गरीबी में डॉक्टरी : कहानी (भाग - 4 ) एक और मांझी की डॉक्टर बनने की संघर्ष गाथा - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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गुरुवार, 1 अगस्त 2024

गरीबी में डॉक्टरी : कहानी (भाग - 4 ) एक और मांझी की डॉक्टर बनने की संघर्ष गाथा

गतांक से आगे ........

तीसरी बार उसने PMT की परीक्षा दी तो उसके 200  में से 105 अंक आये। उसे एक बार असफलता का स्वाद चखना पड़ा। लेकिन उसे थोड़ी खुशी इस बात की जरूर थी कि उसके अंक बढ़ के आये हैं। जिस दिन उसका रिजल्ड आने वाला होता, उस दिन वह रात भर बेचैन होकर सो नहीं पाता। असफलता मिलती तो एक बार फिर लड़खड़ाकर उठ खड़ा हो जाता। वह फिर उठा और अगले वर्ष के लिए उसने अपनी तैयारी शुरू कर दी। 

अब पहले से उसकी स्थिति में काफी सुधार आया। उसे थोड़ी-बहुत अंग्रेजी माध्यम की किताबें पढ़ने आने लगी। स्कूल में एक बेलपत्री का पेड़ था। वह उस पर चढ़कर पत्तियाँ तोड़ कर लोगों को देता तो उसके मन को अच्छा लगता। वह अब मंदिर भी जाने लगा और उसने स्कूल के किचन के कोने में माता जी का एक मंदिर बना लिया, जहाँ बैठकर वह पूजा पाठ करता तो उसके मन को शांति मिलती। माँ की कृपा से उसकी पढ़ाई भी ठीक-ठाक चलने लगी। उसने किराने की दुकान में काम करना छोड़ दिया और दिन-रात पढ़ाई में जुट गया। 

उसने दुकान का काम छोड़ा तो पैसों की कड़की होने लगी। खाना-पीना तो वह कभी स्कूल में इधर-उधर से लकड़ियाँ लाकर चूल्हे में कच्चा-पक्का जैसा भी बन पाता, खा लेता, कभी विजय सर घर ले जाकर खिला लाते, कभी कोचिंग वाले पंडित जी अपने टिफिन से खिला देते और कभी-कभी वह जब कहीं आसपास पार्टी वगैरह होती तो चुपके से वहाँ जाकर खाकर आ जाता। इस तरह खाने का तो प्रबंध हो जाता। लेकिन उसके सामने अब किताबों का खर्चा और लिखने के लिए रजिस्टर आदि के लिए पैसे जुटाना भारी पड़ रहा था।  

वह देवी मैया से दिन-रात प्रार्थना करता कि वह कोई चमत्कार कर दें और एक दिन जैसे मैया ने उसकी सुन ली। विजय सिंह क्लासेस में एक नए सर देवदूत बनकर उसके सामने आये, जिसने उसकी व्यथा-कथा सुनकर उसको अपनी तरफ से हर संभव मदद करने का आश्वाशन दिया और उसे अपने पुत्र की तरह मानकर उसे अपने घर ले जाकर खाना खिलाया और पहनने के लिए कपड़े और जूते-चप्पल, बिछाने के लिए बिस्तर और लिखने के लिए पेन और रजिस्टर आदि दिए। वे जब उसकी कोचिंग छूटती तो उसके लिए टिफिन देकर जाते और खर्चा-पानी के लिए थोड़ा-बहुत पैसे भी दे आते। इस देवदूत को सभी 'दादू' कहकर पुकारते थे। वह दादू के बारे में सोचता कि आज के समय में ऐसा कोई व्यक्ति मिलना दुर्लभ है, शायद यह उनके भाग्य से मिले हैं। दादू हर समय उसकी मदद को तैयार रहते। एक बार जब उसके पास पीएमटी फार्म भरने के पैसे तक नहीं थे तो 'दादू' ने ही उसे फॉर्म भरने के लिए पैसे दिए थे और खुद वे उसे जहां उसका पीएमटी का सेंटर था, वहां छोड़कर आये, ताकि वह समय पर पहुँच सके।

