाह का फ़रमान है कि 'मेरे प्रति कृतज्ञ हो और अपने माँ-बाप के प्रति भी'

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

खंडहर हो रही हैं जिंदगियां
कहने भर को बचा यह संसार है
घर सारा बीमार है!

अंतस को झकझोरती हुई बेहतरीन रचना के लिए साधुवाद....

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत मार्मिक प्रस्तुति ...

सुज्ञ ने कहा…

हृदय विदीर्ण करती यह पुकार है,
घर सारा बीमार है

नशे में भूला घर परिवार है
घर सारा बीमार है

रश्मि प्रभा... ने कहा…

यह निशानी पुरखों के घर की
वह भी अपनी नियति पर रोती है!
झर-झर कर कंकाल बन बैठी
जाने कब तक साथ निभाती है?
खंडहर हो रही हैं जिंदगियां
कहने भर को बचा यह संसार है
घर सारा बीमार है!
dard hi dard hai rachna me

रचना दीक्षित ने कहा…

बहुत द्विविधापूर्ण स्थिति है. जब बच्चे बाहर जाते है सबको शुरू में बहुत अच्छा लगता है परन्तु बाद में सब बेमजा हो जाता है.
संवेदनाएं ऐसे परिवारों के प्रति.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

घर सारा बीमार है, संवेदनायें जगा गयी।

Sujata ने कहा…

बाप के तेरे खांस-खांस कर
हुआ बुरा हाल है
छूटी लाठी, पकड़ी खटिया
बिन इलाज़ बेहाल है
तेरे नाम के रटन लगी
जान जर्जर सूखी डार है
घर सारा बीमार है.

खंडहर हो रही हैं जिंदगियां
कहने भर को बचा यह संसार है
घर सारा बीमार है!

गहन संवेदना से उपजी गहरे मर्म को छूती मन को झकझोर करने वाली प्रभावकारी कृति ... पढ़कर मन में गहरी हलचल से मच गयी.... आपका बहुत बहुत धन्यवाद और आभार .............

डॉ टी एस दराल ने कहा…

गरीबी , भुखमरी , बेरोजगारी --गाँव में रहकर घर सारा बीमार होना लाजिमी है । ऐसे में पलायन होना भी ज़रूरी है । लेकिन एक बार शहर या विदेश जाने के बाद कौन वापस लौटता है ।
सही कशमकश को दर्शाती रचना , कविता जी ।

Unknown ने कहा…

यह निशानी पुरखों के घर की
वह भी अपनी नियति पर रोती है!
झर-झर कर कंकाल बन बैठी
जाने कब तक साथ निभाती है?
खंडहर हो रही हैं जिंदगियां
कहने भर को बचा यह संसार है
घर सारा बीमार है!
..dard se sarobaar kar dene wali anoothi rachna...

Maheshwari kaneri ने कहा…

यह निशानी पुरखों के घर की
वह भी अपनी नियति पर रोती है!
झर-झर कर कंकाल बन बैठी
जाने कब तक साथ निभाती है?
खंडहर हो रही हैं जिंदगियां
कहने भर को बचा यह संसार है
घर सारा बीमार है...रचना में बहुत दर्द है … सोचने को मजबूर हुए होंगे सब….

शूरवीर रावत ने कहा…

यह स्थिति कमोबेश सभी जगह है कविता जी, आपने सुन्दर शब्दों का रूप देकर मर्मस्पर्शी बना दिया. आभार.

Surya ने कहा…

हृदय विदीर्ण करती यह पुकार है,
तेरे नाम के रटन लगी
जान जर्जर सूखी डार है
घर सारा बीमार है.
घर सारा बीमार है
नशे में भूला घर परिवार है
घर सारा बीमार है

Unknown ने कहा…

यह निशानी पुरखों के घर की
वह भी अपनी नियति पर रोती है!
झर-झर कर कंकाल बन बैठी
जाने कब तक साथ निभाती है?
खंडहर हो रही हैं जिंदगियां
कहने भर को बचा यह संसार है
घर सारा बीमार है...रचना में बहुत दर्द है …
अंतस को झकझोरती हुई बेहतरीन रचना के लिए साधुवाद....

