हर आँसू बने अब मशाल - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, geet, bhajan, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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सोमवार, 10 नवंबर 2025

हर आँसू बने अब मशाल



मगर, रुकना मुमकिन नहीं,
ये हक़ की जंग आसान नहीं।
हर आँसू बने अब मशाल,
हर पीड़ा बने एक सवाल।
उठो! कि अब भी वक्त है,
बदलाव की यह दस्तक है!

जब आगे बढ़ने का हक़ छिने,
तब धड़कनें भी रो उठती हैं।
सपनों का बोझ कागज़ों में,
ज़मीं पर गहरे घाव करती है।

न्याय-चौखट आज सूनी है,
सत्ता की भाषा पैसे की है।
सवाल उठाना बेमानी है,
सर उठाने की मनाही है। ....मगर, रुकना .....

सच लिखती थी जो कलम,
वो डर के साये में थमी है।
जो गूँजती थीं आवाज़ें,
वो खामोशी में डूबी हैं।

अधिकारों की लौ जलानी है,
इंसाफ़ की राह बनानी है।

मगर, रुकना मुमकिन नहीं,
ये हक़ की जंग आसान नहीं।
हर आँसू बने अब मशाल,
हर पीड़ा बने एक सवाल।
उठो! कि अब भी वक्त है,
बदलाव की यह दस्तक है!

.... कविता रावत 


4 टिप्‍पणियां:

Ravindra Singh Yadav ने कहा…

आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 13 नवंबर 2025 को लिंक की जाएगी है....

http://halchalwith5links.blogspot.in
पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

!

हरीश कुमार ने कहा…

बहुत सुंदर

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुंदर

Anita ने कहा…

प्रेरित करती सशक्त रचना