ढूंढा राक्षसी : होली कथा - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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रविवार, 24 मार्च 2024

ढूंढा राक्षसी : होली कथा


होली पर्व से सम्बन्धित अनेक कहानियों में से हिरण्यकशिपु के पुत्र प्रहलाद की कहानी बहुत प्रसिद्ध है। इसके अलावा ढूंढा नामक राक्षसी की कहानी का वर्णन भी मिलता है, जो बड़ी रोचक है।  कहते हैं कि सतयुग में रघु नामक राजा का सम्पूर्ण पृथ्वी पर अधिकार था। वह विद्वान, मधुरभाषी होने के साथ ही प्रजा की सेवा में तत्पर रहता था। एक दिन उसके राज्य के नागरिकों ने दरबार में आकर प्रार्थना कि नगर में ढू़ंढा नाम की राक्षसी ने अनेक गांवों और नगरों में उत्पात मचाया हुआ है। वह बड़ी मायाविनी है और अपनी इच्छानुसार रूप बदलने में शातिर है। वह बच्चों का मांस खाने की आदी है। उनके द्वारा अनेक उपाय किए गए हैं, लेकिन उस पर किसी तंत्र-मंत्र अथवा शक्ति का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। आप अतिशीघ्र कोई उपाय कीजिए वर्ना नगर से बालकों की किलकारियाँ सदा के लिए बंद हो जाएगी। नगरवासियों के करुण पुकार सुनकर रघु बहुत चिन्तित हुए। उन्होंने नगरवासियों को आश्वस्त करते हुए अपने-अपने घर जाने को कहा।
   नगरवासियों के जाने के बाद राजा रघु बहुत विचार कर अपने गुरु वशिष्ठ के पास गये। गुरु के पास पहुंचकर उन्होंने विनम्रतापूर्व उनसे ढूंढा राक्षसी के बारे में समस्या का समाधान जानने के लिए बड़ी नम्रता से चरण स्पर्श किए और वहीं गुरु वशिष्ट के समीप बिछे कुशासन पर बैठकर और अपने आने का कारण बताया। उन्होंने गुरु वशिष्ट से पूछा कि कि यह राक्षसी कौन है? इसके अत्याचारों को निवारण का उपाय बताइये? वशिष्ट थोड़ी देर चुप रहकर बोले- राजन! यह माली नाम के राक्षस की कन्या है। एक समय की बात है। इसने शिव की आराधना में बड़ा उग्र तप किया। भगवान भोलेनाथ ने उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर उसको वर मांगने को कहा। इस पर वह कुछ भी न बोली तो फिर शिव जी ने कहा- “संकोच मत करो बालिके! जो कुछ तुम्हारे मन में हो वह मांग डालो। मैं तुम्हारी इच्छा पूर्ण करूंगा।
    महादेव के ऐसे वचन सुनकर उसका रहा सहा संकोच भी जाता रहा और वह हाथ जोड़कर बोले- हे भोलेनाथ मुझे देवता, दैत्य और शस्त्रों से अवध्य कर दीजिए। मुझे गर्मी-सर्दी, बरसात, दिन-रात, घर-बाहर सभी स्थानों से अभय प्राप्त हो। उसकी इस बात को सुनकर शिव सोच में पड़ गये। इतनी शक्तियों के प्राप्त हो जाने से यह उनका अवश्य दुरुपयोग करेगी और सर्वत्र आतंक फैलाती रहेगी, लेकिन मैं तो वचन दे चुका हूं फिर ........... शिवजी बोले- अरे, तुमने सब कुछ कहा लेकिन पागल और बालकों का नाम क्यों नहीं लिया?
ढूंढा हंसते हुए बोली- पागल तो पागल होता है। वह भला किसी का क्या बिगाड़ सकता है और रही बालकों की बात, भला उन्हें मैं क्यों सताने लगी, वे तो मुझे बहुत प्रिय है। शिव तथास्तु कहकर वहां से अन्तर्ध्यान हो गये। शिव के चले जाने पर उसने अपने कथन पर विचार किया- वह बालकों को लेकर चिन्ताग्रस्त हो गई। इसीलिए वह तब से बालकों को परेशान करती रहती है- सोचती है न कोई जीवित बचेगा और न मेरा अहित होगा। ऐसा वशिष्ट ने रघु को कह सुनाया।
गुरुदेव की समस्त बातें ध्यानपूर्वक सुनकर रघु बोले- इससे मुक्ति को भी तो कोई उपाय होगा। उपाय क्यों नहीं है, उपाय तो है- कोई भी देवता कोई तपस्वी को ऐसे ही वरदान थोड़े ही दे दिया जाता है। बहुत आगा-पीछा सोचकर, उसी के कथन में से सार निकालकर उसकी मौत का कारण समझ वरदान दिया जाता है। यदि वह तपस्वी का वरदान न दें तो व्यक्ति का ईश्वर पर से आस्था ही समाप्त हो जाए। इसलिए देवताओं को उनकी तपस्या को सार्थक करने के लिए वरदान तो देना ही पड़ता है। यदि उसने पाई हुई सिद्धि का दुरुपयोग किया तो उसी के मांगे हुए वरदान में से उसकी मौत का उपाय भी खोज लेते हैं। इसलिए हे राजन, आप चिन्तित न हो और जैसा मैं कहूं वैसा ही कृत्य करें।
          फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा को राज्य के बालकों को बुलाकर उनसे सूखे उपले (गोबर के कंडे) मंगाकर एक जगह इकट्ठे करवाएं और उसमें सूखे पत्तां, टहनियां, लकड़ियां मंगाकर एक ढूंढ बनवाएं । उसके बीचों बीच एक लकड़ी का लम्बा डंडा लगवाएं क्योंकि उसने (ढूंढा) वरदान मांगते समय जंगली वस्तुओं और पशुओं का नाम नहीं लिया था। बालकों के हाथ में लकड़ी की तलवारें दें और उनसे कहें कि अपनी अपनी तलवारों को इस प्रकार चलाएं जिस प्रकार युद्ध में योद्धा अपने शत्रु पर वार करने के लिए प्रहार करता है। बड़े लोगों से कहें कि वे पागलों की तरह व्यवहार करें, क्रूर हास्य, अनर्गल प्रलाप और हंसी-मजाक करें। निःशंक होकर जिसके मन में जो आये वही करें फिर आप राक्षसों के नाश वाला मंत्र बोलकर अग्नि को प्रज्जवति करें। तत्काल रघु क्षमायाचना सहित बोल उठे- लेकिन गुरूदेव, इस सबसे ढूंढा का कैसे नाश होगा। नाश ....नाशम ही तो होगा। वह इतने बालकों के समूह को देखकर लार टपकाती हुई वहां आयेगी और अपने को सबों की दृष्टि से ओझल रखने की लिए उसी ढूंढ में छुप जाएगी। राक्षसों के नाश करने वाले मंत्र से ज्यों ही अग्नि प्रज्जवलित होगी, वह उसी में जल मरेगी। राजन, ऐसा अवश्य होगा क्योकि उसकी मृत्यु इसी प्रकार लिखी हुई है।
  राजा रघु ने गुरूदेव की आज्ञा का अक्षरशः पालन किया। ढूंढा नाम की राक्षसी अपने प्रलोभन के कारण सचमुच वहां आई और ढूंढा को अग्नि के चारों तरफ से घेर लिया तो वह निकल भागने का उपाय खोजने लगी लेकिन वशिष्ट के मंत्रों ने उस अग्नि के चारों ओर से एक गोलाकार रेखा से बांध जो दिया था। मंत्रों के प्रभाव से वह न तो एक इंच वहां से सरक सकी न ही मायावी रूप धारण कर पाई। अपनी मृत्यु को देख वह चीख-चीखकर शिव को पुकारने लगी। शिवजी वहां आये और उन्हें धिक्कारते हुए कहा कि तुमने अपनी शक्ति का दुरुपयोग किया इसीलिए परिणाम भुगतो। उसकी अनुनय-विनय सब बेकार गई और वह जल मरी।  तब से आज तक होली जलाने, अनाप-शनाप बोलने  और होली की राख को तांंत्रिक लोगों द्वारा उपयोग आदि की प्रथा चल निकली। 