KRATI AARAMBH ने कहा…

'एक बार आकर देख जा बेटे
घर को तेरा इन्तजार है
घर सारा बीमार है'.
हकीकत और पीड़ा से भरी एक बहुत ही उम्दा प्रस्तुति |

Unknown ने कहा…

abhinav kavita ........

umda post !

मनोज कुमार ने कहा…

दिल को छूने वाली रचना!

rashmi ravija ने कहा…

खंडहर हो रही हैं जिंदगियां
कहने भर को बचा यह संसार है
घर सारा बीमार है!

मन द्रवित कर गयी यह रचना....कई घरों का यही हाल है.

kshama ने कहा…

यह निशानी पुरखों के घर की
वह भी अपनी नियति पर रोती है!
झर-झर कर कंकाल बन बैठी
जाने कब तक साथ निभाती है?
खंडहर हो रही हैं जिंदगियां
कहने भर को बचा यह संसार है
घर सारा बीमार है!
Kitna dard chhupa hai....ubhar aayaa hai!

Vaanbhatt ने कहा…

घर से दूर बसे हर इंसान को झकझोरने के लिए काफी हैं ये पंक्तियाँ...कुछ तो मजबूरियां रही होंगी...यूं ही कोई बेवफा नहीं होता...फँस गये ओबामा की तरह recession का मारा होगा बेटा...

Rahul Singh ने कहा…

आमतौर पर कहे जाने वाले शब्‍द होते हैं- 'तू अच्‍छे से रहना' और इसी कथन में ये सारे भाव छुपे होते हैं, जो यहां मुखर हैं.

ZEAL ने कहा…

very touching creation Kavita ji . It made me sad.

संजय भास्‍कर ने कहा…

आदरणीयकविता रावत जी
नमस्कार !
जाने कब तक साथ निभाती है?
खंडहर हो रही हैं जिंदगियां
कहने भर को बचा यह संसार है
घर सारा बीमार है रचना में बहुत दर्द है
..........अंतस को झकझोरती हुई बेहतरीन रचना

गिरधारी खंकरियाल ने कहा…

पहाड़ का दर्द अक्षरश झकझोर कर व्यक्त कर गयी ये कविता !

मदन शर्मा ने कहा…

बाप के तेरे खांस-खांस कर
हुआ बुरा हाल है
छूटी लाठी, पकड़ी खटिया
बिन इलाज़ बेहाल है
तेरे नाम के रटन लगी
जान जर्जर सूखी डार है
घर सारा बीमार है.

खंडहर हो रही हैं जिंदगियां
कहने भर को बचा यह संसार है
घर सारा बीमार है!

गहन संवेदना से उपजी गहरे मर्म को छूती मन को झकझोर करने वाली प्रभावकारी कृति ...
पढ़कर मन में गहरी हलचल से मच गयी....
आपका बहुत बहुत धन्यवाद और आभार ....

कृपया मेरे ब्लॉग पर आयें http://madanaryancom.blogspot.com/

Unknown ने कहा…

यह निशानी पुरखों के घर की
वह भी अपनी नियति पर रोती है!
झर-झर कर कंकाल बन बैठी
जाने कब तक साथ निभाती है?
खंडहर हो रही हैं जिंदगियां
कहने भर को बचा यह संसार है
घर सारा बीमार है!
..गहन संवेदना से उपजी पहाड़ का दर्द अक्षरश झकझोर कर व्यक्त कर गयी ये कविता !
आपका बहुत बहुत धन्यवाद और आभार ....

बेनामी ने कहा…

जाने कब तक साथ निभाती है?
खंडहर हो रही हैं जिंदगियां
कहने भर को बचा यह संसार है
घर सारा बीमार है!
.. दर्द जब गहराता है तो ऐसी ही दर्द भरी दास्ताँ बनकर उभरती है और आपकी संवेदनशील लेखनी से दर्द बाहर निकलकर मन द्रवित न हो, यह कैसे हो सकता है..... कविता पढ़कर लगा जैसे यह तो अपने किसी अपने का ही दर्द है ....
बेहतरीन रचना के लिए साधुवाद....

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत भावप्रणव रचना!

