चतुर्थी से सप्तमी तक, पूजा की छाई।
लौकी-भात से नहाय-खाय, धरती पर सोए,
सात्विक मन, संकल्प ले, व्रती तप में खोए।
खरना के दिन उपवास, रसोई में गूंजे,
गुड़-साठी की खीर बनी, पूरियाँ भी पूजे।
मिट्टी के चूल्हे पर, प्रेम से पकाए,
छठी मैया को अर्पण कर, प्रसाद सब पाए।
संध्या अर्घ्य का दिन आया, घाटों पर भीड़,
गन्ने के छत्र तले, कोसी में श्रद्धा गाढ़।
ठेकुआ, फल, हाथी-माटी, पूजा का साज,
सूरज को अर्घ्य देकर, गूंजे जय का राज।
सप्तमी की भोर सुहानी, जल में खड़े व्रती,
“ॐ सूर्याय नमः” जपे, मन में भक्ति सच्ची।
उगते भास्कर को नमन, जीवन का उजास,
संध्या-उषा दोनों पूजे, यही पर्व का खास।
राम-सीता, कर्ण, द्रौपदी, सबने की आराधना,
विश्वामित्र ने जपा मंत्र, जागी चेतना।
छठी देवी, प्रकृति माता, शक्ति का संधान,
ज्ञान, सद्गुण, जीवन-प्रकाश, यही है पहचान।
बिहार, यूपी, नेपाल में, लोकगीतों की लहर,
सूर्योपासना का महापर्व, छठ पूजा अमर।
परिवार, संतान, फसल की, मंगल कामना,
छठी मैया की कृपा से, जीवन में रचना।
... कविता रावत

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