बनी विद्वता धन की चेरी गधे खा रहे पंजीरी यहां : राजेन्द्र गट्टानी - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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बुधवार, 27 नवंबर 2024

बनी विद्वता धन की चेरी गधे खा रहे पंजीरी यहां : राजेन्द्र गट्टानी

कटुता कपट सहेजे मन में मुख पर मीठे बोल यहां।
घृणा द्वेष ने ओढ़ रखा है अपनेपन का खोल यहां।।
बिकते देखी है नैतिकता दो कौड़ी के मोल यहां।
बनी विद्वता धन की चेरी गधे खा रहे पंजीरी यहां।।
नियम, धर्म, सत का  हुआ अवसान हो जैसे।
मनुजता की कुटिलता बड़ी पहचान हो जैसे।।
छल कपट लोभ स्वार्थ का जाल फैला है ऐसे।
बेईमानों की भीड़ में ईमानदार लगे बेईमान जैसे।।
मातृ भूमि के प्रति अपना कर्तव्य निभाना होगा।
धूमिल होता मुकुट भारती का चमकाना होगा।।
देश के जयचंदों को चुन चुन मार भगाना  होगा।
युवा शक्ति को आगे बढ़कर देश बचाना होगा।।
... राजेन्द्र गट्टानी