Dolly ने कहा…

एक बार आकर देख जा बेटे
घर को तेरा इन्तजार है
घर सारा बीमार है.
........
मन को द्रवित करने वाली इस अनुपम कृति के माध्यम से आपने अनगिनत घरों की दर्द भरी कहानी बयां कर दिल को झकझोर कर बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया... आपका बहुत बहुत शुक्रिया ..

www.navincchaturvedi.blogspot.com ने कहा…

दोष माँ-बाप का हो या औलाद का|
नस्ल तो - अस्ल में - मतलबी रह गई||

बहुत ही अच्छी कविता प्रस्तुत की है आपने| बधाई|

shailendra ने कहा…

बाप के तेरे खांस-खांस कर
हुआ बुरा हाल है
छूटी लाठी, पकड़ी खटिया
बिन इलाज़ बेहाल है
तेरे नाम के रटन लगी
जान जर्जर सूखी डार है
घर सारा बीमार है.

.....गहन संवेदना से उपजी गहरे मर्म को छूती मन को झकझोर करने वाली प्रभावकारी कृति ...

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

खंडहर हो रही हैं जिंदगियां
कहने भर को बचा यह संसार है
घर सारा बीमार है!

मार्मिक रचना।
बूढ़े मां-बाप की उपेक्षा तो हो ही रही है , अब गांव भी बूढ़े हो गए हैं, कोई ध्यान नहीं देता उसकी ओर।

Sunil Kumar ने कहा…

खंडहर हो रही हैं जिंदगियां
कहने भर को बचा यह संसार है
घर सारा बीमार है!
सच्चाई को वयां करती रचना सुंदर अभिव्यक्ति , बधाई...

BrijmohanShrivastava ने कहा…

ग्रामीण अंचल के दुखी लोगों का थेाडा सा भी कष्ट कम कर दिया और उनके दुखी चेहरेां पर मुस्कान लादी तो इससे बडा पुण्य कार्य कोई हो नहीं सकता और जब भी हम सोचते है हमने ऐसा किया एक संतोष होता है कि हम इन्सान है।

Sushil Bakliwal ने कहा…

वाकई मार्मिक चित्रण ।

Smart Indian ने कहा…

हृदय विदीर्ण करने वाली पुकार!

केवल राम ने कहा…

दर्द भरी रचना सोचने पर मजबूर करती हुई ...आपका आभार

Unknown ने कहा…

यह निशानी पुरखों के घर की
वह भी अपनी नियति पर रोती है!
झर-झर कर कंकाल बन बैठी
जाने कब तक साथ निभाती है?
खंडहर हो रही हैं जिंदगियां
कहने भर को बचा यह संसार है
घर सारा बीमार है!
..सच्चाई को वयां करती हृदय विदीर्ण करने वाली पुकार!

Suyash Singh ने कहा…

पहाड़ का दर्द अक्षरश झकझोर कर व्यक्त कर गयी ये कविता
बेहतरीन मार्मिक चित्रण के लिए साधुवाद....!

Vivek Jain ने कहा…

बहुत बढिया मार्मिक चित्रण !
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

नश्तरे एहसास ......... ने कहा…

बहुत ही भावपूर्ण लेखन है आपकी इस रचना में .......एक एक शब्द सच्चाई है कई घरों की !!

Kailash Sharma ने कहा…

खंडहर हो रही हैं जिंदगियां
कहने भर को बचा यह संसार है
घर सारा बीमार है!

बहुत मर्मस्पर्शी रचना...आज यह अनेक घरों का दर्द है...बहुत भावुक कर दिया..

Urmi ने कहा…

सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना लिखा है आपने! दिल को छू गयी हर एक पंक्तियाँ! उम्दा प्रस्तुती!

अनुभूति ने कहा…

बहुत ही भाव पूर्ण रचना ...पलायन से उपजी अंतहीन ब्यथा ..सूना आकाश सूना मन ...सूना आँगन....

Sujata ने कहा…

यह निशानी पुरखों के घर की
वह भी अपनी नियति पर रोती है!
झर-झर कर कंकाल बन बैठी
जाने कब तक साथ निभाती है?
खंडहर हो रही हैं जिंदगियां
कहने भर को बचा यह संसार है
घर सारा बीमार है!
..आज यह अनेक घरों का दर्द है...बहुत भावुक कर सच्चाई को वयां करती हृदय विदीर्ण करने वाली पुकार!
May 23, 2011 3:06 PM
आज यह अनेक घरों का दर्द है...बहुत भावुक कर दिया..

