घृणा द्वेष ने ओढ़ रखा है अपनेपन का खोल यहां।।
बिकते देखी है नैतिकता दो कौड़ी के मोल यहां।
बिकते देखी है नैतिकता दो कौड़ी के मोल यहां।
बनी विद्वता धन की चेरी गधे खा रहे पंजीरी यहां।।
नियम, धर्म, सत का हुआ अवसान हो जैसे।
मनुजता की कुटिलता बड़ी पहचान हो जैसे।।
छल कपट लोभ स्वार्थ का जाल फैला है ऐसे।
बेईमानों की भीड़ में ईमानदार लगे बेईमान जैसे।।
मनुजता की कुटिलता बड़ी पहचान हो जैसे।।
छल कपट लोभ स्वार्थ का जाल फैला है ऐसे।
बेईमानों की भीड़ में ईमानदार लगे बेईमान जैसे।।
मातृ भूमि के प्रति अपना कर्तव्य निभाना होगा।
धूमिल होता मुकुट भारती का चमकाना होगा।।
देश के जयचंदों को चुन चुन मार भगाना होगा।
युवा शक्ति को आगे बढ़कर देश बचाना होगा।।
धूमिल होता मुकुट भारती का चमकाना होगा।।
देश के जयचंदों को चुन चुन मार भगाना होगा।
युवा शक्ति को आगे बढ़कर देश बचाना होगा।।
... राजेन्द्र गट्टानी
5 टिप्पणियां:
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 07 जनवरी 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
बहुत गहरे भाव ... जयचन्द्र कि पहचान तो ज़रुरी है ...
जयचंद है कौन?
सुन्दर गहरे भाव. नव वर्ष की मंगल कामनाएं.
बहुत उम्दा रचना, जय चंद के क्या कहने।
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