कभी-कभी रविवार को वह उनके घर जाता तो उनकी पत्नी उसे अच्छा-अच्छा खाना खिलाकर उसे खर्चे के लिए कुछ पैसे भी देती थी। वह जब भी रविवार के दिन उनके घर जाता तो वह उसे बिना खाना खिलाए वापस नहीं भेजती। उनके पुत्रवत व्यवहार को देख उसे उनमें साक्षात् लक्ष्मी माँ की झलक दिखती। उन दोनों का पुत्रवत व्यवहार से उसे लगता कि जैसे मैया रानी ने उन्हें माँ-बाप के रूप में उनसे मिलाया है। तभी तो दादू उसकी मदद के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। उन्होंने उसके लिए बहुत कुछ किया। वे जब भी घर से बाहर किसी भीं कार्यक्रम में जाते उसे अपने साथ अपने परिवार के सदस्य की तरह साथ लेकर जाना नहीं भूलते, जिसे देख उसे अपार ख़ुशी मिलती। उसकी पढ़ाई भी अच्छी चलने लगी। 

चौथी बार जब उसने PMT की परीक्षा हुई तो 200 में से उसके 130 अंक आये। एक बार फिर उसके हाथ असफलता लगी। लेकिन उसे इस बात का संतोष था कि उसके अंक फिर से बढ़कर आये हैं। अब जब से उसे अभिभावक के रूप में 'दादू' और उनकी पत्नी मिली तो उसकी आर्थिक समस्या काफी हद तक सुधर गई। वह फिर पाँचवी बार परीक्षा देने के तैयारी में जुट गया। उसकी पढ़ाई अब बेहतर स्थिति में थी। अब उसे अंग्रेजी लिख-पढ़ने के साथ ही समझ में भी आने लगी थी। उस समय आल इंडिया एक्जाम NEET और PMT दोनों साथ-साथ चलनी लगी। NEET का सिलेबस अलग था, जो NCERT Books से आता था और पीएमटी में वही जो कोचिंग और एमपी बोर्ड का सिलेबस आता था, पढ़ना पड़ता था। दोनों की परीक्षा अलग-अलग थी तो वह NCERT की बुक नहीं पढ़ पाता था। क्योँकि दोनों का पैटर्न अलग-अलग था और एनसीईआरटी की बुक में अंग्रेजी बहुत टफ थी। उसे वह केवल पीएमटी की तैयारी के लिए पढ़ता था। 

पाँचवी बार जब उसने PMT परीक्षा दी तो उसके 200 में 125 अंक ही आ पाए, जो पिछले वर्षों के बढ़ते क्रम की तुलना में कम थे। उसके लिए यह एक बहुत ही खराब अनुभव रहा। अब तो हर कोई उससे कहने लगे कि अब उसे कोई दूसरा कोर्स कर लेना चाहिए। डाॅक्टर बनना उसके बस की बात नहीं है। कोई भी व्यक्ति उसे कुछ भी बोल जाता था। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूँ? वह गफलत में था की उसी समय PMT परीक्षा बंद कर दी गयी और उसके स्थान पर एक ही परीक्षा 'NEET' हो गई। अब समस्या यह थी कि PMT की परीक्षा बंद हो गई थी और केवल All India Exam जिसका नाम NEET था, वही बची थी। बहुत कठिन था एक तो भाषा बहुत कठिन थी दूसरा अंग्रेजी माध्यम की बुक जिसे पढ़ने के लिए बहुत अच्छी इंग्लिश चाहिए थी। यह तभी संभव थी जब पहली कक्षा से 12वीं तक वही बुक पढ़ी हो। तभी कोई उस NCERT की बुक को पढ़ सकता था। समस्या पर समस्या आती जा रही थी। अब पढ़ने की समस्या बढ़ती जा रही थी। उसके लिए बहुत कठिन समय था। वह सोचता जब वह पीएमटी जैसी परीक्षा से पार नहीं पा सका तो फिर NEET जैसी कठिन परीक्षा से कैसे वह अपने को पार लगाएगा। जैसे-तैसे करके हिम्मत जुटाई, खुद को तैयार किया और फिर एक बार मैदान में आकर डट गया। एक-एक NCERT की किताबों में घुस गया, जहाँ समझ नहीं आता टीचर्स से समझता था। 

छठवीं बार परीक्षा के रूप में उसने पहली बार NEET परीक्षा दी, इस बार माइनस मार्किंग थी। 720 में से 300 अंक अर्जित किये। फिर वही असफलता, वही निराशा हाथ लगी। उसे एक दिक्कत यह भी थी कि विजय सिंह कोचिंग में PMT स्तर का कोर्स पढ़ाते थे। NEET जैसे बड़े Exam का नहीं फिर उसने दूसरी कोचिंग की खोजबीन की। इसी बीच उसके साथ एक अलग ही घटना घट गई। वह जिस स्कूल के किचन में रहता था, उसमें उसने जो मंदिर बनाया था, उसमें एक दिन शाम को आग लग गई और देवी माँ और अन्य दूसरे भगवान की फोटो जल गयी। यह देखकर उसके दिल को बड़ा धक्का लगा। दूसरे दिन वह कुछ किताबें लेने न्यू मार्केट गया था तो उसे वहाँ दुर्गा जी की एक सुन्दर मूर्ति दिखी तो वह उसे लेकर आ गया। वह मूर्ति 900 रूपए की थी। उस समय इतने पैसे उसके पास थे। कुछ तो उसने विजय सिंह कोचिंग में काम करके कमाए थे और कुछ उसे लोगों ने खर्चा-पानी के लिए दे रखे थे। वह माता रानी को लाकर उनकी पूजा पाठ करने लगा लेकिन यह बात स्कूल के कुछ लोगों को अच्छी नहीं लगी, वे उसे कहने लगे कि यह मूर्ति स्थान बना लेगी तो सभी को बड़ी परेशान करेगी। इसलिए वे उसे हटाने पहुंचे, लेकिन वह नहीं माना और उसने माता रानी को उनके हाथ नहीं लगने दिया। फिर जब उसे लोग बहुत परेशान करने लगे तो उसने उसे एमपी नगर चौराहे पर स्थित मंदिर में स्थापित कर दिया। जहाँ वह तड़के उठकर नियमित रूप से उनकी पूजा पाठ करके कोचिंग चला जाता। माता रानी ने उसका बहुत साथ दिया। हर कदम पर जहाँ भी जिस काम के लिए जाता वह काम होने लगा तो वह इसे माता का चमत्कार मानता। चाहे बारिश हो या ठण्ड का मौसम वह माता जी पूजा करने जरूर जाता था। कभी पैदल तो कभी किसी से लिफ्ट लेकर जाता। कभी कोई अपनी साइकिल देता तो उनकी सेवा आराधना करने पहुँच जाता। वह कभी-कभी जब रास्ते पर पैदल चलता जाता तो किसी कोचिंग वाले लड़के की नज़र पड़ती तो उसे साथ ले चलते। इस तरह कुछ बच्चों ने सोचा कि मांझी पैदल कोचिंग आता है, क्यों न वे थोड़ा-थोड़ा पैसा चंदा कर उसके लिए एक सायकिल उसे लाकर दे दें। उसने जब उनके मुँह से यह बात सुनी तो उसने ऐसा करने से मना किया लेकिन उन्होंने मिलकर चंदा किया और उसे एक नयी सायकिल खरीदकर दे दी। उसे बड़ी ख़ुशी हुई कि उसे पहली बार नई सायकिल देखने और चलाने के लिए मिली। लेकिन उसे पता न था कि उसकी ख़ुशी पर किसी की नज़र लग जाएगी। दूसरे दिन ही कोचिंग की बिल्डिंग के नीचे रखी उसकी सायकिल कोई उड़ा ले गया। उसे यह देख अपने भाग्य पर बहुत रोना आया। पर क्या करता थाने में जाकर रपट लिखवाई लेकिन रपट वहीँ थाने में कहीं दबकर रह गई। फिर एक दिन एक बच्चे ने उसे एक मोबाइल दिया तो उसे बड़ी ख़ुशी हुई। उसने इससे पहले कभी मोबाइल को ढंग से देखा भी न था। 

एक वर्ष फिर बीत चला और जब उसने फिर सातवीं बार NEET की परीक्षा हुई तो उसे 700 में से 320 अंक मिले। पिछले की तुलना में बहुत ज्यादा अंक नहीं बढ़े तो उसने फिर दूसरी कोंचिंग में ज्वाइन करने की सोची। वह सीधे बायोमेंटर कोचिंग पहुंचा, जहाँ उसने कोचिंग वालों को अपना नीट का रिजल्ट दिखाया तो उन्होंने उसे पढ़ाने के लिए 'हां' कह दिया, तो उसे बड़ी ख़ुशी हुई। उस समय वह पढ़ाई में भी काफी अच्छा हो गया था। साथ ही वह खर्चा-पानी के लिए दूसरी कोचिंग में भी पढ़ाने लगा था, जहाँ उसे 1500 रूपये महीने मिलते थे। उसका पढ़ाई के साथ हाथ खर्चा चलने लगा। 

 निरन्तर अगले अंक में. ..........