यूँ ही अचानक कहीं कुछ नहीं घटता
अन्दर ही अन्दर कुछ रहा है रिसता
किसे फुरसत कि देखे फ़ुरसत से जरा
कहाँ उथला कहाँ राज है बहुत गहरा
बेवजह गिरगिट भी नहीं रंग बदलता
यूँ ही अचानक कहीं कुछ नहीं घटता
यूँ कहने को सारा जग अपना होता
पर वक्त पर कौन है जो साथ रोता
तेरे-मेरे के घेरे से कौन बाहर निकले
साथ जीने-मरने वाले होते हैं बिरले
जो सगा है वही कितना संग चलता
यूँ ही अचानक कहीं कुछ नहीं घटता
यूँ ही कोई किसी की सुध नहीं लेता
बिन मांगे कोई किसी को कब देता
जब तक विप्र सुदामा नहीं गए मांगने
सर्वज्ञ कृष्ण भी कब गए उनके आंगने
महलों का सुख, झोपड़ी को है जलाता
यूँ ही अचानक कहीं कुछ नहीं घटता
कल तक खूब बनी पर अब है ठनी
बात बढती है तो तकरार ही है तनी
तू-तू-मैं-मैं की अगर जंग छिड गयी
तो अपने-पराए की भावना मर गयी
सागर में यूं ही कब ज्वार-भाटा चढ़ता
यूँ ही अचानक कहीं कुछ नहीं घटता
जब साथ मिला तो खूब कमा लिया
लक्ष्य दृढ़ रहे तो मुकाम भी पा लिया
जो कल तक दूर थे, वे पास आने लगे
कांटे बिछाते थे कभी, फूल बरसाने लगे
बिन बादल आसमां भी कहाँ है बरसता
यूँ ही अचानक कहीं कुछ भी नहीं घटता
.. .. कविता रावत
अन्दर ही अन्दर कुछ रहा है रिसता
किसे फुरसत कि देखे फ़ुरसत से जरा
कहाँ उथला कहाँ राज है बहुत गहरा
बेवजह गिरगिट भी नहीं रंग बदलता
यूँ ही अचानक कहीं कुछ नहीं घटता
यूँ कहने को सारा जग अपना होता
पर वक्त पर कौन है जो साथ रोता
तेरे-मेरे के घेरे से कौन बाहर निकले

जो सगा है वही कितना संग चलता
यूँ ही अचानक कहीं कुछ नहीं घटता
यूँ ही कोई किसी की सुध नहीं लेता
बिन मांगे कोई किसी को कब देता
जब तक विप्र सुदामा नहीं गए मांगने
सर्वज्ञ कृष्ण भी कब गए उनके आंगने
महलों का सुख, झोपड़ी को है जलाता
यूँ ही अचानक कहीं कुछ नहीं घटता
कल तक खूब बनी पर अब है ठनी
बात बढती है तो तकरार ही है तनी
तू-तू-मैं-मैं की अगर जंग छिड गयी
तो अपने-पराए की भावना मर गयी
सागर में यूं ही कब ज्वार-भाटा चढ़ता
यूँ ही अचानक कहीं कुछ नहीं घटता
जब साथ मिला तो खूब कमा लिया
लक्ष्य दृढ़ रहे तो मुकाम भी पा लिया

कांटे बिछाते थे कभी, फूल बरसाने लगे
बिन बादल आसमां भी कहाँ है बरसता
यूँ ही अचानक कहीं कुछ भी नहीं घटता
.. .. कविता रावत
bahut sundar vichaaron kee abhivyakti
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों बाद आपके ब्लॉग पार आना हुआ
गहराई से लिखी गयी एक सुंदर रचना...
जवाब देंहटाएंYahi hai zindagi ka dard...har koyi tanha hi is path pe chalta hai!
जवाब देंहटाएं"जब साथ मिला तो खूब कमा लिया
जवाब देंहटाएंलक्ष्य दृढ़ रहे तो मुकाम भी पा लिया
जो कल तक दूर थे, वे पास आने लगे
कांटे बिछाते थे कभी, फूल बरसाने लगे
बिन बादल आसमां भी कहाँ है बरसता
यूँ ही अचानक कहीं कुछ भी नहीं घटता"
हृदयस्पर्शी पंक्तियाँ,
सच तो यही है .यही है आज के जीवन का यथार्थ
दिल में गहरे बैठ गई आपकी ये प्रस्तुती
यूँ ही कोई किसी की सुध नहीं लेता
जवाब देंहटाएंबिन मांगे कोई किसी को कब देता
जब तक विप्र सुदामा नहीं गए मांगने
सर्वज्ञ कृष्ण भी कब गए उनके आंगने
महलों का सुख, झोपड़ी को है जलाता
यूँ ही अचानक कहीं कुछ नहीं घटता
sachchi yun hi kuch nahin hota, bahut badhiyaa
बिन बादल आसमां भी कहाँ है बरसता
जवाब देंहटाएंयूँ ही अचानक कहीं कुछ भी नहीं घटता
....hridaysparshee rachna. bahut badhiya.
