भले ही हम "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता" वाली बात सुनकर खुशफहमी में जीते आ रहे हैं, लेकिन वास्तविकता इसके उलट नज़र आता है। जहाँ एक ओर नारी के सम्मान की बात की जाती है, वही दूसरी ओर इसकी वास्तविकता की तस्वीर जब आए-दिन समाचार पत्रों और टीवी आदि के जरिये सबके सामने देखने-सुनने को मिलती है, तब यह बात अच्छी नहीं दिल में चुभती है। आधुनिक कहलाने वाले समाज के बावजूद आज भी नारी के प्रति कोई बहुत बड़ा मूलभूत परिवर्तन नहीं आ पाना गंभीर चिंतन का विषय है, यह परिवर्तन कैसे होगा, इस पर सबको विचार करने की सख्त आवश्यकता है।
इसी तारतम्य में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर एक सामाजिक बुराई की ओर ध्यान आकृष्ट करना चाहूंगी कि जहाँ एक ओर हमारा समाज औरत को सम्मान देने की बात करता है, वहीँ दूसरी ओर उसके लिए माँ-बहिन जैसी गालियों को बौछार सरेआम होते देख ऐसा मौन धारण किये रहता है,जैसे कुछ हुआ ही न हो। कितनी बिडम्बना है यह! आज अधिकांश लोगों ने गालियों को इतनी सहजता से अपने स्वभाव में ढाल लिया है कि उन्हें यह समझ नहीं आता कि वे खुद की माँ, बहिन को गाली दे रहे हैं या दूसरे की? भले ही स्त्री से जोड़कर गालियाँ देने कि प्रथा बहुत पहले से है लेकिन आज जब हम इतने शिक्षित और सभ्य हो चुके हैं तब आखिर क्यों इस आदत को छोड़ नहीं पा रहे हैं।
आज जगह-जगह बेशर्म की तरह उग रही गालियों की अमरबेल को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए नारी-पुरुष मानसिकता से ऊपर उठकर एकजुट होकर स्वच्छता अभियान चलाने की जरुरत है। सबको गम्भीरता से सोचने की जरुरत है कि इस तरह की नारी संबोधनकारी गालियां सभ्य कहलाने वाले समाज के नाम पर बदनुमा दाग हैं, अतः इसे अपने-अपने स्तर से जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए एकजुट होकर एक स्वच्छता अभियान की तरह चलाया जाना चाहिए जिससे ऐसे लोगों को सबक मिले जो अपनी माँ-बहन और नारी का सम्मान करना भूल चुकें हों।
....कविता रावत