आई नरक चतुर्दशी की रात,
दीपों की सजी है देखो कतार।
श्रीकृष्ण ने नरकासुर को मारा,
खुशियों की आई फिर से बहार॥
कार्तिक की चतुर्दशी प्यारी,
छोटी दिवाली आई न्यारी।
रूप चतुर्दशी इसका नाम,
दूर हुए सब दुःख तमाम।
पितृगण का आगमन आज,
यम को दीप अर्पण का राज॥
आई नरक चतुर्दशी की रात,
दीपों की सजी है देखो कतार।
श्रीकृष्ण ने नरकासुर को मारा,
खुशियों की आई फिर से बहार॥
तेल का चौमुखा दीप जलाओ,
सोलह छोटे दीए सजाओ।
पितरों को मिले शांति अपार,
घर-आँगन में प्रेम की बहार।
रोली, खीर, गुड़, अबीर, गुलाल,
ईष्ट-पूजन से हो खुशहाल॥
आई नरक चतुर्दशी की रात,
दीपों की सजी है देखो कतार।
श्रीकृष्ण ने नरकासुर को मारा,
खुशियों की आई फिर से बहार॥
कार्यस्थल की भी पूजा करें,
दीयों से हर कोना भरें।
गणेश-लक्ष्मी की आरती हो,
श्रद्धा-नेह से दीपवृत्ति हो।
हर ओर फैले शुभ प्रकाश,
मिटे अज्ञान, दूर हो उदास॥
आई नरक चतुर्दशी की रात,
दीपों की सजी है देखो कतार।
श्रीकृष्ण ने नरकासुर को मारा,
खुशियों की आई फिर से बहार॥
... कविता रावत
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