एक वर्ष और बीत चला तो फिर वह आठवीं बार नीट की परीक्षा में बैठा तो उसमें उसे 700 में से 360 अंक प्राप्त हुए। पिछले वर्ष से 40 अंक बढ़कर आये तो उसने सोचा फिर बायोमेंटर कोचिंग से ही एक बार फिर भाग्य आजमा लेता हूँ। लेकिन वाह! री किस्मत बायोमेंटर कोचिंग ही बंद हो गई। अब फिर उसके सामने एक संकट खड़ा हो गया। कौन कोचिंग वाला फ्री में पढ़ायेगा? क्या फिर विजय सिंह क्लास में ही जाना पड़ेगा, वह बहुत सोचता रहा। उसे याद आया कि जब उसने विजय सिंह क्लासेज छोड़ी तो विजय सर को भी यह बात बहुत बुरी लगी कि वह उनकी कोचिंग छोड़कर दूसरी कोचिंग जा रहा है। यद्यपि उसे भी इस बात का बुरा लग रहा था कि उन्होंने उसे रहने के लिए स्कूल में कमरा दिया, मुफ्त में अपनी कोचिंग में पढ़ाया, लेकिन उसके पास विकल्प भी तो नहीं था। दूसरी कोचिंग में पढ़ना उसकी मज़बूरी थी, उसे नीट की परीक्षा जैसे-तैसे निकालनी जो थी और उस स्तर की पढ़ाई वह वहाँ नहीं कर पा रहा था।
दूसरी अच्छी कोचिंग को तलाशते-तलाशते वह एक दिन बाण्ड क्लासेस पहुँच गया, लेकिन वहाँ के मैनेजर ने उसे बताया कि वे किसी को भी बिना पैसों के नहीं पढ़ाते हैं। बावजूद इसके वह कोचिंग के बाहर ही बैठा रहा और जब बच्चे क्लास में जाने लगे तो वह भी उनके साथ अंदर जाने लगा, लेकिन उसे किसी ने अंदर घुसने नहीं दिया। वह हर दिन कोचिंग जाता और क्लास के दरवाजे से थोड़ी दूर बैठे-बैठे क्लास टीचर और बच्चों को देखता रहता। ऐसा करते-करते जब उसे एक माह के करीब हो गया तो एक दिन केमिस्ट्री के टीचर को उस पर दया आयी और उन्होंने मैनेजर से उसके बारे में पूछा, तो उसने उन्हें पूरी बात बता दी। मैनेजर की बात सुनकर टीचर ने उसे बुलाया और जब उसने अपनी पूरी कहानी सुनाई तो उन्होंने उसे उनकी क्लास में मुफ्त में पढ़ने की परमिशन देते हुए कहा कि वे फिजिक्स वाले सर से अलग से बात कर ले। केमिस्ट्री वाले सर ने जिनका नाम पवन गुबरेले था, उनके 'हाँ' कहने के बाद दूसरे दिन बायोलाॅजी वाले प्रकाश नंदी सर जो जूलाॅजी पढ़ाते थे, वे भी मान गए। जबलपुर से आकर बॉटनी पढ़ाने वाले लोधी सर ने भी उसे 'हाँ ' कहा तो वह बड़ा खुश हुआ। अब केवल एक मुख्य विषय बचा था फिजिक्स, जिसे चितरंजन सर पढ़ाते थे, वे नहीं मान रहे थे। एक दिन वह बिना बताए बच्चों के भीड़भाड़ में उनकी क्लास में घुस गया। चितरंजन सर क्लास लेने आये और पढ़ाकर चले गए, उनका ध्यान उस पर नहीं गया। लेकिन जैसे ही क्लास के स्टुडेंट बाहर आये उन्होंने मैनेजर के सामने हंगामा खड़ा कर दिया कि मांझी को उन्होंने क्यों उनके साथ क्लास में आने दिया। बच्चों से उसे ऐसी उम्मीद कतई न थी कि वे इस तरह उसका साथ देने के बजाय उल्टा विरोध करने लगेंगे। बच्चों के इस तरह के बुरे बर्ताव से उनका मन बहुत दुःखी हुआ। लेकिन वह कर भी क्या सकता था, मजबूरी जो थी। फिर जब केमिस्ट्री वाले सर को इस बात का पता चला उन्होंने स्वयं फिजिक्स वाले सर से बात की तो वे उसे पढ़ाने के लिए राजी हो गये। इस प्रकार उसे वहाँ सभी विषय की पढ़ाई करने का मौका मिला।
