जीवन सदभाव और भक्ति का मार्ग | गुरु नानक प्रकाश पर्व विशेष | - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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सोमवार, 27 नवंबर 2023

जीवन सदभाव और भक्ति का मार्ग | गुरु नानक प्रकाश पर्व विशेष |


मुगल साम्राज्य की स्थापना के बाद जब तलवार के जोर पर धर्म परिवर्तन का सिलसिला चल पड़ा तो भय और अज्ञान के कुहासे को समूचे हिन्दुस्तान से मिटाने के लिए सन् 1469 को लाहौर के तलवंडी गांव में सिक्ख धर्म के प्रवर्तक गुरु नानक ने जन्म लेकर सत्य की राह दिखायी। वे एक ऐसे धर्मगुरु हुए जिन्होंने तात्कालिक राजनीतिक आतंकवाद, अत्याचार, हिंसा और दमन को मुखर रूप से अभिव्यक्त किया, जिसके कारण उन्हें जगतारक सद्गुरु के रूप में विश्व ने स्वीकार किया। "सतिगुरु, नानक, प्रगटिया मिटी धुंधु जगि चानण होया।"
         कहते हैं पूत के पांव पालने में ही दिखाई देने लगते हैं। बाल्यकाल में ही गुरु नानक में महापुरूष होने के लक्षण दिखाई देने लगे। कहते हैं कि साल भर की उम्र में उनके सारे दांत निकल आयेे। पांच वर्ष के हुए तो खेलना-कूदना छोड़कर वे अपने साथियों को ईश्वर संबंधी बातें सुनाने बैठ जाया करते थे। 7 वर्ष की अवस्था में जब उन्हें पाठशाला भेजा गया तो पंडित (गुरुजी) ने उन्हें पहाड़ा रटने को दिया तो वे बोले- "संसार में जो व्यक्ति इस हिसाब-किताब के प्रपंच में पड़ा, वह कभी सुखी नहीं रहा। मैं तो ईश्वर-भजन करने आया हूँ। मुझे भगवान का पाठ पढ़ाओ। वही सच्ची शिक्षा है।" इतना ही नहीं जब पंडित ब्रजनाथ के पास संस्कृत पढ़ने गये तो उन्होंने उन्हें पट्टी पर नमः सिद्धम् का मंत्र लिखकर उसे कंठस्थ करने को कहा तो वे  तब तक जिद्द पर अड़े रहे जब तक उन्हें इसका अर्थ नहीं बता दिया गया।  
            "हिन्दू और मुसलमान दोनों एक ही पिता के पुत्र हैं। खुदा, प्रभु या ईश्वर सभी एक ही हैं; केवल नाम का भेद है।" यह बात जब काजी और कुछ धर्मान्ध मुसलमानों ने नवाब को बतायी तो उन्होंने नानक से क्रोध में कहा- "तो तुम्हारा और हमारा ईश्वर एक ही है। अगर तुम उसी को मानते हो तो मस्जिद चलो और हमारे साथ नमाज पढ़ो।“ नानक और नवाब मस्जिद में नमाज पढ़ने लगे। नमाज के समय काजी मोटी आवाज में बंदगी करने लगा और सब नमाजी सिर झुकाकर नमाज पढ़ने लगे, किन्तु नानक का सिर नहीं झुका। नमाज पूरी हुई तो नमाज न पढ़ता देख नवाब का पारा चढ़ गया वे लाल-पीले होकर उन पर बरसे- "अरे नानक, तू पक्का ढोंगी है, झूठा और पाखंडी है। हम सबने सिर झुकाकर खुदा की बंदगी की किन्तु तू ठूंठ की तरह सीधा खड़ा रहा। तू हिन्दू और मुसलमान सभी को उलटे रास्ते पर ले जा रहा है, तुझे सजा मिलनी चाहिए" पास में काजी खड़े थे, वे भी क्रोध में हां में हां मिलाने लगे। अंत में नानक गंभीर होकर बोले, "नवाब साहब, मैं उसी के साथ बंदगी करता हूं जो मन से खुदा की बंदगी करता