जब किसी भी महिला को कोई सम्मान मिलता है, तो वह उसके लिए गर्व करने का विषय होता है, उसे खुशी मिलती है, आत्मसंतुष्टि का अहसास होता है और वह निरन्तर आगे बढ़ने के लिए प्रयास करती चली जाती है, लेकिन यह मिलने वाला सम्मान तब फीका पड़ जाता है, जब "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता" कहे जानी वाली नारी शक्ति के लिए सरेआम नारी संबोधित गालियां सुनने को मिलती है। गालियों की बौछारें सुनने को मिलती है। क्या यह बात गंभीर चिंतन का विषय नहीं कि आधुनिक कहलाने वाले सभ्य समाज के बावजूद इसमें आज भी बहुत बड़ा मूलभूत परिवर्तन क्यों नहीं आ पाया है? क्या इन नारी संबोधित गालियों के विरुद्ध एक अभियान चलाने की आज सख्त आवश्यकता है? क्या इस पर सबको गंभीर विचार करने की जरूरत नहीं है?
आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस और सावित्री बाई फुले पुण्य तिथि के अवसर पर एक सामाजिक बुराई की ओर ध्यान आकृष्ट करना चाहूंगी कि जहाँ एक ओर हमारा समाज औरत को सम्मान देने की बात करता है, वहीँ दूसरी ओर क्यों उसके लिए माँ-बहिन जैसी गालियों को बौछार सरेआम होते देख ऐसा मौन धारण किये रहता है,जैसे कुछ हुआ ही न हो? कितनी बिडम्बना है यह! आज अधिकांश लोगों ने गालियों को इतनी सहजता से अपने स्वभाव में ढाल लिया है कि उन्हें यह समझ नहीं आता कि वे खुद की माँ, बहिन को गाली दे रहे हैं या दूसरे की? भले ही स्त्री से जोड़कर गालियाँ देने कि प्रथा बहुत पहले से है लेकिन आज जब हम इतने शिक्षित और सभ्य हो चुके हैं तब आखिर क्यों इस आदत को छोड़ नहीं पा रहे हैं।
आज जगह-जगह बेशर्म की तरह उग रही गालियों की अमरबेल को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए नारी-पुरुष मानसिकता से ऊपर उठकर एकजुट होकर स्वच्छता अभियान चलाने की जरुरत है। सबको गम्भीरता से सोचने की जरुरत है कि इस तरह की नारी संबोधनकारी गालियां सभ्य कहलाने वाले समाज के नाम पर बदनुमा दाग हैं, अतः इसे अपने-अपने स्तर से जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए एकजुट होकर एक स्वच्छता अभियान की तरह चलाया जाना चाहिए जिससे ऐसे लोगों को सबक मिले जो अपनी माँ-बहन और नारी का सम्मान करना भूल चुकें हों।
....कविता रावत