थोड़ी देर का सुख बहुत लम्बे समय का पश्चाताप होता है
एक बार कोई अवसर हाथ से निकला तो वापस नहीं आता है
दूध बिखरने के बाद रोने-चिल्लाने से कोई फायदा नहीं होता है
मनुष्य अपने भाग्य को नहीं उसका भाग्य उसे ढूंढ लेता है
गम का एक दिन हँसी-ख़ुशी के एक माह से भी लम्बा होता है
नियति कभी एक मुसीबत डालकर संतुष्ट नहीं होती है
उसके आगे माथा टेक लेने में ही समझदारी रहती है
दुर्भाग्य उड़कर आता किन्तु पैदल वापस जाता है
अभागे के हाथ में पारस भी पत्थर बन जाता है
व्यस्त मनुष्य का समय बहुत जल्दी बीतता है
समय का प्रवाह किसी की प्रतीक्षा नहीं करता है
... कविता रावत