गढ़वाल-कुमाऊं दो दीप सरीखे,
हिमगिरि की गोद में बसे हैं।
उत्तर भारत की पुण्य धरा पर,
देवभूमि के स्वर रस घुले हैं।
नंदा देवी शिखर की ऊंचाई,
गंगा-यमुना की पावन छाया।
जहाँ हर कण में देवत्व बसता,
कल-कल बहती अलकनंदा-माया
जिम कार्बेट की वन गाथा,
फूलों की घाटी रंगों की छाया।
राजाजी, गंगोत्री, गोविंद विहार,
प्रकृति ने यहाँ स्वर्ग रचाया।
नैनी, भीम, सात, डोडी ताल,
मसूरी पर्वतों की रानी।
बद्री-केदार, गंगोत्री-यमुनोत्री,
चार धाम की पावन कहानी।
हरिद्वार, ऋषिकेश, हेमकुंड,
धर्म की ज्योति जलती है।
पंच केदार, पंच बद्री धाम,
श्रद्धा की पताका चलती है।
पंतनगर, रुड़की, देहरादून,
ज्ञान-विज्ञान के दीप जलाए।
ऋषिकेश में साहस की लहरें,
कौसानी में शांति मुस्काए।
गढ़वाली, कुमायूँनी, जौनसारी,
मीठी बोली, लोक राग प्यारे।
वादियों में गूंजे गीत-संगीत,
संस्कृति के सुर सदा हमारे।
धान, गेहूं, गन्ना, फल-फूल,
औषधियों का अमूल्य भंडार।
पर्यटन है जीवन की धारा,
देवभूमि का अनुपम उपहार।
उत्तराखंड, तू पुण्य कहानी,
सेवा-संस्कृति तेरी निशानी।
तेरे कण-कण में देवता बसते,
तेरी वंदना है जन कल्याणी।
हिमगिरि की गोद में बसे हैं।
उत्तर भारत की पुण्य धरा पर,
देवभूमि के स्वर रस घुले हैं।
नंदा देवी शिखर की ऊंचाई,
गंगा-यमुना की पावन छाया।
जहाँ हर कण में देवत्व बसता,
कल-कल बहती अलकनंदा-माया
जिम कार्बेट की वन गाथा,
फूलों की घाटी रंगों की छाया।
राजाजी, गंगोत्री, गोविंद विहार,
प्रकृति ने यहाँ स्वर्ग रचाया।
नैनी, भीम, सात, डोडी ताल,
मसूरी पर्वतों की रानी।
बद्री-केदार, गंगोत्री-यमुनोत्री,
चार धाम की पावन कहानी।
हरिद्वार, ऋषिकेश, हेमकुंड,
धर्म की ज्योति जलती है।
पंच केदार, पंच बद्री धाम,
श्रद्धा की पताका चलती है।
पंतनगर, रुड़की, देहरादून,
ज्ञान-विज्ञान के दीप जलाए।
ऋषिकेश में साहस की लहरें,
कौसानी में शांति मुस्काए।
गढ़वाली, कुमायूँनी, जौनसारी,
मीठी बोली, लोक राग प्यारे।
वादियों में गूंजे गीत-संगीत,
संस्कृति के सुर सदा हमारे।
धान, गेहूं, गन्ना, फल-फूल,
औषधियों का अमूल्य भंडार।
पर्यटन है जीवन की धारा,
देवभूमि का अनुपम उपहार।
उत्तराखंड, तू पुण्य कहानी,
सेवा-संस्कृति तेरी निशानी।
तेरे कण-कण में देवता बसते,
तेरी वंदना है जन कल्याणी।
... कविता रावत


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