जै रघुनंदन तुमको वंदन तुम अविनाशी घट घट वासी
जै रघुनंदन तुमको वंदन तुम अविनाशी घट घट वासी
सुंदर कमल सम मुख कर लोचन
लाल कमल सम सुंदर चरण तन
नव पल्लवित आभा नील कमल सम
तड़ित सम पीत वसन सुशोभित तन
सियापति राम को नमन वंदन
जै रघुनंदन तुमको वंदन तुम अविनाशी घट घट वासी
सूर्य सम तेज प्रकाशक दैत्य दानव वंश नाशक
रघुकुल आनंद दाता कौशल्या सुत दशरथ राजा
श्रवण कुंडल शीश मुकुट सुशोभित भाल तिलक
पुष्ट भुजा उदार विभूषित धनु सायक खर दूषण विजित
शंकर शेष मुनि मन रमन
जै रघुनंदन तुमको वंदन तुम अविनाशी घट घट वासी
जै रघुनंदन तुमको वंदन तुम अविनाशी घट घट वासी
प्रभु काम क्रोध लोभ हरो मम हृदय कमल वास करो
दयालु कृपालु भव भय हर्ता तुम सुखदायक सर्वव्यापी
जै रघुनंदन तुमको वंदन तुम अविनाशी घट घट वासी
जै रघुनंदन तुमको वंदन तुम अविनाशी घट घट वासी
नव पल्लवित आभा नील कमल सम
तड़ित सम पीत वसन सुशोभित तन
सियापति राम को नमन वंदन
जै रघुनंदन तुमको वंदन तुम अविनाशी घट घट वासी
सूर्य सम तेज प्रकाशक दैत्य दानव वंश नाशक
रघुकुल आनंद दाता कौशल्या सुत दशरथ राजा
श्रवण कुंडल शीश मुकुट सुशोभित भाल तिलक
पुष्ट भुजा उदार विभूषित धनु सायक खर दूषण विजित
शंकर शेष मुनि मन रमन
जै रघुनंदन तुमको वंदन तुम अविनाशी घट घट वासी
जै रघुनंदन तुमको वंदन तुम अविनाशी घट घट वासी
प्रभु काम क्रोध लोभ हरो मम हृदय कमल वास करो
दयालु कृपालु भव भय हर्ता तुम सुखदायक सर्वव्यापी
जै रघुनंदन तुमको वंदन तुम अविनाशी घट घट वासी
जै रघुनंदन तुमको वंदन तुम अविनाशी घट घट वासी
... कविता रावत
मेरे मन में कई वर्ष से भगवान श्रीराम जी की एक ऐसी आरती लिखने का मन में विचार था, जिसे प्रभु श्रीराम के सभी भक्तगण सरलता से उसका अंतर्मन से भजन वंदन कर सके, जो आज प्रभु कृपा से पूर्ण हुई। हमें पूर्ण आशा और विश्वास है कि हम सबके प्रभु श्रीराम जी की यह आरती सबको पसंद आएगी और इसका भजन कीर्तन वंदन कर भगवान श्री रामचंद्र जी के सभी भक्तगण उनकी कृपा के पात्र बनेंगे। जै श्री राम।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें