एक अभियान नारी आधारित गालियों के विरुद्ध भी चले - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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बुधवार, 8 मार्च 2017

एक अभियान नारी आधारित गालियों के विरुद्ध भी चले

भले ही हम "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता" वाली बात सुनकर खुशफहमी में जीते आ रहे हैं, लेकिन वास्तविकता इसके उलट नज़र आता  है।  जहाँ एक ओर नारी के सम्मान की बात की जाती है, वही दूसरी ओर इसकी वास्तविकता की तस्वीर जब आए-दिन समाचार पत्रों और टीवी आदि के जरिये सबके सामने देखने-सुनने को मिलती है, तब यह बात अच्छी नहीं दिल में चुभती है।  आधुनिक कहलाने वाले समाज के बावजूद  आज भी नारी के प्रति कोई बहुत बड़ा मूलभूत परिवर्तन नहीं आ पाना गंभीर चिंतन का विषय है, यह परिवर्तन कैसे होगा, इस पर सबको विचार करने की सख्त आवश्यकता  है।  
इसी तारतम्य में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर एक सामाजिक बुराई की ओर ध्यान आकृष्ट करना चाहूंगी कि जहाँ एक ओर हमारा समाज औरत को सम्मान देने की बात करता है, वहीँ दूसरी ओर  उसके लिए माँ-बहिन जैसी गालियों को बौछार सरेआम होते देख ऐसा मौन धारण किये रहता है,जैसे कुछ हुआ ही न हो।  कितनी बिडम्बना है यह!  आज अधिकांश लोगों ने गालियों को इतनी सहजता से अपने स्वभाव में ढाल लिया है कि उन्हें यह समझ नहीं आता कि वे खुद की माँ, बहिन को गाली दे रहे हैं या दूसरे की?  भले ही स्त्री से जोड़कर गालियाँ देने कि प्रथा बहुत पहले से है लेकिन आज जब हम इतने शिक्षित और सभ्य हो चुके हैं तब आखिर क्यों  इस आदत को छोड़ नहीं पा रहे हैं।
           आज जगह-जगह बेशर्म की तरह उग रही गालियों की अमरबेल को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए नारी-पुरुष मानसिकता से ऊपर उठकर एकजुट होकर स्वच्छता अभियान चलाने की जरुरत है। सबको गम्भीरता से सोचने की जरुरत है कि इस तरह की नारी संबोधनकारी गालियां सभ्य कहलाने वाले  समाज के नाम पर बदनुमा दाग हैं, अतः इसे अपने-अपने स्तर से जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए एकजुट होकर एक स्वच्छता अभियान की तरह चलाया जाना चाहिए जिससे ऐसे लोगों को सबक मिले जो अपनी माँ-बहन और नारी का सम्मान करना भूल चुकें हों।
....कविता रावत   


12 टिप्‍पणियां:

Swad Sehat ने कहा…

स्त्रियों के प्रति सम्मान प्रदर्शन के लिए उम्दा लेख।

Swad Sehat ने कहा…

स्त्रियों के प्रति सम्मान प्रदर्शन के लिए उम्दा लेख।

Unknown ने कहा…

अफसोसजनक स्थिति है..... माँ-बहिन की गाली देने वालों को यह एक पल को भी लगता कि आखिर वे गाली खुद को दे रहे हैं या सुनने वाले को ....
गंभीर संवेदनशील विषय है यह स्वस्छता जरुरी है स्वस्थ समाज के लिए

गिरधारी खंकरियाल ने कहा…

अभद्रता की तो पराकाष्ठा लाँघ चुके है लोग। आपसे बिलकुल सहमत हैं।

Digvijay Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार 09 मार्च 2017 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सही मुद्दा उठाया है ।

Jyoti Dehliwal ने कहा…

कविता, मैं आपकी इस बात से पूरी तरह से सहमत हूं कि नारी संबोधनकारी गालियां सभ्य कहलाने वाले समाज के नाम पर बदनुमा दाग हैं, अतः इसे अपने-अपने स्तर से जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए एकजुट होकर एक स्वच्छता अभियान की तरह चलाया जाना चाहिए।
ब्लॉग का नया लूक अच्छा लगा।

Sudha Devrani ने कहा…

नारी सशक्तिकरण पर कहाँ-कहाँ से सुधरेगा समाज ।
सही कहा आपने एक स्वच्छता अभियान की आवश्यकता है ........
बहुत ही उम्दा प्रस्तुति।

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा…

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ’आओगे तो मारे जाओगे - ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सार्थक आलेख...

RAKESH KUMAR SRIVASTAVA 'RAHI' ने कहा…

आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है http://rakeshkirachanay.blogspot.in/2017/03/10.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
मित्र-मंडली का संग्रह नीचे दिए गए लिंक पर संग्रहित हैं।
http://rakeshkirachanay.blogspot.in/p/blog-page_25.html

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सार्थक और बिलकुल ठीक लिखा है ... आज कल गालियों का प्रचलन इतना बढ़ गया है की जल्दी ही इनपे रोक न लगानी पड़े ... पुरुष के साथ आजकल नारियों में भी ये प्रचलन बढ़ रहा है इस पर भी ध्यान देने की जरूरत है ...