है। आपका सिर जमीन को छू रहा था किन्तु मन कंधार में घोड़े खरीदने गया था। काजी साहब सिर्फ नमाज की रस्म अदा कर रहे थे। वे सोच रहे थे- आज जो घोड़ी ब्याई है, उसकी हालत कैसी होगी? कहीं बछेरा कूद कर पास वाले कुएं में न जा गिरे। इसी कारण मैंने आप लोगों के साथ नमाज नहीं पढ़ी।" काजी और नवाब को अपने बारे में सच्ची बात सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने तुरन्त उन्हें अपना गुरु माना और उनके आगे आशीर्वाद के लिए अपना सिर लिया।
गुरु नानक देव धार्मिकता एकता के पुजारी थे। उन्होंने अपने नीति के दोहों में एकत्व, भ्रातृत्व, सेवा, सादगी, आत्मसंयम, आत्मालोचन एवं अन्तर्मुखता की प्रबल प्रेरणा दी है जो आज भी प्रासंगिक है।  उनके जीवन के कई प्रेरक प्रसंग हैं। कहते हैं कि जब वे उपदेश देते थे तो हिन्दू और मुसलमान दोनों बड़े मनोवेग से सुनने बैठ जाया करते थे, जो कई धर्माधिकारियों को फूटी आंख नहीं सुहाता था। ऐसे ही एक दिन वे उपदेश दे रहे थे कि -
           ईर्ष्या-द्वेष, वैर-विरोध, लोभ-मोह के जाल में फँसे लोगों को शांति का संदेश देने के लिए गुरु नानक ने 25 वर्ष तक विश्व भ्रमण किया। उन्होंने अपनी यात्रा का प्रारम्भ ऐमनाबाद, हरिद्वार, दिल्ली, काशी, गया और तथा श्री जगन्नाथपुरी से शुरू किया। तत्पश्चात् वे अर्बुदागिरि, रामेश्वर, सिंहलद्वीप होते हुए सरमौर, टिहरी गढ़वाल, हेमकूट, गोरखपुर, सिक्किम, भूटान, तिब्बत पहुंचे। वहां से वे ब्लुचिस्तान होते हुए मक्का गए। इस यात्रा में उन्होंने रूस, बगदाद, ईरान, कंधार, काबुल आदि की यात्रा की। 25 वर्ष की लम्बी यात्रा के बाद वे सन् 1522 से अपनी अंतिम परमधाम की यात्रा 22 सितम्बर, सन् 1539 तक करतारपुर रहे। यहाँ उन्होंने लोगों को उपदेशामृत के साथ ही अन्न भी वितरित किया और इसके साथ ही जातिगत भेदभाव को मिटाने के लिए लंगर की परम्परा आरम्भ की, जहाँ सभी जाति वर्ग के लोग एक पंक्ति में बैठकर आपसी भेदभाव भुलाकर सामूहिक भोज किया करते थे। गुरु नानक देव ने स्वयं अपनी यात्राओं के दौरान हर उस व्यक्ति का आतिथ्य स्वीकार किया जिसने उनका प्रेमपूर्वक स्वागत किया। निम्न जाति के समझे जाने वाले मरदाना को हमेशा अपने साथ रखा, जिसे वे भाई कहकर संबोधित किया करते थे। 
           आज गुरु नानक देव की पुण्य स्मृति को प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता है। गुरुद्वारों में गुरु पर्व के आयोजन के साथ ही दीवान, सबद, कीर्तन, प्रवचन आदि का आयोजन किया जाता है। नगर के प्रमुख मार्गों में शोभा यात्रा निकाली जाती है। इसके साथ ही साथ गुरुद्वारों और विभिन्न स्थानों पर गुरुनानक देव द्वारा चलायी गई सांप्रदायिक सद्भाव की परम्परा लंगर भोज का आयोजन किया जाता है जहां सभी धर्मावलंबियों को जात-पात और भेद-भाव भुलाकर मिल-बैठ भोजन करते देख कोई भी गुरु नानक देव के प्रति नतमस्तक हुए बिना नहीं रह सकता।

