कपोल कल्पित कल्पना में जीने वाले
हकीकत का सामना करने से डरते हैं
जो हौंसला रखते सागर पार करने की
वह कभी नदियों में नहीं डूबा करते हैं
ऊंचाईयों छूने की इच्छा रखते हैं सभी
पर भला भरसक यत्न कितने करते हैं?
जो राह पकड़ चलते-रहते हैं निरंतर
वही एक दिन मंजिल तक पहुँचते हैं
देखकर निर्मल गगन के पंछियों को
मन जिसका उड़ान भरने लगता है
पर लगाकर जो उड़ना चाहे आसमां में
वह जमीं पर भला कैसे चल सकता है?
आखिर बह रही है हवा किस ओऱ
जिसको इसकी रुख की सीख नहीं
हल्का हवा का झौंका ही काफी है
उसे तूफानों से टकराना ठीक नहीं
... कविता रावत