दीवाली आई रे, रात सुहानी रे
दीपों से सजी है धरती रानी रे।
अमावस की रात में जोत जली,
हर घर में आई उजियारी रे।
दीवाली आई रे, रात सुहानी रे...
साफ-सफाई दिन भर चली रे
रंगोली से आँगन खिली रे।
खील-बताशे, मिठाई आई,
पकवानों की खुशबू बसी रे।
दीवाली आई रे, रात सुहानी रे
दीपों से सजी है धरती रानी रे।
नए कपड़े सबने पहने रे
दीपों की माला घर-घर बहने रे।
लक्ष्मी पूजन शुभ मूरत में,
धन-धान्य बरसे, मंगल कहने रे।
दीवाली आई रे, रात सुहानी रे
दीपों से सजी है धरती रानी रे।
गाँव की गलियाँ, मंदिर प्यारे
कुआँ, पनघट, तुलसी द्वारे।
गोवर्धन पूजा, पशु की खुरली,
दीए से जोतें सब उजियारे।
दीवाली आई रे, रात सुहानी रे
दीपों से सजी है धरती रानी रे।
लक्ष्मी कहें, मैं वहाँ बसूँगी
जहाँ कर्मठता की जोत जलेगी। ,
धर्म-शील, क्षमा और श्रद्धा,
क्रोध न हो, न लोभ चलेगी।
दीवाली आई रे, रात सुहानी रे
दीपों से सजी है धरती रानी रे।
नारी हो जो सत्य की धारा
पति-भक्ति में हो जिसकी वंदना प्यारा।
शील-सद्गुण से घर हो उजला,
ऐसे घर में लक्ष्मी प्यारा।
दीवाली आई रे, रात सुहानी रे
दीपों से सजी है धरती रानी रे।
शहर में बही-खाते पूजें
विष्णु-सहस्रनाम सब गूंजें।
गाँव में गीत, शहर में गाथा,
दीपों से जगमग हर राहा।
दीवाली आई रे, रात सुहानी रे
दीपों से सजी है धरती रानी रे
... कविता रावत
दीप पर्व की सबको हार्दिक शुभकामनाएं।
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