Navneet ने कहा…

खंडहर हो रही हैं जिंदगियां
कहने भर को बचा यह संसार है
घर सारा बीमार है!
...
Pahad ke dard ko aaine mein utar kar dil mein ek gahree uthal-puthal macha gayee aapki yah kativa......ek sachai jiske ham kitne kareeb hokar bhi usse kitne beparwah ho jaate hain, kisi ka dard ek samvedansheel insaan ko kitna vyathit karta hai yah aapki es kavita mein saaf jhalakata hai.... utkrisht maarmik rachna ke liye aapka bahut bahut aabhar......

दिगम्बर नासवा ने कहा…

यह निशानी पुरखों के घर की
वह भी अपनी नियति पर रोती है!
झर-झर कर कंकाल बन बैठी
जाने कब तक साथ निभाती है...

बहुत भाव पूर्ण रचना ... एक मा के दिल के ज़ज्बात खोल कर रख दिए हैं ... आज न जाने कितनी माएँ ऐसे ही तड़पति हैं ... भोतिकता वाद छाता जा रहा है ...

अशोक सलूजा ने कहा…

एक बार आकर देख जा बेटे
घर को तेरा इन्तजार है
घर सारा बीमार है!

सरल शब्दों में सुंदर रचना!
एहसासों को मुश्किल शब्दों की मोहताजी नही....
खुश रहो !
आशीर्वाद !

Satish Saxena ने कहा…

दिल को गहरे तक छूने वाली रचना ...आभार !!

Bharat Bhushan ने कहा…

सरल शब्दों में पूरा दर्द गा देने वाली रचना.

Pramod Kumar Kush 'tanha' ने कहा…

छूटी लाठी, पकड़ी खटिया
बिन इलाज़ बेहाल है
तेरे नाम के रटन लगी
जान जर्जर सूखी डार है
घर सारा बीमार है.....

behtareen rachna hai...

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

बाप के तेरे खांस-खांस कर
हुआ बुरा हाल है
छूटी लाठी, पकड़ी खटिया
बिन इलाज़ बेहाल है
तेरे नाम के रटन लगी
जान जर्जर सूखी डार है
घर सारा बीमार है.

सच में बहुत सुंदर रचना है

रेखा ने कहा…

भावुक कर गई आपकी कविता ....

रेखा ने कहा…

आपने भरोसा दिलाया की नहीं , कि बेटा जरूर आएगा.

Patali-The-Village ने कहा…

बहुत ही बेहतरीन भाव लिए हुए रचना है| धन्यवाद|

बेनामी ने कहा…

ग्रामीण जीवन की साकार प्रस्तुति - बधाई तथा धन्यवाद्

पंकज मिश्रा ने कहा…

बिल्कुल सही लिखा आपने। बहुत तकलीफ देता है, अपनों का न होना। लेकिन और भी तकलीफ देता है अपनों का दूर होना।
फिल्म नाम में इसी दर्द को चिट्टी आई है के माध्यम से दर्शाया गया था।

पंकज मिश्रा ने कहा…

मैं इस ब्लॉग को फालो कर रहा हूं। अगर आप चाहें तो मेरा ब्लॉग फालो कर सकते हैं।

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

बहुत मर्मस्पर्शी रचना..

Amrita Tanmay ने कहा…

Mere ganv ka bhi kuchh aisa hi haal hai...aah.....

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

बहुत मर्मस्पर्शी रचना..

ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने कहा…

अपनों से दूर होने का दुःख वही जानता है जो इसे भोगता है !
कविता की गहरी अभिव्यक्ति दिल को छूकर आँखों में उभर आती है आँसू बनकर !

RAJ ने कहा…

यह निशानी पुरखों के घर की
वह भी अपनी नियति पर रोती है!
झर-झर कर कंकाल बन बैठी
जाने कब तक साथ निभाती है?
खंडहर हो रही हैं जिंदगियां
कहने भर को बचा यह संसार है
घर सारा बीमार है!
..Mujhe apna gaon yaad aa gaya, main kho gaya gaon kee galiyaron mein, kuch aisi hi dasha hai bahut saare ghar-pariwar kee..... ek kadwi sachhi kee hradyavidarak abhivykti ke liye dhanyavaad....

vijay ने कहा…

ग्रामीण जीवन की र्मस्पर्शी साकार प्रस्तुति - बधाई तथा धन्यवाद्!

