गुरु नानक, तू प्रकाश की राह दिखाने वाला,
हिन्दू-मुस्लिम एक कहे, प्रेम का दीप जलाने वाला।
तेरे लंगर में बैठ सभी, जात-पात को भूलें,
तेरे सबद में शांति मिले, द्वेष-द्वंद्व सब छूटें।
तलवंडी की धरती पे जब, जन्मे नानक प्यारे,
धर्म के नाम पे जो फैले, अंधकार को टारे।
सतिगुरु बन प्रगट हुए वो, चानण जग में लाया,
सत्य, सेवा, प्रेम का दीपक, हर मन में जगमगाया।
गुरु नानक, तू प्रकाश की राह दिखाने वाला,
हिन्दू-मुस्लिम एक कहे, प्रेम का दीप जलाने वाला।
तेरे लंगर में बैठ सभी, जात-पात को भूलें,
तेरे सबद में शांति मिले, द्वेष-द्वंद्व सब छूटें।
बाल्यकाल से ही दिखे थे, ज्ञान के गहरे चिन्ह,
पाठशाला में बोले नानक, "ईश्वर ही है सच्चा विधि।"
नवाब-काजी को भी समझाया, मन की सच्ची बात,
बंदगी वो ही सच्ची है, जिसमें हो प्रेम की बात।
गुरु नानक, तू प्रकाश की राह दिखाने वाला,
हिन्दू-मुस्लिम एक कहे, प्रेम का दीप जलाने वाला।
तेरे लंगर में बैठ सभी, जात-पात को भूलें,
तेरे सबद में शांति मिले, द्वेष-द्वंद्व सब छूटें।
पच्चीस वर्षों तक चले वो, शांति का संदेश लिए,
हरिद्वार से मक्का तक, मानवता का दीप लिए।
मरदाना को साथ रखा, भाई कहकर अपनाया,
भेद मिटाकर लंगर चलाया, सबको प्रेम सिखाया।
गुरु नानक, तू प्रकाश की राह दिखाने वाला,
हिन्दू-मुस्लिम एक कहे, प्रेम का दीप जलाने वाला।
तेरे लंगर में बैठ सभी, जात-पात को भूलें,
तेरे सबद में शांति मिले, द्वेष-द्वंद्व सब छूटें।
करतारपुर में अंत समय तक, सेवा का दीप जलाया,
प्रवचन, कीर्तन, सबद से, जीवन को धन्य बनाया।
प्रकाश पर्व पर आज भी, शोभा यात्रा निकले,
गुरु की वाणी गूंजे जब, हर मन श्रद्धा से झुक ले।
गुरु नानक, तू प्रकाश की राह दिखाने वाला,
हिन्दू-मुस्लिम एक कहे, प्रेम का दीप जलाने वाला।
तेरे लंगर में बैठ सभी, जात-पात को भूलें,
हिन्दू-मुस्लिम एक कहे, प्रेम का दीप जलाने वाला।
तेरे लंगर में बैठ सभी, जात-पात को भूलें,
तेरे सबद में शांति मिले, द्वेष-द्वंद्व सब छूटें।
तलवंडी की धरती पे जब, जन्मे नानक प्यारे,
धर्म के नाम पे जो फैले, अंधकार को टारे।
सतिगुरु बन प्रगट हुए वो, चानण जग में लाया,
सत्य, सेवा, प्रेम का दीपक, हर मन में जगमगाया।
गुरु नानक, तू प्रकाश की राह दिखाने वाला,
हिन्दू-मुस्लिम एक कहे, प्रेम का दीप जलाने वाला।
तेरे लंगर में बैठ सभी, जात-पात को भूलें,
तेरे सबद में शांति मिले, द्वेष-द्वंद्व सब छूटें।
बाल्यकाल से ही दिखे थे, ज्ञान के गहरे चिन्ह,
पाठशाला में बोले नानक, "ईश्वर ही है सच्चा विधि।"
नवाब-काजी को भी समझाया, मन की सच्ची बात,
बंदगी वो ही सच्ची है, जिसमें हो प्रेम की बात।
गुरु नानक, तू प्रकाश की राह दिखाने वाला,
हिन्दू-मुस्लिम एक कहे, प्रेम का दीप जलाने वाला।
तेरे लंगर में बैठ सभी, जात-पात को भूलें,
तेरे सबद में शांति मिले, द्वेष-द्वंद्व सब छूटें।
पच्चीस वर्षों तक चले वो, शांति का संदेश लिए,
हरिद्वार से मक्का तक, मानवता का दीप लिए।
मरदाना को साथ रखा, भाई कहकर अपनाया,
भेद मिटाकर लंगर चलाया, सबको प्रेम सिखाया।
गुरु नानक, तू प्रकाश की राह दिखाने वाला,
हिन्दू-मुस्लिम एक कहे, प्रेम का दीप जलाने वाला।
तेरे लंगर में बैठ सभी, जात-पात को भूलें,
तेरे सबद में शांति मिले, द्वेष-द्वंद्व सब छूटें।
करतारपुर में अंत समय तक, सेवा का दीप जलाया,
प्रवचन, कीर्तन, सबद से, जीवन को धन्य बनाया।
प्रकाश पर्व पर आज भी, शोभा यात्रा निकले,
गुरु की वाणी गूंजे जब, हर मन श्रद्धा से झुक ले।
गुरु नानक, तू प्रकाश की राह दिखाने वाला,
हिन्दू-मुस्लिम एक कहे, प्रेम का दीप जलाने वाला।
तेरे लंगर में बैठ सभी, जात-पात को भूलें,
तेरे सबद में शांति मिले, द्वेष-द्वंद्व सब छूटें।
... कविता रावत


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