हमारी तरह आप भी उगाएं अपने बगीचे में ग्रीन टी के पौधे । कंडाली । बिच्छू घास । Nettle 🌿 - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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रविवार, 16 मार्च 2025

हमारी तरह आप भी उगाएं अपने बगीचे में ग्रीन टी के पौधे । कंडाली । बिच्छू घास । Nettle 🌿


आइए, आज मैं आपको हमने अपने बगीचे में उगाए 
ग्रीन टी के पौधों से परिचय कराती हूं। आप सोच रहे होंगे कि आखिर 💚 ☕ के पौधे कैसे होते हैं, कैसे उगाये जाते हैं? तो दिमाग पर ज्यादा जोर मत दीजिए, मैं ही बताती चलती हूँ। ये पौधे हमने हमारे पहाड़ी राज्य उत्तराखंड से बीज लाकर उगाए हैं, ये पौधे भर नहीं है, ये बहुउद्देशीय किस्म के पौधे हैं। ये बहुत से गुणों  से युक्त हैं। ये औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं, जिनमें विटामिन ए,सी,डी.पोटैशियम, मैगनीज, कैल्सियम जैसे पौष्टिक पदार्थ होते हैं। इसे हमारे गढ़वाल क्षेत्र में कंडाली और कुमाऊँ में सिसूण नाम से जाना जाता है। इसे हिंदी भाषी राज्यों में लोग बिच्छू घास के नाम से भी जानते हैं, जो कि अर्टिकाकेई वनस्पति फैमिली का होता है, जिसका वास्तविक नाम अर्टिका पर्वीफ्लोरा (urtica parviflora ) है। इसे अंग्रेजी में नेटल (Nettle ) नाम जाना जाता है। इस पौधे की पत्तियों और तनों में छोटे-छोटे रोएं होते हैं, जिसमें फर्मिक अम्ल होता है, जिसके कारण इसे छूने पर लाल-लाल चीटियों के काटने पर होने वाली जलन और सूजन जैसी स्थिति निर्मित होती हैं। उत्तरी तथा पूर्वी यूरोप में इसकी करी (Nettle Soup) लंबे समय से प्रचलित रही है तो हमारे उत्तराखंड में सदियों से इसका साग कोदो की रोटी के साथ खाने का प्रचलन है। इसे औषधीय गुणों के कारण सेहत के लिए अति उत्तम माना गया, जिस कारण इसका साग खान-पान का अहम हिस्सा बना हुआ है।

यह पौधा कई बीमारियों में रामबाण का काम करता है। शरीर में पित्त दोष, पेट की गर्मी को दूर करने के साथ ही यदि शरीर के किसी हिस्से में मोच आ गई है तो इसकी पत्तियों का अर्क बनाकर प्रभावित जगह पर लगाने से तुरंत आराम मिलता है। इसका साग खाने से मलेरिया रोग और शरीर की जकड़न भी ठीक होती है, क्योंकि यह मरीज के लिए एंटीबायोटिक और एंटी ऑक्सीडेंट का काम करता है। इसके बीज से कैंसर की दवा भी बनाई जाती है। हमारे पहाडी लोग इसका साग बनाकर रोटी, भात और झंगोरा के साथ भी खाते हैं।

यह पौधा भारत, चीन, यूरोप समेत कई देशों में पाया जाता है। लेकिन बताया जा रहा है कि ग्लोबल वार्मिंग और मौसम की मार की वजह से इसका अस्तित्व भी खतरे में हैं। बावजूद इसके मैंने अपने पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड से बीज लाकर भोपाल शहर की अपनी बगिया में उगाया है।  हाँ यह बात जरूर अलग है कि इसे गर्मियों में बचाने के लिए अतिरिक्‍त मेहनत करने पड़ती हैं, क्योंकि यह पौधा नाजुक होता है और इसे अधिक गर्मी बर्दास्त नहीं होती है, इसलिए इसे बहुत अधिक पानी देने और धूप से बचाने की जरुरत होती है। गर्मियों में इसके तने और पत्तियों भले ही सूख जाती हैं, लेकिन इसकी एक छोटी जड़ भी यदि बचा ली गई तो फिर वह बरसात आते ही बड़ी तेजी से बढ़ने लगती हैं। बरसात का पानी पड़ते ही इसकी कई शाखाएं निकल आती हैं, जिससे यह एक आकर्षक पौधे की रूप में हमारे सामने खडा दिखाई देता है।  

आजकल हमारे बगीचे में इसकी रौनक देखते ही बन रही है।  हमने इसे सड़क किनारे अधिक लगा रखा है क्योंकि इसे कोई जानवर नहीं खाता है और सड़क आते-जाते प्रकृति से खिलवाड़ करने वाले उपद्रवी लोग इसे छूने की हिमाकत नहीं करते हैं, इसलिए बगीचे के पौधों को बचाने के लिए ये सुरक्षा चक्र का काम करते हैं। इससे हमें कई लाभ हैं एक तो हम इसके पत्तियों का स्वादिष्ट साग तो खाते ही है साथ में जो मैं सबसे महत्वपूर्ण बात बता रही हूँ कि इसकी पत्तियों के साथ हम लेमन ग्रास और तुलसी के पत्तों को सुखाने के बाद पीसकर ताज़ी ग्रीन टी बनाते हैं। अभी जब बरसात के बाद ठण्ड में कंडाली का पौधा अपने पूरे शबाब पर होता है, तब इसकी पत्तियों को खाने के लिए हमारे घर कई हमारे उत्तराखंडी लोग मांगने आते हैं और इसका साग बनाकर खाते हैं। हम पिछले ४ वर्ष से इसे उगा रहे हैं इसलिए बहुत से हमारे भोपाल के परिचित लोगों को उनके कहने पर हम इसका साग खिलाते आ रहे हैं।  हमारी तरह ही उन्हें भी इसका साग बहुत पसंद आता है तथा वे भी ठण्ड का इंतज़ार करते हैं। वे भी जान गए कि इसके पत्तों में खूब आयरन तो होता ही है साथ में इसमें फोरमिक एसिड, एसटिल कोलाइट और विटामिन ए भी भरपूर मात्रा में मिलता है। इसके पौधे भी हम लोगों को उनके घर में लगाने के लिए कंडाली के पौधे देते हैं और उन्‍हें कैसे इसकी देखभाल करनी है, यह भी बताते हैं।     

....कविता रावत