Surendra shukla" Bhramar"5 ने कहा…

कविता जी बहुत ही सटीक रचना गाँव की स्थिति आज जो है बिलकुल सच उकेरा आप ने -काश लोग- हमारी सरकार इस स्थिति से उबारे-रोजगार के लिए बच्चों का पलायन बूढ़े माँ बाप का अकेले पड़ा रहना बहुत ही चिंतनीय है बच्चे उनकी लाठी -सहारा होते हैं और जब उनमे ताकत नहीं रही तो वे बेहाल -
बधाई हो आप को निम्न बहुत ही देखा जा रहा है आज कल

भाई तेरा रोज दुकान पर खटता
देर रात नशे में धुत लौटता
उस पर किसी का जोर न चलता
नशे में भूला घर परिवार है
घर सारा बीमार है
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५

nilesh mathur ने कहा…

संवेदनशील रचना!

मीनाक्षी ने कहा…

मर्मस्पर्शी रचना...

virendra sharma ने कहा…

यही तो हमारे देश का भी हाल है ,घर सारा बीमार है ,असली झांकी एक और हिन्दुस्तान की दिखलाई दी .

Sonu ने कहा…

भाई तेरा रोज दुकान पर खटता
देर रात नशे में धुत लौटता
उस पर किसी का जोर न चलता
नशे में भूला घर परिवार है
घर सारा बीमार है
...gaon hi shahar mein bhi aise haalat hai....

Dr Varsha Singh ने कहा…

बहुत अच्छी कविता। सच्चाई को बयां करती हुई ....

पूनम श्रीवास्तव ने कहा…

kavita ji
bahut hi samvedana bhari hai aapki kavita me jo dil ko andar tak ek maa ke dil ke hal ko mahsus kara kar bahut hi jhakjhor gai .
sach maa ke ye bol kitna dard smete hue hai apne aap me ------
यह निशानी पुरखों के घर की
वह भी अपनी नियति पर रोती है!
झर-झर कर कंकाल बन बैठी
जाने कब तक साथ निभाती है?
खंडहर हो रही हैं जिंदगियां
कहने भर को बचा यह संसार है
घर सारा बीमार है!
bahut hi saral shabdo me samvedan -sheel prastuti
bahut bahut badhai
poonam

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

गाँव -गरीब की शाश्वत वेदना को सहजता से अभिव्यक्त करती आपकी रचना .....
सच्चाई को स्वर देती , मन को उद्वेलित करती आपकी भावपूर्ण रचना....................वाकई मर्म को छू गयी

राज भाटिय़ा ने कहा…

बेटो की जरुर कोई मजबुरी होगी... जो गांव मे मां बाप के पास नही जा पा रहे, हो सकता हे नालयक हो, राम जाने, आप की इस कहानी ने भावूक कर दिया, बहुत सुंदर लिखा आप ने धन्यवाद

Richa P Madhwani ने कहा…

सच्चाई को बयां करती हुई ..वाकई मर्म को छू गयी ...सच में बहुत सुंदर रचना है ...

बेनामी ने कहा…

सीधे दिल में उतर जाने वाली रचना

मनोज कुमार श्रीवास्तव ने कहा…

Very beautifully written......I have also added one Stanza......Do tell me how it is ?????

मंहगाई के जाल में उलझा जीवन सारा
कर्ज़दार ने जी भर करके सबको मारा
नैनों से भी नीर चुक गए अब आ आ के
इच्छा सभी की जीवन त्यागें हम कुछ खा के
अब भी तो घर आजा बावरे जो थोडा भी प्यार है...
घर सारा बीमार है.........

aarkay ने कहा…

एक माँ की व्यथा को सुंदर कविता का रूप दिया है आपने . यथार्थ का अच्छा रेखांकन !

sunita upadhyay ने कहा…

आपकी इस कविता ने अन्तह मान को छुआ है,
हमारे देश में ज्यादातर घरों की यही दशा होती जा रही है.
अच्छी कविता के लिए आभार एवं धन्यवाद.

sunita upadhyay ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

गाँव मुझे हरदम अपनी ओर आकर्षित करते हैं।
muihe bhI.

बेनामी ने कहा…

I couldn't resist commenting. Perfectly written!

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