सभी को होली की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं!



18 टिप्‍पणियां:

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत ज्ञानवर्धक कथा...होली की हार्दिक शुभकामनाएं

PS ने कहा…

Happy Holi!!!

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुन्दर। होली की मंगलकामनाएं।

yashoda Agrawal ने कहा…

शुभ संध्या कविता दीदी
एन होलिका दहन के दिन
एक ऐतिहसिक कथा का पठन
शुभ संकेत
सादर

विकास नैनवाल 'अंजान' ने कहा…

ये कहानी मैं पहली बार सुन रहा हूँ। सचमुच ज्ञानवर्धक पोस्ट। होली की शुभकामनायें कविता जी।

Ravindra Singh Yadav ने कहा…

होली पर्व से सम्बद्ध समृद्ध वैदिक साहित्य में एक और आयाम जोड़ना सुखद,सरस, गौरवपूर्ण है. होली की मंगलकामनाएें कविता जी.

RAKESH KUMAR SRIVASTAVA 'RAHI' ने कहा…

आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है http://rakeshkirachanay.blogspot.in/2017/03/10.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
मित्र-मंडली का संग्रह नीचे दिए गए लिंक पर संग्रहित हैं।
http://rakeshkirachanay.blogspot.in/p/blog-page_25.html

तरूण कुमार ने कहा…

पहली बार इस कथा को पढ़ा हैं , अच्छी जानकारी दी होली के बारे में
होली की शुभकामनाएं

Sudha Devrani ने कहा…

कहानी दिलचस्प है पहली बार पढी .....
बहुत सुन्दर.......

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज मंगलवार (13-03-2017) को

"मचा है चारों ओर धमाल" (चर्चा अंक-2605)

पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज मंगलवार (14-03-2017) को

"मचा है चारों ओर धमाल" (चर्चा अंक-2605)

पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

kumar gulshan ने कहा…

पहली बार सुनी कहानी धन्यवाद ...होली की हार्दिक शुभकामनाएं

दिगम्बर नासवा ने कहा…

कितने प्रसंग हैं जो होली से जुड़े हुए हैं ... बहुत ही रोचक कहानियाँ है ...
प्रसन्नता का भाव लिए हमारे त्यौहार सद्भावना लिए हैं ... खुशियाँ लिए हुए हैं ... बधाई होली की ...

जयन्ती प्रसाद शर्मा ने कहा…

बहुत ही रोचक कहानी...

गिरधारी खंकरियाल ने कहा…

रोचक कथा ।

Jamshed Azmi ने कहा…

बहुत ही रोचक और अच्छी होली कथा की प्रस्तु्ति। मुझे बेहद पसंद आई।

HindIndia ने कहा…

बहुत ही बढ़िया article है ..... ऐसे ही लिखते रहिये और मार्गदर्शन करते रहिये ..... शेयर करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। :) :)

~Sudha Singh vyaghr~ ने कहा…

यह कहानी मैंने पहली बार पढ़ी है share करने के लिए धन्यवाद कविता जी