यूँ ही अचानक कहीं कुछ नहीं घटता । Yun Hi Achanak Kahin Kuchh Nahin Ghatta। Hindi Kavita - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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शनिवार, 31 अगस्त 2024

यूँ ही अचानक कहीं कुछ नहीं घटता । Yun Hi Achanak Kahin Kuchh Nahin Ghatta। Hindi Kavita


यूँ ही अचानक कहीं कुछ नहीं घटता
अन्दर ही अन्दर कुछ रहा है रिसता
किसे फुरसत कि देखे फ़ुरसत से जरा
कहाँ उथला कहाँ राज है बहुत गहरा
बेवजह गिरगिट भी नहीं रंग बदलता
यूँ ही अचानक कहीं कुछ नहीं घटता

यूँ कहने को सारा जग अपना होता
पर वक्त पर कौन है जो साथ रोता
तेरे-मेरे के घेरे से कौन बाहर निकले
साथ जीने-मरने वाले होते हैं बिरले
जो सगा है वही कितना संग चलता
यूँ ही अचानक कहीं कुछ नहीं घटता

यूँ ही कोई किसी की सुध नहीं लेता
बिन मांगे कोई किसी को कब देता
जब तक विप्र सुदामा नहीं गए मांगने
सर्वज्ञ कृष्ण भी कब गए उनके आंगने
महलों का सुख, झोपड़ी को है जलाता
यूँ ही अचानक कहीं कुछ नहीं घटता

कल तक खूब बनी पर अब है ठनी
बात बढती है तो तकरार ही है तनी
तू-तू-मैं-मैं की अगर जंग छिड गयी
तो अपने-पराए की भावना मर गयी
सागर में यूं‍ ही कब ज्वार-भाटा चढ़ता
यूँ ही अचानक कहीं कुछ नहीं घटता

जब साथ मिला तो खूब कमा लिया
लक्ष्य दृढ़ रहे तो मुकाम भी पा लिया
जो कल तक दूर थे, वे पास आने लगे
कांटे बिछाते थे कभी, फूल बरसाने लगे
बिन बादल आसमां भी कहाँ है बरसता
यूँ ही अचानक कहीं कुछ भी नहीं घटता

.. .. कविता रावत