नौवी बार परीक्षा हुई तो उसे 720 में से 405 अंक मिले। फिर 45 अंक जरूर बढ़ के जरूर आये लेकिन इससे उसकी दाल नहीं गलने वाली थी, वह दुःखी हुआ लेकिन उसके अन्य बहुत से बच्चों से अधिक अंक आये थे और वह सफलता के बहुत करीब था, इसलिए सभी टीचर्स ने उसे फिर से तैयारी करने को कहा तो वह फिर एक बार जी जान लगाकर जुट गया। यहाँ कोचिंग का स्टाफ भी उसे अच्छा मिला उन्होंने उसे प्रोत्साहित किया कि यदि वह अगले वर्ष नीट निकाल लेगा तो वे सभी उसकी पढ़ाई का पूरा खर्चा उठाएंगे। उत्साहित होकर उसने फिर पूरा जोर लगाया और फिर जब परीक्षा हुई तो उसे 720 में 430 अंक मिले। इस बार वह नीट परीक्षा में सफल तो हुआ लेकिन थोड़ा कम अंक होने से सरकारी डेंटल और बैटनरी कॉलेज तो मिल रहा था लेकिन एमबीबीएस नहीं। लेकिन उसकी तो जिद्द थी कि वह नीट की परीक्षा निकालकर सरकारी कॉलेज से एमबीबीएस ही करेगा।
एक बार फिर उसने अपनी मंजिल की ओर पग बढ़ाए। दिन भर कोचिंग में पहले क्लास में पढ़ता और फिर जैसे ही क्लास ख़त्म होती और सभी बच्चे घर चले जाते तो वह वहीँ पढ़ने बैठ जाता। वह पढ़ने में इतना खो जाता कि उसे खाने-पीने तक का होश नहीं रहता। कभी अगर कोचिंग स्टाफ को लंच करते समय उसका ख्याल आता तो वे अपने टिफिन से कुछ खिला देते तो वह खा लेता, नहीं तो ऐसे ही दिन भर भूखा रहता और शाम को भी जल्दी-जल्दी जैसे-तैसे कच्चा-पक्का बना खाकर देर रात तक स्कूल के कमरे में अकेला बैठा किताबों में घुसा सर खपाता रहता।
ऐसे करते-करते परीक्षा का दिन आया और उसने फिर दसवीं बार परीक्षा दी, जिसका कुछ दिन बाद रिजल्ट आया तो 720 में से 437 अंक ही मिले, जिसके आधार पर उसे पिछले वर्ष की भाँति फिर सरकारी डेंटल और बैटनरी कॉलेज तो मिल रहा था, लेकिन उसकी वही जिद्द कि वह तो नीट की परीक्षा में निर्धारित अंक लेकर सरकारी कॉलेज से एमबीबीएस ही करेगा। अब उसके सामने एक और बहुत बड़ी दुविधा खड़ी हो गई कि उसकी तो नीट परीक्षा देने के लिए निर्धारित आयु सीमा निकलने में केवल एक वर्ष ही शेष है। यानि यदि वह फिर से तैयारी करता है तो यह उसका नीट परीक्षा का आखिरी मौका होगा। अब वह दोराहे पर खड़ा सोचने लगा कि वह किधर जाए और किधर नहीं। बहुत से लोग और टीचर भी उसे उसकी नियति मानकर डेंटल या बैटनरी में से कोई एक सरकारी कॉलेज लेकर उसे से संतुष्ट होने को कहा, बहुत समझाया भी, लेकिन वह अपनी ही धुन में कहता कि उसका तो बचपन से ही सपना है एमबीबीएस पास कर डॉक्टर बनने का, फिर वह कैसे हार मान लेगा। उसने किसी की नहीं सुनी, खुद ही बहुत सोचा-विचारा और फिर अपने मन की करने बैठ गया। एक बार फिर वह अंतिम अवसर को अपने अनुकूल करने के लिए जी जान से जुट गया। यह नीट परीक्षा के साथ ही उसकी परीक्षा का भी फाइनल था। वह फिर से अपनी अंतिम लड़ाई लड़ने और उसे जीतने की नियत से जी जान लगाकर एनसीईआरटी की एक-एक बुक को पढ़ने लगा और टीचर्स से समझने लगा। कोचिंग वाले भी एनसीईआरटी की बुक से पढ़ाते थे। वर्ष भर वह दीन-दुनिया से बेखबर एनसीईआरटी की बुक में अंदर तक घुसा रहा।
अंतिम 11 वीं बार परीक्षा में बैठा तो उसे पेपर पिछले वर्षों की तुलना में कठिन लगा। लेकिन पेपर पूरा करने के बाद उसे पूरा विश्वास था कि वह बाजी जीत जाएगा। लेकिन किस्मत क्या खेल खिलाती है यह कोई नहीं जान पाता। जब रिजल्ट आया तो उसे 720 में से 420 अंक ही मिले, जो पिछले वर्ष से 17 अंक कम थे। उसने जैसे ही अंक देखे वह हिम्मत हारकर वहीं निढ़ाल हो गया। इस बार यह उसका अंतिम अवसर था। हर तरफ से निराशा ही निराशा मिली तो वह तिलमिला उठा कि अब वह न कभी परीक्षा दे पायेगा और नहीं कभी डाॅक्टर बन पायेगा। बचपन से देखते आये सपने का एक दिन ऐसा हश्र होगा, यह उसने सपने में भी नहीं सोचा था। यह समय उसके लिए जीवन-मरण जैसा था। वह सोचता जिस सपने को साकार करने के लिए उसने 27 वर्ष तक न दिन देखा न रात, दुनियाभर के कष्ट उठाकर उसी में लगा रहा। सिर पर लोगों के अहसानों की गठरी लादे रखी, उसका ईश्वर ने यह कैसा प्रतिफल दिया। अब उसके आगे बढ़ने के सारे रास्ते बंद हो चुके थे। वह पूरी तरह से टूट गया था। सभी लोग उसे ताने मारने लगे कि उसने अपने हाथों जिन्दगी खराब कर दी और भी जाने क्या-क्या कहने लगे। जिन्हें सुन-सुन कर कभी वह फूट-फूट कर रोने लगता, कभी बदहवास इधर-उधर पागलों की तरह घूमने-फिरने लगा। कहते हैं न, दुःख में सबसे ज्यादा माँ की याद आती है। ऐसे हालात में उसे भी अचानक अपनी माँ की याद आयी और वह दौड़ा-दौड़ा अपनी मैया दुर्गा जी के सामने गया और उसने उनके आगे अपना माथा बहुत जोर से पटका, जिससे गहरी चोट लगी और खून बहने लगा। लेकिन उसे होश कहाँ, वह बहुत देर तक वहीँ जोर-जोर से रोता रहा और फिर जोर-जोर से घंटी बजाकर वापस स्कूल आकर निढाल होकर गिर पड़ा। उसका खाना-पीना, सोना-जागना सब हराम हो गया था। रात भर वह सोच-सोच कर करवटें बदलता रहा, लेकिन नींद उससे कोसों दूर जाकर खड़ी थी। सुबह हुई तो उसके एक मित्र ने फ़ोन पर बताया कि नीट की परीक्षा दुबारा होगी, क्योंकि पेपर लीक हो गया था। उसे अपने कानों पर भरोसा ही नहीं हो रहा था कि ऐसा भी हो सकता है। उसे विश्वास हो गया कि उसकी पुकार माता रानी ने सुन ली। अब उसकी ख़ुशी का कोई ठिकाना न रहा। वह वैसे ही भूखा-प्यासा माता रानी के दरबार में गया और उनसे आशीर्वाद लेकर अपनी मंजिल की तैयारी में फिर से जुत गया। समय बहुत कम था। उसकी नींद तो उड़ चुकी थी। इसलिए वह दिन भर तो पढ़ता ही रात को भी पढ़ते-पढ़ते वहीँ कुर्सी पर झपकी ले लेता। फिर एक और अंतिम परीक्षा हुई तो उसका पेपर बढ़िया गया। रिजल्ट आया तो उसके 720 में से 447 अंक आये। वह हारती हुए बाजी जीत गया, माता रानी ने उसकी नैया पार लगा ली। लेकिन जब उसने पहले राउंड की काउंसलिंग में भाग लिया तो उसे इंदौर का सरकारी डेंटल काॅलेज मिला। उसने फिर दूसरे राउंट की काउंसलिंग में भाग लिया तो कटआउट ज्यादा गया तो उसका नाम नहीं आया। फिर उसने अंतिम राउंट की काउंसलिंग में भाग लिया तो उसे एमबीबीएस का सरकारी कॉलेज तो नहीं मिला लेकिन प्रायवेट कॉलेज के रूप में चिरायु मेडिकल काॅलेज मिला, जो कि भोपाल का सबसे अच्छा मेडिकल काॅलेज माना जाता है। लेकिन यहाँ की फीस भरना उसके बूते से बाहर की बात थी। अब फिर उसके सामने बहुत बड़ी दुविधा थी कि वह सरकारी डेंटल कॉलेज ले या फिर प्रायवेट चिरायु मेडिकल काॅलेज। फिर दोराहे पर खड़ा सोचता रहा कि अगर दो-चार अंक और मिल जाते तो उसे सरकारी कॉलेज मिल जाता और फिर आगे फीस के झंझट से भी मुक्त रहता। पैसे पल्ले तो कुछ थे नहीं, इसलिए तो वह 11 वर्ष तक परीक्षा देता रहा कि कभी तो उसे सरकारी कॉलेज मिलेगा। डेंटल कॉलेज तो उसे पहले भी दो-चार बार मिला लेकिन उसकी तो धुन थी कि चाहे कुछ भी हो उसे तो एमबीबीएस करके ही डॉक्टर बनना है।
निरंतर अगले अंक में .....................