गुरुपरब दियां सभ नूं लख लख बधाईयाँ.... .. कविता रावत


30 टिप्‍पणियां:

vijay ने कहा…

सतिगुरु, नानक, प्रगटिया मिटी धुंधु जगि चानण होया...
जगत में फैले धुंध को दूर करने वाले गुरु नानक देव सही मायने में ईश्वर के अवतार थे ...
जय जय सद्गुरु नानक की!

Unknown ने कहा…

गुरु नानक जयंती पर सार्थक आलेख .......
गुरुपरब दियां सभ नूं लख लख बधाईयाँ.....
जय गुरुदेव!

Unknown ने कहा…

आपने गुरुनानक जी के विषय मे बहुत अच्छा लिखा है ..
गुरुनानक जयंती की सभी को हार्दिक शुभकामना!

Meenakshi ने कहा…

वाहे गुरु का खालसा, वाहे गुरु की फतेह

Surya ने कहा…

समाज में व्याप्त सामाजिक बुराइयों, रूढ़ियों तथा कुरीतियों को दूर कर सच्चाई की राह पर लाने वाले गुरु नानक देव आज भी प्रासंगिक हैं.... उनके जीवन आदर्श और उपदेश किसी भी देश के स्वस्थ विकास के लिए आज भी महत्वपूर्ण हैं ...
गुरु पर्व पर सार्थक चिंतन ................
आपको भी गुरु नानक जयन्ती की शुभकामनाएं!!

दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 6-11-2014 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1789 में दिया गया है
आभार

Satish Saxena ने कहा…

बहुत खूब , मंगलकामनाएं आपको

kuldeep thakur ने कहा…

सिखों के प्रारंभिक गुरु जी अहिंसा का संदेश देते रहे पर जब अधर्मियों का विवेक परिवर्तन न हुआ तो उन्होंने तलवार का रासता अपनाया. कलयुग के वेदव्यास भाई गुरदास ने सत्य लिखा है सतिगुरु, नानक, प्रगटिया मिटी धुंधु जगि चानण होया।

RAJ ने कहा…

गुरु नानक जैसे दिव्य महान आत्मा की आज के समय में समाज को बहुत जरुरत है ...
गुरु नानक जयंती की लख लख बधाईयाँ....

Rajendra kumar ने कहा…

आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (07.11.2014) को "पैगाम सद्भाव का" (चर्चा अंक-1790)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।

Meenakshi ने कहा…

कविता जी ,चंगा लगया तुआनु...
गुरुपरब दियां सभ नूं लख लख बधाईयाँ.

Unknown ने कहा…

गुरुनानक जी के बारे में अच्छी जानकारी पोस्ट करने के लिया धन्यावद कविता जी ........
आपको भी गुरु पर्व की शुभकामना!!!

Unknown ने कहा…

Bahut hi rochak va sunder jaankari.... Itni acchi jaankari dene ke liye aapka aabhaar..!!

Manoj Kumar ने कहा…

Aaj ke samay me humaare desh ko Guru Nanak jee jaise Adarsho jee jaroorat hai !!

Arogya Bharti ने कहा…

"सतिगुरु, नानक, प्रगटिया मिटी धुंधु जगि चानण होया।"
गुरु नानक जयंती पर बहुत सुन्दर आलेख ,,,

Unknown ने कहा…

गुरुपरब दियां सभ नूं लख लख बधाईयाँ,,,,,

मन के - मनके ने कहा…

आपके सार्थक आलेख ने मन में शबद-वाणी घोल दी.
सादर धन्यवाद.

Unknown ने कहा…

गुरु नानक देव पर सार्थक लेखन!

Himkar Shyam ने कहा…

सुंदर और सार्थक...मंगलकामनाएँ....

देवदत्त प्रसून ने कहा…

अच्छी प्रस्तुति !

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सारगर्भित आलेख...

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

सार्थक आलेख।

Asha Joglekar ने कहा…

सुंदर लेख। आपका गुरुपर्व सुखमय रहा होगा।

virendra sharma ने कहा…

सुन्दर आलेख राष्ट्रीय सांस्कृतिक धारा के संरक्षण के लिए तमाम गुरुओं का योगदान उल्लेख्य रहा है .

Unknown ने कहा…

सुंदर और सार्थक...मंगलकामनाएँ...............

Unknown ने कहा…

सब पर गुरु की कृपा बनी रहे

Saras ने कहा…

सारगर्भित और रोचक लेख ..................बहुत कुछ जाना गुरु नानक जी के बारे में .........आभार !

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत सार गर्भित और नानक देव के जीवन से जुड़े पहलुओं को बारीकी से रक्खा है ... सच कहा है पूत के पाँव पालने में ही नज़र आ जाते हैं ... और इस बात को गुरु नानक देव ने साबित भी किया .... गुरु पर्व औ प्रकाश पर्व की बहुत बहुत बधाई सब को ...

वाणी गीत ने कहा…

गुरु नानक सच्चे गुरु रहे।
उनके बारे में पढ़ना अच्छा लगा।
बहुत शुभकामनाएं !

अभिषेक मिश्र ने कहा…

इस महानात्मा पर प्रेरक जानकारी दी है आपने...