यथार्थ के बेहद करीब सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबेवजह गिरगिट भी नहीं रंग बदलता
जवाब देंहटाएंयूँ ही अचानक कहीं कुछ नहीं घटता
बहुत सुन्दर रचना है ... और एक एक लब्ज़ सच है ...
एक-एक शब्द तोल-मोलकर
जवाब देंहटाएंमान गए आपको
अच्छी रचना के लिए बधाई.
aaj ko aainaa dikhatee ek utkrusht rachana......apanee yaha to kahawat bhee haiki bina roye ma bhee bacche ko doodh nahee pilatee.........aur ye bhee saty hai ki acche samay me sath dene walo kee kamee nahee.....mai do mahine nahee hoo atah comment dene me shayad aniymitata aa jae..........
जवाब देंहटाएंshubhkamnae.......
...behatareen rachanaa!!!
जवाब देंहटाएंहिंदी ब्लॉग लेखकों के लिए खुशखबरी -
जवाब देंहटाएं"हमारीवाणी.कॉम" का घूँघट उठ चूका है और इसके साथ ही अस्थाई feed cluster संकलक को बंद कर दिया गया है. हमारीवाणी.कॉम पर कुछ तकनीकी कार्य अभी भी चल रहे हैं, इसलिए अभी इसके पूरे फीचर्स उपलब्ध नहीं है, आशा है यह भी जल्द पूरे कर लिए जाएँगे.
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बेवजह गिरगिट भी नहीं रंग बदलता
जवाब देंहटाएंयूँ ही अचानक कहीं कुछ नहीं घटता ...
सच कहा है ... बेवजह तो कुछ भी नही होता ... पर क्या कुछ होने में इंसान का हाथ होता है ....
बहुत प्रश्न ढूँढने का प्रयास करती दिखती है ये रचना ...
कुछ भी बेवजह नहीं होता ...गिरगिट भी दुश्मन को देख कर ही रंग बदलती है ...
जवाब देंहटाएंबिलकुल ही यथार्थवादी रचना...दिल की गहराइयों में जगह बनाती हुई
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना ! शब्द शब्द पिरोया गया है !
जवाब देंहटाएंस्वार्थ का रंग ऐसा चढा है दुनिया पर कि अगर निःस्वार्थ कुछ भी मिले तो किसी को भरोसा नहीं होता..जब इंसान ने अपने स्वार्थ के लिए प्रकृति का शोषण करना शुरू का दिया तो बादलों पर स्वार्थी होने का दोष क्यों मढ़ना... अच्छी रचना.
जवाब देंहटाएंबधाई।
जवाब देंहटाएंबेवजह गिरगिट भी नहीं रंग बदलता
जवाब देंहटाएंयूँ ही अचानक कहीं कुछ नहीं घटता ....
ek such......AAAAAbhar
सार्थक रचना...सच है की बिना बात कुछ नहीं होता
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील कविता, कविता।
जवाब देंहटाएंजीवन एक पाठशाला है जिसमें व्यक्ति अनुभवों से शिक्षा ग्रहण करता है।
जब साथ मिला तो खूब कमा लिया
जवाब देंहटाएंलक्ष्य दृढ़ रहे तो मुकाम भी पा लिया
जो कल तक दूर थे, वे पास आने लगे
कांटे बिछाते थे कभी, फूल बरसाने लगे
बिन बादल आसमां भी कहाँ है बरसता
यूँ ही अचानक कहीं कुछ भी नहीं घटता
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सभी छन्द बहुत सुन्दर रचे हैं आपने!
सचमुच, बहुत तार्किक हैं आपके विचार। हर क्रिया के पीछे एक लम्बी प्रक्रिया होती है।
जवाब देंहटाएं………….
संसार की सबसे सुंदर आँखें।
बड़े-बड़े ब्लॉगर छक गये इस बार।
हर पँक्ति एक सच को ब्यान कर रही है समझ नही आ रहा कि किस पँक्ति को कोट करूँ
जवाब देंहटाएंजीवन के हर रंग की अनुभूति है इस कविता मे। बधाई इस सुन्दर रचना के लिये।
सच्चाई का आइना,
जवाब देंहटाएंआभार...
शब्द - शब्द
जवाब देंहटाएंअर्थपूर्ण गहराई ....
सुन्दर और प्रभावशाली रचना .
बहुत सार्थक अच्छी रचना...बधाई
जवाब देंहटाएंनीरज
सुंदर रचना...
