अँधा युग महाभारत युद्ध के अंतिम दिन की घटनाओं पर आधारित है। जहाँ गांधारी, धृतराष्ट और विदुर संजय की प्रतीक्षा कर रहे हैं कि शायद वे युद्ध भूमि से विजय का समाचार लाये। लेकिन संजय दुर्योधन की पराजय के बाद निराश और व्यथित है कि वह इस लज्जाजनक पराजय के समाचार को उन दोनों अंधों को जाकर कैसे बताएगा। कौरव योद्धाओं में केवल तीन ही जीवित बचे होते है-कृपाचार्य, कृतवर्मा और अश्वथामा। अश्वथामा अपने पिता द्रोण के वध और युद्धिष्ठिर के अर्धसत्य व दुर्योधन की अधर्म तरीके से हत्या से आहात होकर पांडवों को भी अधर्म से मारने का प्रण लेता है। व्यथित और उद्वेलित वह शंकर भगवान से दैवीय असी लेकर पाण्डवोँ के शिविर में जाता है और उनके शिवरोँ में आग लगा कर धृष्टधुम्न, शत्निक और शिखंडी का वध कर ब्रह्मास्त्र चला देता है, उधर अर्जुन भी अपना ब्रह्मास्त्र चलाता है, लेकिन व्यास के कहने पर वह उसे रोक लेता है लेकिन अश्वथामा उसे रोकने के बजाय उत्तरा का गर्भ में अभिमन्यु के पुत्र की और मोड़ लेता है, कृष्ण यह देख उस पुत्र को जीवित कर देते हैं, लेकिन अश्वथामा से मणि लेकर उसे श्राप देते हैं कि वह जीवित रहेगा पर उसके अंग -अंग गले रहेंगे, उसके घाव हमेशा ताजा रहेंगे। गांधारी जब यह सब देखती है तो वह कृष्ण को श्राप देती है कि वह एक साधारण व्याघ के तीर से मारे जाएंगे। जिस क्षण प्रभु ने प्रस्थान किया द्वापर युग का समय बीत गया और कलयुग ने अपना प्रथम चरण रखा। इस कलयुग आगमन की गायन प्रस्तुति के साथ ही नाटक का पटाक्षेप हुआ।
Source Matter : Newspaper- Dainik Bhaskar, Nav duniya, Jagran......
1 टिप्पणी:
महाभारत के अलग पहलू को चित्रित करता हुआ नाटक है।
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