जवाब देंहटाएं'यूँ ही अचानक कहीं कुछ भी नहीं घटता'
जवाब देंहटाएं- यही सच है.
बहुत सुन्दर!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दरता लिखती हैं आप |बधाई
जवाब देंहटाएंआशा
बरसो की साधना होती है
जवाब देंहटाएंयु ही कोई इतनी सुन्दर कविता नहीं लिख देता |
बहुत अच्छी रचना |
कल तक खूब बनी पर अब है ठनी
जवाब देंहटाएंबात बढती है तो तकरार ही है तनी
तू-तू-मैं-मैं की अगर जंग छिड गयी
तो अपने-पराए की भावना मर गयी
सागर में यूं ही कब ज्वार-भाटा चढ़ता
यूँ ही अचानक कहीं कुछ नहीं घटता
nice words .
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंKavita jee, jeevan ko samajhna aur usake darshan ko samajhana do alag-alag cheejen hain. aap kee yah kavita usee darshan ko samjhaatee hai. kuchh chahiye to ichchha to vykdl karnee padegee.bahut achchha chintan.
जवाब देंहटाएंuper takaneeki badha se mera nam rah gaya hai.
जवाब देंहटाएंदर्द को समेट कर लिखा है आपने। जीवन की क्षणभंगुरता का अहसास हो रहा है हर लाइन में। परछाई भी तभी तक साथ देती है जब तक आशा कि किरण हो। वरना अंधेरा होने पर वो भी साथ छोड़ देती है कविता जी। स्वार्थ की दुनिया में हर पग पर धोखा है. फरेब है। तो कभी कभी अनजान लोग साथ देते हैं। लगता है कि दोस्त अब आस्तिन में रहते हैं। औऱ अनजाने सड़क किनारे पत्थर की तरह जिन्हें हम समझते हैं वो अचानक नींव बनकर सहारा देने लगते हैं।
जवाब देंहटाएंजब साथ मिला तो खूब कमा लिया
जवाब देंहटाएंलक्ष्य दृढ़ रहे तो मुकाम भी पा लिया
जो कल तक दूर थे, वे पास आने लगे
कांटे बिछाते थे कभी, फूल बरसाने लगे
बिन बादल आसमां भी कहाँ है बरसता
सही कहा .....लक्ष्य दृढ होना चाहिए ......!!
बहुत सुन्दर शब्दों से सजी कविता लिखी है किन्तु उससे भी सुन्दर उसमें जीवन का दर्शन है। पढ़कर मन खुश हुआ।
जवाब देंहटाएंजन्मदिन की बधाई के लिए आभार।
घुघूती बासूती
kavita ji..har lafz apne aap mein ek kehani si kehta hai...badhai!
जवाब देंहटाएंप्रभावी कविता.....! आभार.....!
जवाब देंहटाएंसृष्टिचक्र। जीवन-क्रम। सहज अनुभूति। सरल अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंकमोबेश,हम सब की गाथा।
जवाब देंहटाएंतुक के मोह से हटकर देखिये कविता सुन्दर बन पड़ेगी ।
जवाब देंहटाएंआदरणीया कविता रावत जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
आपके यहां आ'कर बहुत प्रसन्नता हो रही है …
सुंदर रचनाओं का ख़ज़ाना है यहां तो !
सब एक से बढ़ कर एक !
प्रस्तुत रचना यूँ ही अचानक कहीं कुछ नहीं घटता में भी सरस भावों का सहज संप्रेषण हो रहा है ।
अन्य कविताओं ने भी प्रभावित किया ।
बधाई !
स्वागत !
हां , छंद को और साध लें , तो सोने पर सुहागा हो जाएगा ।
शरद कोकास जी के सुझाव पर भी गौर किया जा सकता है …
शुभकामनाओं सहित …
शस्वरं पर भी आपका हार्दिक स्वागत है , अवश्य आइए…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
बेवजह गिरगिट भी नहीं रंग बदलता
जवाब देंहटाएंयूँ ही अचानक कहीं कुछ नहीं घटता ..... कविता जी बहुत ही सुंदर लिखा है ..
Sabse pahle mai aapko Dhanyvad dunga jo aapne apne bichoro ko ek pahchan di,
जवाब देंहटाएंApp apne bicharo or samajik gatibidhiyon ka varan karke use logon ke samane prakat karo or tumahi ek din avashya safalta milegi,
Hemant
यूँ ही अचानक कहीं कुछ भी नहीं घटता
जवाब देंहटाएंहां अवश्य ही कुछ न कुछ कारण होता है ..
.बहुत सुन्दर अनुपम कृति
आदरणीय ,अच्छी लेखनी ,सुन्दर रचना ! मानवीय मूल्यों को तोलती ,आभार। "एकलव्य"
जवाब देंहटाएंयथार्थ को उकेरती सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएं